अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 2
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - वृषभः, स्वापनम्
छन्दः - भुरिगनुष्टुप्
सूक्तम् - स्वापन सूक्त
149
न भूमिं॒ वातो॒ अति॑ वाति॒ नाति॑ पश्यति॒ कश्च॒न। स्त्रिय॑श्च॒ सर्वाः॑ स्वा॒पय॒ शुन॒श्चेन्द्र॑सखा॒ चर॑न् ॥
स्वर सहित पद पाठन । भूमि॑म् । वात॑: । अति॑ । वा॒ति॒ । न । अति॑ । प॒श्य॒ति॒ । क: । च॒न । स्रिय॑: । च॒ । सर्वा॑: । स्वा॒पय॑ । शुन॑: । च॒ । इन्द्र॑ऽसखा । चर॑न् ॥५.२॥
स्वर रहित मन्त्र
न भूमिं वातो अति वाति नाति पश्यति कश्चन। स्त्रियश्च सर्वाः स्वापय शुनश्चेन्द्रसखा चरन् ॥
स्वर रहित पद पाठन । भूमिम् । वात: । अति । वाति । न । अति । पश्यति । क: । चन । स्रिय: । च । सर्वा: । स्वापय । शुन: । च । इन्द्रऽसखा । चरन् ॥५.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
बच्चों के सुलाने का गीत अर्थात् लोरी।
पदार्थ
(न) न (वातः) पवन (भूमिम्) भूमि पर (अति) अत्यन्त (वाति) चलता है, और (न) न (कश्चन) कोई जन (अति) ऊपर से (पश्यति) देखता है, [हे पवन !] (इन्द्रसखा) इन्द्र अर्थात् जीवात्मा को अपना सखा रखनेवाला तू, (चरन्) चलता हुआ, (सर्वाः स्त्रियः) सब स्त्रियों (च) और (शुनः) कुत्तों को (च) भी (स्वापय) सुला दे ॥२॥
भावार्थ
मनुष्य प्रयत्न करे कि रात्री को सोते समय तीव्र वायु वा अन्य किसी तुच्छ कारण से निद्रा भङ्ग न हो और न बाहिरी पुरुष गुप्त बातें सुने ॥२॥
टिप्पणी
२−(न) निषेधे (भूमिम्) पृथिवीम् (वातः) अ० १।११।६। पवनः (अति) अतिशयेन (वाति) गच्छति (पश्यति) प्रेक्षते (कश्चन) कोऽपि जनः (स्त्रियः) अ० १।८।१। स्त्यायति स्तौति वा गुणान् स्तूयते वा सा स्त्री। नारीः (सर्वाः) (स्वापय) निद्रापय (शुनः) श्वन्नुक्षन्पूषन्०। उ० १।१५९। इति दुओश्वि गतिवृद्ध्योः-कनिन्। श्वयतीति श्वा। कुक्कुरान् (च) (इन्द्रसखा) इन्द्रियमिन्द्रलिङ्गमिन्द्रदृष्ट०। पा० ५।२।९३। इति इन्द्र आत्मा। “इन्द्र आत्मा स सखा यस्य प्राणवायोस्तदात्मकः”-इति सायणः। आत्मप्रियः। वातः (चरन्) देहे वर्तमानः ॥
विषय
नींद के अनुकूल वातावरण
पदार्थ
१. राष्ट्र में नगरों का निर्माण इसप्रकार हो कि (वातः) = वायु (भूमि न अतिबाति) = भूमि पर बहुत तीव्र गति से-आँधी आदि के रूप में बहनेवाला न हो। नगरों के चारों ओर एक-दो किलोमीटर चौड़े बगीचे हों। ये वायु के वेग को रोकने में सहायक होंगे। २. घरों का निर्माण भी इसप्रकार हो कि (कश्चन) = कोई भी (न अतिपश्यति) = ऊपर से एक-दूसरे घरवालों को देख न सके। सब घरवाले कुछ गुप्तता अनुभव कर सकें। ३. हे वायो! (इन्द्रसखा) = इन जितेन्द्रिय पुरुषों का मित्रभूत ) = बहता हुआ तू (सर्वाः स्त्रियः) = सब स्त्रियों को (स्वापय) = सुला दे, (च) = और (शुनः च) = कुत्तों को भी सुला दें। कुत्तों का भौंकना भी नींद में विघ्न का कारण न बन जाए।
भावार्थ
नगरों व घरों का निर्माण इसप्रकार हो कि तेज हवा के झोके न लगें तथा लोगों को अपने घरों में कुछ एकान्त-सा प्रतीत हो, कुत्तों का भौंकना भी नींद के विघ्न का कारण न बने।
भाषार्थ
(वातः) वायु (भूमिम्) भूमि पर (न) नहीं (अति) उग्रता से (वाति) बह रही है, (न) न (कश्चन) कोई भी (अति पश्यति) दूर तक देखता है, (सर्वा: स्त्रिय: च) सब स्त्रियों को, (शुन: च) और कुत्तों को (स्वापय) तू सुलाये रख, (इन्द्रसखा) परमैश्वर्यवान् परमेश्वर का सखा (चरन्) ताकि परमेश्वर में विचरता रहे।
टिप्पणी
