अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 12/ मन्त्र 2
ऋषिः - ऋभुः
देवता - वनस्पतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - रोहिणी वनस्पति सूक्त
69
यत्ते॑ रि॒ष्टं यत्ते॑ द्यु॒त्तमस्ति॒ पेष्ट्रं॑ त आ॒त्मनि॑। धा॒ता तद्भ॒द्रया॒ पुनः॒ सं द॑ध॒त्परु॑षा॒ परुः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । ते॒ । रि॒ष्टम् । यत् । ते॒ । द्यु॒त्तम् । अस्ति॑ । पेष्ट्र॑म् । ते॒ । आ॒त्मनि॑ । धा॒ता । तत् । भ॒द्रया॑ । पुन॑: । सम् । द॒ध॒त् । परु॑षा । परु॑: ॥१२.२॥
स्वर रहित मन्त्र
यत्ते रिष्टं यत्ते द्युत्तमस्ति पेष्ट्रं त आत्मनि। धाता तद्भद्रया पुनः सं दधत्परुषा परुः ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । ते । रिष्टम् । यत् । ते । द्युत्तम् । अस्ति । पेष्ट्रम् । ते । आत्मनि । धाता । तत् । भद्रया । पुन: । सम् । दधत् । परुषा । परु: ॥१२.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अपने दोष मिटाने का उपदेश।
पदार्थ
[हे मनुष्य !] (यत्) जो कुछ (ते) तेरा (रिष्टम्) टूटा हुआ और (यत्) जो (ते) तेरा (द्युत्तम्) जलता हुआ, और जो (ते) तेरे (आत्मनि) शरीर में (पेष्ट्रम्) पिसा हुआ (अस्ति) है। (धाता) पोषण करनेवाला वैद्य (भद्रया) कल्याण करनेवाली क्रिया से (तत् परुः) उस जोड़ को (परुषा) दूसरे जोड़ से (पुनः) फिर (सं दधत्) सन्धि कर देवे ॥२॥
भावार्थ
विचारवान् पुरुष आप ही अपने दोषों का वैद्य होता है ॥२॥
टिप्पणी
२−(यत्) अङ्गम् (ते) तव (द्युत्तम्) द्योतते, ज्वलतिकर्मा-निघ० १।१६। द्योतितम्। प्रज्वलितम् (अस्ति) (पेष्ट्रम्) सर्वधातुभ्यः ष्ट्रन्। उ० ४।१५९। इति पिष्लृ चूर्णे-ष्ट्रन्। पिष्टम्। चूर्णितम् (आत्मनि) शरीरे (धाता) पोषयिता पुरुषः (तत्) सर्वमङ्गम् (भद्रया) कल्याण्या क्रियया (पुनः) अवधारणे। द्वितीयवारे (संदधत्) संदधातु संयुनक्तु (परुषा) पर्वणा (परुः) पर्व। अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
रिष्टं, द्युत्तं, पेष्ट्रम्
पदार्थ
१. हे शस्त्र आदि से अभिहत पुरुष! (यत्) = जो (ते) = तेरा अङ्ग (रिष्टम्) = हिंसित है, (यत्) = जो (ते) = तेरा अङ्ग (द्युत्तम्) = [द्योतितम्] शस्त्र-प्रहार से प्रज्वलित-सा (अस्ति) = है और (पेष्ट्रम्) = मुद्गर आदि के प्रहार से (ते) = तेरे (आत्मनि) = शरीर में जो छित-सा गया है, (धाता) = जगत् का विधाता देव (तत्) = उन सब अङ्गों को (भद्रया) = इस कल्याणकारक ओषधि से (पुन: सन्दधत्) = फिर जोड़ दे। २. इस ओषधि के प्रयोग से (परुषा परु:) = जोड़-से-जोड़ को संयुक्त कर दे। अस्थिभ्रंश आदि को इस ओषधि के प्रयोग से ठीक किया जा सकता है।
भावार्थ
रोहणी औषधि के प्रयोग से घावों, प्रज्वलित वेदनाओं तथा पिस जाने आदि विकारों को दूर करके जोड़ों को ठीक से संयुक्त किया जा सकता है।
भाषार्थ
