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अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 18 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 18/ मन्त्र 2
    ऋषिः - शुक्रः देवता - अपामार्गो वनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अपामार्ग सूक्त
    66

    यो दे॑वाः कृ॒त्यां कृ॒त्वा हरा॒दवि॑दुषो गृ॒हम्। व॒त्सो धा॒रुरि॑व मा॒तरं॒ तं प्र॒त्यगुप॑ पद्यताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । दे॒वा॒: । कृ॒त्याम् । कृ॒त्वा । हरा॑त् । अवि॑दुष: । गृ॒हम् । व॒त्स: । धा॒रु:ऽइ॑व । मा॒तर॑म् । तम् । प्र॒त्यक् । उप॑ । प॒द्य॒ता॒म् ॥१८.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो देवाः कृत्यां कृत्वा हरादविदुषो गृहम्। वत्सो धारुरिव मातरं तं प्रत्यगुप पद्यताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । देवा: । कृत्याम् । कृत्वा । हरात् । अविदुष: । गृहम् । वत्स: । धारु:ऽइव । मातरम् । तम् । प्रत्यक् । उप । पद्यताम् ॥१८.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 18; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (देवाः) हे विद्वानों ! (यः) जो पुरुष (कृत्याम्) हिंसा (कृत्वा) करके (अविदुषः) अजान मनुष्य के (गृहम्) घर को (हरात्) हर लेवे। वह दुष्कर्म (प्रत्यक्) लौट कर (तम्) उसी [दुष्कर्मी] को (उप पद्यताम्) जा मिले, (इव) जैसे (धारुः) दूध पीनेवाला (वत्सः) बछड़ा (मातरम्) अपने माता [गौ के पीछे-पीछे दौड़ता है] ॥२॥

    भावार्थ

    दुष्ट मनुष्य को उसकी दुष्टता का दण्ड राजप्रबन्ध वा ईश्वरव्यवस्था से अवश्य पहुँचता है, जैसे छोटा बछड़ा अनेक गौओं में से अपनी ही माता को चिपट जाता है ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(यः) शत्रुः (देवाः) हे विद्वांसः (कृत्याम्) हिंसाम् (कृत्वा) विधाय (हरात्) लेटि आडागमः। हरेत् (अविदुषः) अजानानस्य (गृहम्) गेहम् (वत्सः) वदनशीलः। गोशिशुः (धारुः) दाधेट्सिशदसदो रुः। पा० ३।२।१५९। इति धेट् पाने-रु। स्तनपानकर्ता (इव) यथा (मातरम्) जननीम् (तम्) दुष्टम् (प्रत्यक्) प्रतिनिवृत्य (उप पद्यताम्) उप गच्छतु ॥

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    विषय

    हिंसा द्वारा हिंसक का हिंसन

    पदार्थ

    १. हे (देवा:) = देवो! (य:) = जो (कृत्या कृत्वा) = हिंसा का प्रयोग करके (अ-विदुषः) = छल-कपट की सम्भावना को न समझते हुए [विद् जानना] अजान पुरुष के (गृहं हरात) = घर का अपहरण करता है-उसे हानि पहुँचता है। यह हिंसा-कर्म (तम् प्रत्यक्) = उसकी ओर लौटकर उसे उसी प्रकार (उपपद्यताम्) = प्राप्त हो (इव) = जैसेकि (धारु:) = [धेट पाने] स्तनपान करनेवाला (वत्सः) = बछड़ा (मातरम्) = माता के प्रति ही जाता है। २. जो छल-कपटपूर्वक दूसरों का हिंसन करने का प्रयत्न करता है, वह अन्ततः उस हिंसा का स्वयं ही शिकार हो जाता है।

    भावार्थ

    प्रभु की सब प्राकृतिक शक्तियाँ ऐसी स्थिति उत्पन्न कर देती हैं कि हिंसा करनेवाला उस हिंसा-प्रयोग का स्वंय ही शिकार हो जाता है।

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    भाषार्थ

    (देवाः) दिव्यगुणोंवाले हे राज्याधिकारियो ! (यः) जो (कृत्याम्) हिंस्रक्रिया को (कृत्त्वा) करके (अविदुषः) अज्ञानी पुरुष के (गृहम्) घर को (हरात्१) हर ले, छीन ले (सम् प्रत्यक्) उसके प्रति, मानो लौटकर वह हिंस्रक्रिया (उपपद्यताम्) उसे प्राप्त हो, अर्थात उसकी हिंसा करके उसके घर को छीन लिया जाय (इव) जैसेकि (धारु:) दुग्धपायी (वत्सः) बछड़ा (मातरम्) अपनी गौ माता की (प्रत्यक्) ओर ही उसके (उप) समीपवर्ती हुआ उसके पीछे-पीछे (पद्यताम्) जाय या जाता।

    टिप्पणी

    [धारु:=धेट् पाने ‘दाधेट्’ (अष्टा० ३।२।१५९), द्वारा ‘रु’प्रत्यय (सायण)।] [१. हृ+ लेटि आट् आगम।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Apamarga Panacea

    Meaning

    If a clever man does an evil act and robs the house of an ignorant, innocent, trustful man, O devas, the evil act would recoil on the doer just like a suckling calf going back to the mother cow. (This is a warning to a clever professional who cheats innocent, ignorant people while they trust him. Evil must return to its source.)

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    Translation

    Whosoever carry an instrument of violence, having made up his mind, to the house of the house or an unknowing person, O bounties of Nature, to him may that instrument of violence - revert like a sucking calf to its mother.

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    Translation

    Who-so-ever applying bad method of treatment spoil the body of the ignorant person, may get bad result of his evil act revert to him like the milk-sucking child who clings to his mother.

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    Translation

    O learned persons, if one take the life of an ignorant person by administering a deadly medicine to him may the same revert and cling to him, as the calf that sucks clings to the mother cow!

    Footnote

    The king should punish the man, who fraudulently takes the life of an ignorant person by giving him a poisonous medicine, by making him drink the same.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(यः) शत्रुः (देवाः) हे विद्वांसः (कृत्याम्) हिंसाम् (कृत्वा) विधाय (हरात्) लेटि आडागमः। हरेत् (अविदुषः) अजानानस्य (गृहम्) गेहम् (वत्सः) वदनशीलः। गोशिशुः (धारुः) दाधेट्सिशदसदो रुः। पा० ३।२।१५९। इति धेट् पाने-रु। स्तनपानकर्ता (इव) यथा (मातरम्) जननीम् (तम्) दुष्टम् (प्रत्यक्) प्रतिनिवृत्य (उप पद्यताम्) उप गच्छतु ॥

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