अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 5
ऋषिः - वामदेवः
देवता - द्यावापृथिव्यौ, विश्वे देवाः
छन्दः - चतुष्पदा निचृद्बृहती
सूक्तम् - दुःखनाशन सूक्त
63
दुष्ट्यै॒ हि त्वा॑ भ॒र्त्स्यामि॑ दूषयि॒ष्यामि॑ काब॒वम्। उदा॒शवो॒ रथा॑ इव श॒पथे॑भिः सरिष्यथ ॥
स्वर सहित पद पाठदुष्ट्यै॑ । हि । त्वा॒ । भ॒त्स्यामि॑ । दू॒ष॒यि॒ष्यामि॑ । का॒ब॒वम् । उत् । आ॒शव॑: । रथा॑:ऽइव । श॒पथे॑भि: । स॒रि॒ष्य॒थ॒ ॥९.५॥
स्वर रहित मन्त्र
दुष्ट्यै हि त्वा भर्त्स्यामि दूषयिष्यामि काबवम्। उदाशवो रथा इव शपथेभिः सरिष्यथ ॥
स्वर रहित पद पाठदुष्ट्यै । हि । त्वा । भत्स्यामि । दूषयिष्यामि । काबवम् । उत् । आशव: । रथा:ऽइव । शपथेभि: । सरिष्यथ ॥९.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
विघ्न की शान्ति के लिए उपदेश।
पदार्थ
(दुष्ट्यै) दुष्टता [हटाने] के लिए, (हि) ही (काबवम्) स्तुतिनाशक (त्वा) तुझको (भर्त्स्यामि) मैं बाँधूँगा और (दूषयिष्यामि) दोषी ठहराऊँगा। (आशवः) शीघ्रगामी (रथाः इव) रथों के समान (शपथेभिः=०−थैः) हमारे शाप अर्थात् दण्ड वचनों से (उत् सरिष्यथ) तुम सब बन्धन में चले जाओगे ॥५॥
भावार्थ
राजा नाम में धब्बा लगानेवाले दुष्ट को कारागार में रखकर उसके दोष प्रसिद्ध कर दे और उसके सहायकों को भी उचित दण्ड देवे ॥५॥
टिप्पणी
५−(दुष्ट्यै)। दुष वैकृत्ये-क्तिन्। दोषनिवारणाय। (हि)। निश्चयेन। (त्वा)। शत्रुम्। (भर्त्स्यामि)। बन्धेर्लृटि। एकाच उपदेशेऽनुदात्तात्। पा० ७।२।१०। इति इट्प्रतिषेधः। नलोपश्छान्दसः। यद्वा। भस भर्त्सनदीप्त्योः। लृट्। छान्दस इडभावः। सः स्यार्धधातुके। पा० ७।४।४९। इति सस्य तः। बन्धे करिष्यामि। भर्त्सयिष्यामि। तिरस्करिष्यामि। (काबवम्)। म० ३। स्तुतिनाशकम्। (आशवः)। अशू व्याप्तौ-उण्। शीघ्रगामिनः। (रथाः)। हनिकुषिनीरमिकाशिभ्यः क्थन्। उ० २।२। इति रमु क्रीडे-क्थन्, अनुनासिकलोपः। स्यन्दनाः। (इव)। यथा। (शपथेभिः)। अ० २।७।१। शपथैः। शापैः। क्रोधवचनैः। (उत् सरिष्यथ)। सृ लृट्। उत् बन्धने चरिष्यथ गमिष्यथ ॥
विषय
शपथेभिः उत
पदार्थ
१. हे प्रभो! (दुष्ट्यै) = वासनाओं को दुषित करने के लिए (हि) = निश्चय से (त्वा) = आपको (भन्स्यामि) = अपने में बाँधूंगा-आपको हृदय में स्थिर करने का प्रयत्न करूँगा। इसप्रकार (काबवम्) = संसार के प्रति अनुराग की वृत्ति को दूषयिष्यामि-दूषित करुंगा-इसे अपने से दूर करनेवाला बनूंगा। २. प्रभु कहते हैं कि ऐसा करने पर (आशवः) = शीघ्रगामी अश्वोंवाले (रथा: इव) = रथों की भाँति तुम (शपथेभिः) = आक्रोशों से (उत् सरिष्यथ) = बाहर गतिवाले होओगे-तुम्हारा जीवन आक्रोशों से ऊपर उठ जाएगा। ('आकुष्टः कुशलं वदेत्') का पाठ पढ़कर तुम सदा आक्रोश से दूर रहोगे।
भावार्थ