(यत्) जो (ते) तेरा अङ्ग (रिष्टम्) हिंसित हुआ है, (यत्) जो (ते) तेरा अङ्ग (द्युत्तम् अस्ति) अग्नि द्वारा द्योतित हुआ है, जला है, (ते) तेरे (आत्मनि) शरीर में (पेष्ट्रम्) जो अङ्ग पिस गया है, कुचला गया है (तत्) उसे (धाता) विधाता (भद्रया) कल्याणकारिणी और सुखदायी लाक्षा द्वारा (पुनः) फिर (संदधत्) सन्धि-सम्पन्न करे, (परुषा परु:) जोड़़ के साथ जोड़ की सन्धि कर दे।
टिप्पणी
[धाता=वेदानुसार रोगनिवारण में औषधि के साथ-साथ परमेश्वर की भी कृपा चाहिए, अतः औषधि-सेवन के साथ-साथ परमेश्वर से भी रोग-निवारण के लिए प्रार्थनाएं करते रहना आवश्यक है। द्युत्तम्=द्युत दीप्तौ (भ्वादिः)। भद्रया= भदि कल्याणे सुखे च (भ्वादिः)। सम्भवतः मन्त्र में 'भद्रा' पद लाक्षावाचक हो ।]
विषय
कटे फटे अंगों की चिकित्सा।
भावार्थ
हे चोट खाये हुए पुरुष! (यत्) जो तेरा अंग (रिष्टम्) चोट खायाः हुआ है, (यत् ते द्युत्तम् अस्ति) और जो तेरा अंग जल गया हो और (ते आत्मनि) तेरे देह में जो भाग (पेष्ट्रं) पिस गया हो, (धाता) पोषक वैद्य (तत्) उस अंग को (भद्रया) अति कल्याणकारी, सुखकारी रीति से (परुषा परुः) पोरु से पोरु मिला कर (सं दधत्) जोड़ दे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋभुर्ऋषिः। वनस्पतिर्देवता। १ त्रिपदा गायत्री। ६ त्रिपदा यवमध्या भुरिग्गायत्रीं। ७ भुरिक्। २, ५ अनुष्टुभः। सप्तर्चं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Rohini Vanaspati
Meaning
Whatever in your body is injured, whatever is torn and broken and crushed, may the universal healer with this efficacious herb join, every part with another and heal to full growth.
Translation
Whatever of yours is injured, whatever of yours is inflamed, and whatever has been crushed in your body, may the creator Lord put that together again (limb) properly.
Translation
O wounded man! Whatever in your body is wounded, Whatever in it is broken, whatever of this body is cracked, may the physician join together limb by limb.
Translation
O injured person, whatever bone of thine within thy body hath been wrenched, cracked or is feeling burning pain, may a skilful physician set it properly and join together limb by limb!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(यत्) अङ्गम् (ते) तव (द्युत्तम्) द्योतते, ज्वलतिकर्मा-निघ० १।१६। द्योतितम्। प्रज्वलितम् (अस्ति) (पेष्ट्रम्) सर्वधातुभ्यः ष्ट्रन्। उ० ४।१५९। इति पिष्लृ चूर्णे-ष्ट्रन्। पिष्टम्। चूर्णितम् (आत्मनि) शरीरे (धाता) पोषयिता पुरुषः (तत्) सर्वमङ्गम् (भद्रया) कल्याण्या क्रियया (पुनः) अवधारणे। द्वितीयवारे (संदधत्) संदधातु संयुनक्तु (परुषा) पर्वणा (परुः) पर्व। अन्यत् पूर्ववत् ॥
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