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अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 18 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 18/ मन्त्र 8
    ऋषिः - शुक्रः देवता - अपामार्गो वनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अपामार्ग सूक्त
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    अ॑प॒मृज्य॑ यातु॒धाना॒नप॒ सर्वा॑ अरा॒य्यः॑। अपा॑मार्ग॒ त्वया॑ व॒यं सर्वं॒ तदप॑ मृज्महे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒प॒ऽमृज्य॑ । या॒तु॒ऽधाना॑न् । अप॑ । सर्वा॑: । अ॒रा॒य्य᳡: । अपा॑मार्ग: । त्वया॑ । व॒यम् । सर्व॑म् । तत् । अप॑ । मृ॒ज्म॒हे॒॥१८.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपमृज्य यातुधानानप सर्वा अराय्यः। अपामार्ग त्वया वयं सर्वं तदप मृज्महे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अपऽमृज्य । यातुऽधानान् । अप । सर्वा: । अराय्य: । अपामार्ग: । त्वया । वयम् । सर्वम् । तत् । अप । मृज्महे॥१८.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 18; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (यातुधानान्) पीड़ा देनेवाले राक्षसों को (अपमृज्य) शोधकर, और (सर्वाः) सब प्रकार की (अराय्यः) दरिद्रताओं को (अप=अपमृज्य) शोधकर, (अपमार्ग) हे सर्वसंशोधक राजन् ! (त्वया) तेरे साथ (वयम्) हम लोग (तत् सर्वम्) उस सब [कष्ट कर्म] को (अपमृज्महे) शोधते हैं ॥८॥

    भावार्थ

    नीतिनिपुण राजा के शासन में सब प्रजागण अपने कष्टों को दूर करके आनन्द भोगते हैं ॥८॥ इस मन्त्र का उत्तरार्ध सूक्त १७ मन्त्र ६ में आया है ॥

    टिप्पणी

    ८−(अपमृज्य) सम्यक् शोधयित्वा (यातुधानान्) अ० १।७।१। पीडाप्रदान् राक्षसान् (अप) अपमृज्य (सर्वाः) (अराय्यः) म० ७। अरायीन् अलक्ष्मीः। अन्यद् व्याख्यातं सू० १७ म० ६ ॥

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    विषय

    अलक्ष्मी-वारण

    पदार्थ

    १. हे (अपामार्ग) = अपामार्ग! (वयम्) = हम (त्वया) = तेरे यथायोग के द्वारा (यातुधानान्) = पीड़ाओं को आहित करनेवाले कष्टों [रोगों] को (अपमृज्य) = दूर करके तथा (सर्वाः) = सब (अराय्यः) = अलक्ष्मियों को (अप) = शोधकर (तत् सर्वम्) = उस सब अवाञ्छनीय रोगमात्र को (अपमृज्यहे) = दूर कर देते हैं।

    भावार्थ

    अपामार्ग का यथायोग शरीर को रोगरहित व तेजस्वी बनाता है। इसके द्वारा हम रोगों को दूर करते हैं। अगले सूक्त में भी अपामार्ग का ही विषय है -

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    भाषार्थ

    (यातुधानान्) यातना देने के विचारों को (अपमृज्य) पृथक् कर, और पुरुष को विशुद्ध करके, तथा (सर्वाः) सब (अराय्यः) अराति-प्रवृत्तियों को (अप) पृथक् कर और पुरुष को विशुद्ध करके, (अपामार्ग) हे अपामार्ग [ओषधि] ! (वयम्) हम (त्वया) तेरे द्वारा (तत् सर्वम्) उस सब रोग-समूह को (अप) पृथक् करके (मृज्महे) अपने को शुद्ध करते हैं।

    टिप्पणी

    [सूक्त में राजा और अपामार्ग औषधि का मिश्रित वर्णन हुआ है।]

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    विषय

    ‘अपामार्ग’ विधान का वर्णन।

    भावार्थ

    हे (अपामार्ग) राष्ट्र के संकटदायक, कण्टकस्वरूप, विध्नकारियों को दूर करने हारे अपामार्ग नामक विभाग ! (त्वया) तुझ से (वयं) हम (सर्वं तद्) वह सब कुछ (अप मृज्महे) दूर करते हैं। और (यातुधानान्) पीड़ाकारी पुरुषों को (अपमृज्य) दूर करें और (सर्वाः अराय्यः) सब प्रकार की अलक्ष्मी या इल्लतों बलाओं, राष्ट्र के साथ चिपटी कलङ्कप्रद रीतियों को (अप) अपामार्ग विधि से दूर करें।

    टिप्पणी

    वेद के अपामार्ग विधान को अर्थशास्त्र के ‘कण्टकशोधन’ प्रकरण के समान समझना चाहिये।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शुक्र ऋषिः। अपामार्गो वनस्पतिर्देवता। १-५, ७, ८ अनुष्टुभः। ६ बृहतीगर्भा अनुष्टुप्। अष्टर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Apamarga Panacea

    Meaning

    O Apamarga, personal and social panacea, having cleansed out all violence and negativity, all depression, deprivation and poverty by your power and efficacy, we clean up the totality of life and restore it to purity, good health, happiness and advancement.

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    Translation

    Having wiped off the indulgers in violence and all the hags, O Apámarga with your use, we wipe off all that. (A poetic pun in the words apamrjya and apamarga)

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    Translation

    With this Apamarga we drive away all diseases that develop in our bodies removing away troubles caused by them and all the bad effects produced by them.

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    Translation

    Curing all diseases that cause pain and lower vitality, O Apamarga, through thy use, we purge us of every kind of painful ailment.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(अपमृज्य) सम्यक् शोधयित्वा (यातुधानान्) अ० १।७।१। पीडाप्रदान् राक्षसान् (अप) अपमृज्य (सर्वाः) (अराय्यः) म० ७। अरायीन् अलक्ष्मीः। अन्यद् व्याख्यातं सू० १७ म० ६ ॥

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