उस प्रभुरूप कवच को पहनकर हम संसार के अनुराग से ऊपर उठे, अनासक्तभाव से कर्तव्यकर्मों को करते हुए हम लोग आक्रोशों से ऊपर उठें।
भाषार्थ
[हे प्रजानन !] (दुष्ट्यै) तेरी दूषित वृत्ति के निवारण के लिये (त्वा) तुझे (भत्स्यामि) मैं कल्याणमार्गी बनाऊँगा, (काबवम्) रूपादि विषयोंवाले तुझको (दूषयिष्यामि) मैं विकृत कर दूंगा [पूर्वावस्था से विभिन्न अवस्था वाला कर दूंगा]। (उदाशवः) उन्नति के मार्ग पर शीघ्र चलनेवाले (रथा: इव) रथों के सदृश, (शपथेभी:) मेरे शपथों के कारण, (सरिष्यथ) तुम शीघ्रता से चल सकोगे।
टिप्पणी
[दुष्ट्यै = तुमर्थे चतुर्थी। भत्स्यामि= भदि कल्याणे सुखे च (भ्वादि:)। "शपथेभिः" द्वारा वक्ता ने निज दृढ़ संकल्प सूचित किया है, जिस द्वारा व्यक्ति शीघ्र कल्याणमार्ग में चल सकेगा। शपथेभिः= शपथों में दृढ़संकल्प होते हैं। यथा "अद्या मुरीय यदि यातुधानो अस्मि" (निरुक्त ७।१।३); तथा (अथर्व० ८।४।१५)।]
विषय
प्रबल जन्तुओं और हिंसक पुरुषों के वश करने के उपाय ।
भावार्थ
यदि (काबवं) हिंसक जन्तु को किसी कारण से (दूषयिष्यामि) क्रुद्ध भी कर दूं तो भी उस (स्वा) तुझ हिंसक जन्तु को (दुष्ट्यै) बिगड़े स्वभाव के कारण ही (भत्स्यामि) बांध कर रक्खूंगा । और इस प्रकार बांध कर रखने से भी (आशवः) शीघ्रकारी (रथाः) रथों के समान रथ में लगे घोड़ों के समान (शपथेभिः) तीक्ष्ण वचनों से या विश्वास्य वचनों से प्रेरित होकर ही तुम (सरिष्यथ) सन्मार्गों पर चलोगे । अर्थात् जब पशु को उसकी दुष्टता पर मारा जाय तो वह और भी बिगड़ जाता है तो भी उसको पुचकार कर या कठोर वचन कह कर सीधे रास्ते पर ले आना चाहिये और समय २ पर हन्टर भी लगाना चाहिये ।
टिप्पणी
(प्र०) ‘भत्सर्यामि’ इति ह्विटनिसंस्करणगतः पाठः । ‘भन्त्स्यामि’ इति ह्निनिकामितः। ‘जुष्टि त्वा कांच्छाभिजोषयित्वा भव’ इति पैप्प सं० । (च०) ‘करिष्यथ’ इति सायणाभिमतः पाठः। ‘उदाशवः’ इति सायणमत एकं पदम्।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः । द्यावावृथिव्यौ उत विश्वे देवा देवताः । १, ३ ५, अनुष्टुभः । ४ चतुष्पदा निचृद् बृहती । ६ भुरिक् । षडृचं सूक्तम् ॥
इंग्लिश (4)
Subject
Preventing Trouble
Meaning
For reasons of your negativity, I shall bind you to wean you away. For that very reason I shall break down your vociferous force. And then, like fast chariot horses, you will move ahead on the right path by words of admonishment and reach your goal.
Translation
Surely I shall bind you for (removing) the ill-effect. Thus I shall remove the ill-effect of the snake-bite. Then you will be able to move about like chariots drawn by vigorous horses with scoldings (of the charioteer).
