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अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 22 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 22/ मन्त्र 6
    ऋषिः - वसिष्ठः, अथर्वा वा देवता - इन्द्रः, क्षत्रियो राजा छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - अमित्रक्षयण सूक्त
    60

    उत्त॑र॒स्त्वमध॑रे ते स॒पत्ना॒ ये के च॑ राज॒न्प्रति॑शत्रवस्ते। ए॑कवृ॒ष इन्द्र॑सखा जिगी॒वां छ॑त्रूय॒तामा भ॑रा॒ भोज॑नानि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत्त॑र: । त्वम् । अध॑रे । ते॒ । स॒ऽपत्ना॑: । ये । के । च॒ । रा॒ज॒न् । प्रति॑ऽशत्रव: । ते॒ । ए॒क॒ऽवृ॒ष: । इन्द्र॑ऽसखा । जि॒गी॒वान् । श॒त्रु॒ऽय॒ताम् । आ । भ॒र॒ । भोज॑नानि ॥२२.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत्तरस्त्वमधरे ते सपत्ना ये के च राजन्प्रतिशत्रवस्ते। एकवृष इन्द्रसखा जिगीवां छत्रूयतामा भरा भोजनानि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत्तर: । त्वम् । अधरे । ते । सऽपत्ना: । ये । के । च । राजन् । प्रतिऽशत्रव: । ते । एकऽवृष: । इन्द्रऽसखा । जिगीवान् । शत्रुऽयताम् । आ । भर । भोजनानि ॥२२.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 22; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    संग्राम में जय के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    [राजन् !] हे राजन् ! (त्वम्) तू (उत्तरः) अधिक ऊँचा हो, (च) और (ये के) जो कोई (ते) तेरे (प्रतिशत्रवः) प्रतिकूलवर्ती शत्रु और (ते) तेरे (सपत्नाः) साथ झगड़नेवाले हैं, [वे] (अधरे) नीचे होवें। (इन्द्रसखा) परमेश्वर का मित्र, (जिगीवान्) विजयी और (एकवृषः) अद्वितीय प्रधान तू (शत्रूयताम्) शत्रुओं जैसे आचरणवाले मनुष्यों के (भोजनानि) भोगों के साधन, धन-धान्यों को (आभर) लाकर भरदे ॥६॥

    भावार्थ

    राजा प्रतिकूलवर्ती सब शत्रुओं को परमेश्वर के सहाय से जीतकर सर्वथा निर्बल करे और प्रजा को सुख देवे ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(उत्तरः) ऊर्ध्वतरः (त्वम्) राजन् (अधरे) नीचाः (ते) त्वदीयाः (सपत्नाः) अ० १।९।२। सहपतित्ववन्तः। शत्रवः (ये के च राजन्) (प्रतिशत्रवः) प्रतिकूलवर्तिनो वैरिणः (एकवृषः) म० १। अद्वितीयशासकः (इन्द्रसखा) इन्द्रेण परमेश्वरेण सखित्वयुक्तः (जिगीवान्) जि जये+क्वसु। सन्लिटोर्जेः। पा० ७।३।५७। इत्यभ्यासादुत्तरस्य कुत्वम्। छान्दसो दीर्घः। जयशीलः (शत्रूयताम्) अ० ३।१।३। शत्रु-क्यच्,-शतृ। शत्रुवदाचरताम् (आ भरा) छान्दसो दीर्घः। आनीय धर (भोजनानि) ण्युट् च। पा० ३।३।११५। इति भुज पालनाभ्यवहारयोः-ल्युट्। भोगसाधनानि धान्यानि धनानि च ॥

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    विषय

    त्वम् उत्तरः अधरे सपत्ना:

    पदार्थ

    १. हे (राजन्) = अपनी प्रजाओं का रञ्जन करनेवाले शासक! (त्वम् उत्तरः) = तू सर्वोत्कृष्ट हो। (ते) = तेरे (सपना:) = शत्रु (अधरे) = निकृष्ट हों-हीनतर स्थिति में हों। (ये के च) = और जो कोई भी (ते प्रतिशत्रवः) = तेरे प्रति शत्रुत्व का आचरण करनेवाले हों, वे सब अधर-स्थिति में हों। २. (एकवृष:) = अद्वितीय शक्तिशाली (इन्द्रसखा) = प्रभु की मित्रतावाला (जिगीवान्) = शत्रुओं को जीतता हुआ तू (शत्रुयताम्) = शत्रु की भाँति आचरण करनेवाले विरोधियों के (भोजनानि) = भोगसाधन धनों का (आभार) = हरण करनेवाला हो। शत्रुओं को जीतकर उनके धनों को तू अपहत कर ले।