[मन्त्र में प्रभात-काल का वर्णन हुआ है, जबकि भूमि पर बायु मन्द-मन्द बहती हैं।। भूमि पर अभी अन्धकार है, इसलिए कोई भी प्राणी अभी दूर तक देख नहीं सकता। यह सबिता का काल है जबकि द्यौः में तो प्रकाश होता है, और भूमि पर अभी अन्धकार होता है। यथा "तस्य कालो यदा द्यौरपहततमस्का, आकीर्णरश्मिर्भबति" (नि० १२।२।१२)। इस सवितृकाल में सूर्य, अभी उदित नहीं होता। अन्धकार के कारण गृह स्त्रियां अभी सोयी हुई होती हैं और कुत्ते भी। प्रभात-वेला में परमेश्वर का सखा केवल परमेश्वर में विचरता रहता है। परमेश्वर और जीवात्मा परस्पर सखा हैं। "द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया" (अथर्व९।९।२०)। स्वापय= प्रभातकाल की शीतल और मन्द-मन्द प्रवाहित वायु स्वापनकारी होती है।]
विषय
निद्रा विज्ञान।
भावार्थ
सोने के लिये अनुकूल स्थिति का उपदेश करते हैं। (वातः भूमिं न अति वाति) प्रचण्ड वायु भूमि पर प्रबल वेग से बह कर घर में वेग से प्रवेश न करे, और (कः चन) कोई पुरुष (न अति पश्यति) खिड़कियों से न झांके। ऐसे स्थान पर हे इन्द्र ! गृह और राष्ट्र के स्वामिन्! राजन् ! (सर्वाः स्त्रियः) सब स्त्रियों को (स्वापय) सुलाओ और (शुनः च) कुत्तों को भी बाहर सुला दो, जिस से घर की रक्षा हो और (इन्द्रसखा) राजा का मित्र बराबर (चरन्) पहरा देता हुआ विचरण करे। अध्यात्म पक्ष में—इन्द्रसखा = आत्मा का मित्र प्राण (चरन्) बराबर विचरण करता रहता है और सब (स्त्रियः) ज्ञानेन्द्रियों और (शुनः) सब कर्मेन्द्रियों को सुला देता है। (वातः) वह प्राण भी (भूमिम्) सुषुप्ति दशा को नहीं तोड़ता और कोई भी इन्द्रिय उस समय देख नहीं सकती।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। स्वपनः ऋषभो वा देवता। १, ३-६ अनुष्टुभः। २ भुरिक्। ७ पुरुस्ताज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्। सप्तर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Sleep
Meaning
The wind does not disturb the air with gusts, nor does any one prowl around and break into privacies. O herb, O peace, let the women go to sleep while the alert security people of the ruler watch and move around for peace.
Translation
May the wind not blow strong on earth;may not any one watch it closely; O friend of soul (i.e., the breath), moving slowly put all the women and dogs to sleep.
Translation
The best place and time of sleep is that where does not blow a violent gust of wind and where does not peep anyone. Make all the women sleep and sleep even the dogs and let the watchman of ruling King watch throughout.
Translation
At the time of sleep, no strong wind should blow to disturb it, none should keep the eyes open. O Prana, friend of the soul, lull all the women, lull the dogs to sleep.
Footnote
Dogs should be kept to keep watch in the house against thieves. Dog awake at the slight sound of thieves, begin to bark, and thus awaken the Inmates of the house.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(न) निषेधे (भूमिम्) पृथिवीम् (वातः) अ० १।११।६। पवनः (अति) अतिशयेन (वाति) गच्छति (पश्यति) प्रेक्षते (कश्चन) कोऽपि जनः (स्त्रियः) अ० १।८।१। स्त्यायति स्तौति वा गुणान् स्तूयते वा सा स्त्री। नारीः (सर्वाः) (स्वापय) निद्रापय (शुनः) श्वन्नुक्षन्पूषन्०। उ० १।१५९। इति दुओश्वि गतिवृद्ध्योः-कनिन्। श्वयतीति श्वा। कुक्कुरान् (च) (इन्द्रसखा) इन्द्रियमिन्द्रलिङ्गमिन्द्रदृष्ट०। पा० ५।२।९३। इति इन्द्र आत्मा। “इन्द्र आत्मा स सखा यस्य प्राणवायोस्तदात्मकः”-इति सायणः। आत्मप्रियः। वातः (चरन्) देहे वर्तमानः ॥
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