Translation
O’ tryant man, I for the reason of your shameful act chide you the oppressor of society, and blame you. Like the swift chariots you will go to bindings by those coercive acts.
Translation
Yea, I will chide thee for removing thy depravity, I will blame the foe.Under our rebukes, ye, like rapid cars, shall be released of thy degradation.
Footnote
I refers to the King. 'Thee' refers to the foe. The king through his admonitions andrebuke should reform the foe.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५−(दुष्ट्यै)। दुष वैकृत्ये-क्तिन्। दोषनिवारणाय। (हि)। निश्चयेन। (त्वा)। शत्रुम्। (भर्त्स्यामि)। बन्धेर्लृटि। एकाच उपदेशेऽनुदात्तात्। पा० ७।२।१०। इति इट्प्रतिषेधः। नलोपश्छान्दसः। यद्वा। भस भर्त्सनदीप्त्योः। लृट्। छान्दस इडभावः। सः स्यार्धधातुके। पा० ७।४।४९। इति सस्य तः। बन्धे करिष्यामि। भर्त्सयिष्यामि। तिरस्करिष्यामि। (काबवम्)। म० ३। स्तुतिनाशकम्। (आशवः)। अशू व्याप्तौ-उण्। शीघ्रगामिनः। (रथाः)। हनिकुषिनीरमिकाशिभ्यः क्थन्। उ० २।२। इति रमु क्रीडे-क्थन्, अनुनासिकलोपः। स्यन्दनाः। (इव)। यथा। (शपथेभिः)। अ० २।७।१। शपथैः। शापैः। क्रोधवचनैः। (उत् सरिष्यथ)। सृ लृट्। उत् बन्धने चरिष्यथ गमिष्यथ ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
[হে প্রজাগণ !] (দৃষ্ট্য়ৈ) দূষিত বৃত্তির নিবারণের জন্য (ত্বা) তোমাকে (ভৎর্স্যামি) আমি কল্যাণমার্গী করবো, (কাববম্) রূপাদি বিষয়ের তোমাকে (দূষয়িষ্যামি) আমি বিকৃত করে দেবো [পূর্বাবস্থা থেকে বিভিন্ন অবস্থাযুক্ত করে দেবো]। (উদাশবঃ) উন্নতির মার্গে শীঘ্র গমনকারী (রথাঃ ইব) রথের সদৃশ, (শপথেভিঃ) আমার শপথের কারণে, (সরিষ্যথ) তুমি দ্রুত চলতে পারবে।
टिप्पणी
[দৃষ্ট্য়ৈ = তুমর্থে চতুর্থী। ভৎর্স্যামি = ভদি কল্যাণে সুখে চ (ভ্বাদিঃ)। "শপথেভিঃ" দ্বারা বক্তা নিজ দৃঢ় সংকল্প সূচিত করেছে, যা দ্বারা ব্যক্তি শীঘ্র কল্যাণ মার্গে চলতে পারবে। শপথেভিঃ= শপথের মধ্যে দৃঢ় সংকল্প থাকে। যথা "অদ্যা মুরীয় যদি যাতুধানো অস্মি” (নিরুক্ত ৭।১।৩); এবং (অথর্ব০ ৮।৪।১৫)।]
मन्त्र विषय
বিঘ্নশমনায়োপদেশঃ
भाषार्थ
(দুষ্ট্যৈ) দুষ্টতা [দূর] করার জন্য, (হি) ই (কাববম্) স্তুতি নাশক (ত্বা) তোমাকে (ভৎর্স্যামি) আমি বন্ধন/আবদ্ধ করবো এবং (দূষয়িষ্যামি) দোষী করবো। (আশবঃ) শীঘ্রগামী (রথাঃ ইব) রথের সমান (শপথেভিঃ=০−থৈঃ) আমাদের অভিশাপ অর্থাৎ দণ্ড বচন দ্বারা (উৎ সরিষ্যথ) তোমরা সকলে বন্ধনে চলে যাবে ॥৫॥
भावार्थ
রাজা নামে কলঙ্ক লেপনকারী দুষ্টকে কারাগারে রেখে তাঁর দোষ প্রসিদ্ধ/প্রচার করে দাও এবং তাঁর সহায়কদেরকেও উচিত শাস্তি প্রদান করো ॥৫॥
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