    भावार्थ

    प्रभु के साथ मित्रतावाला यह राजा सदा शत्रुओं को पराजित करनेवाला होता है। उनके भोगसाधन धनों का यह अपहरण कर लेता है।

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    भाषार्थ

    (राजन) हे राजन् ! (त्वम्) तू (उत्तरः) सर्वोत्कृष्टतर हुआ है, (ते) तेरे (सपत्नाः) शत्रु (अधरे) तेरे नीचे हुए हैं, (ये के च) जो कोई कि (ते) तेरे (प्रतिशत्रवः) प्रतिकूल शत्रु हैं। (एकवृषः) अकेला या मुख्य सुखवर्षी, (इन्द्र-सखा) सम्राट् रूपी मित्रवाला, तू (जिगीवान्) विजयी हुआ है, (शत्रूयताम) शत्रुता चाहने-करनेवालों की (भोजनानि) भोजन-सामग्रियों को (आभर) आहरण कर ले, छीन ले।

    टिप्पणी

    [जिगीवान्= जि (जये)+ क्वसुः (लिट्)+ अभ्यासादुत्तरस्य कुत्वम्, "सन्लिटोर्जे:" (अष्टा० ३।१।८)।]

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    विषय

    राजा का स्थापन।

    भावार्थ

    हे (राजन्) प्रजा को अनुरञ्जन करने हारे राजन् ! (त्वम् उत्तरः) तू अपने शत्रुओं से सदा ऊंचा होकर रह और (ते सपत्नाः) तेरे बराबरी का दावा करने वाले (प्रतिशत्रवः) तेरे प्रति शत्रुता दर्शाने वाले (ये के च) जो कोई भी हों वे (ते अधरे) तेरे से नीचे ही रहें। तू (एकवृषः) एकमात्र सबसे श्रेष्ठ (इन्द्रसखा) सेनापति का मित्र होकर (शत्रूयतां जिगीवान्) शत्रुओं पर विजय करता हुआ (भोजनानि आभर) अपने राष्ट्र के लिये खाद्य पदार्थों को प्राप्त करा।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठोऽथर्वा वा ऋषिः। इन्द्रो देवता। १-७ त्रिष्टुभः। सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Social Order

    Meaning

    O ruler, you are the higher, your equal adversaries and your enemies, one and all, they are lower, much below you. Sole one, unique and mighty, friend and favourite of Indra, Lord Almighty, you are the conqueror of those engaged in enmity. Bring in and provide for the food, maintenance and peace and security of the people, all of them, friends and foes alike.

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    Translation

    You are superior and inferior are your rivals, as well as those, whoever, O king, are your opponents. Unrivalled in power, friendly to the resplendent Lord, and victorious, may you take away the wealth of those, who behave as enemy.

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    Translation

    Victorious and supreme are you, O King! and down go your those rivals who are your adversaries, You as sole lord and allied with Almighty God becoming Conqueror bring the goods and treasures of your enemies.

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    Translation

    Supreme art thou, beneath thee are thy rivals, and all, O King, who are thine adversaries. Thou art the sole lord and leader, the devotee of God, conqueror, bring thy foeman's goods and treasures!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(उत्तरः) ऊर्ध्वतरः (त्वम्) राजन् (अधरे) नीचाः (ते) त्वदीयाः (सपत्नाः) अ० १।९।२। सहपतित्ववन्तः। शत्रवः (ये के च राजन्) (प्रतिशत्रवः) प्रतिकूलवर्तिनो वैरिणः (एकवृषः) म० १। अद्वितीयशासकः (इन्द्रसखा) इन्द्रेण परमेश्वरेण सखित्वयुक्तः (जिगीवान्) जि जये+क्वसु। सन्लिटोर्जेः। पा० ७।३।५७। इत्यभ्यासादुत्तरस्य कुत्वम्। छान्दसो दीर्घः। जयशीलः (शत्रूयताम्) अ० ३।१।३। शत्रु-क्यच्,-शतृ। शत्रुवदाचरताम् (आ भरा) छान्दसो दीर्घः। आनीय धर (भोजनानि) ण्युट् च। पा० ३।३।११५। इति भुज पालनाभ्यवहारयोः-ल्युट्। भोगसाधनानि धान्यानि धनानि च ॥

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