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अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 6
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - वृषभः, स्वापनम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - स्वापन सूक्त
    75

    स्वप्तु॑ मा॒ता स्वप्तु॑ पि॒ता स्वप्तु॒ श्वा स्वप्तु॑ वि॒श्पतिः॑। स्वप॑न्त्वस्यै ज्ञा॒तयः॒ स्वप्त्व॒यम॒भितो॒ जनः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्वप्तु॑ । मा॒ता । स्वप्तु॑ । पि॒ता । स्वप्तु॑ । श्वा । स्वप्तु॑ । वि॒श्पति॑: । स्वप॑न्तु । अ॒स्यै॒ । ज्ञा॒तय॑: । स्वप्तु॑ । अ॒यम् । अ॒भित॑: । जन॑: ॥५.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वप्तु माता स्वप्तु पिता स्वप्तु श्वा स्वप्तु विश्पतिः। स्वपन्त्वस्यै ज्ञातयः स्वप्त्वयमभितो जनः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्वप्तु । माता । स्वप्तु । पिता । स्वप्तु । श्वा । स्वप्तु । विश्पति: । स्वपन्तु । अस्यै । ज्ञातय: । स्वप्तु । अयम् । अभित: । जन: ॥५.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 5; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    बच्चों के सुलाने का गीत अर्थात् लोरी।

    पदार्थ

    (अस्यै) इस [सन्तति, पुत्र वा पुत्री के हित] के लिये (माता) माता (स्वप्तु) सोवे, (पिता) पिता (स्वप्तु) सोवे, (श्वा) कुत्ता (स्वप्तु) सोवे, (विश्पतिः) प्रजापालक, गृहपति (स्वप्तु) सोवे। (ज्ञातयः) ज्ञाति के लोग (स्वपन्तु) सोवें, और (अयम्) यह (जनः) सब जने (अभितः) चारों ओर (स्वप्तु) सोवें ॥६॥

    भावार्थ

    अब रात्री में सब लोग चुप-चाप सो जावें, खलबल न मचावें, जिससे यह बालक सुखपूर्वक सो जावे ॥६॥ यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद० ७।५५।५ में है ॥

    टिप्पणी

    ६−(स्वप्तु) ञिष्वप् शयने। इडभावश्छान्दसः। स्वपितु। निद्रातु (माता) जननी (पिता) जनकः (श्वा) म० २। गमनशीलः। वृद्धिशीलः। कुक्कुरः (विश्पतिः) विशां प्रजानां पालको गृही। गृहाधिपतिः (स्वपन्तु) निद्रान्तु (अस्यै) दृश्यमानायै प्रजायै सन्तत्यै। कन्यायाः पुत्रस्य वा हिताय (ज्ञातयः) क्तिच्क्तौ च संज्ञायाम्। पा० ३।३।१७४। इति ज्ञा ज्ञाने-क्तिच्। जानाति कुलस्थितिं स ज्ञातिः। एककुलोत्पन्नाः। पितृव्याद्यः। बान्धवाः। सम्बन्धिनः (अमितः) परितः स्थितः (जनः) लोकः। मनुष्यसमूहः ॥

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    विषय

    छोटे बालक की गाढ़ निद्रा

    पदार्थ

    १. (माता) = इस नव उत्पन्न बालक की माता (स्वप्तु) = अब रात्रि के समय सोये। पिता स्वप्न-पिता भी सोये, (श्वा स्वप्तु) = घर का कुत्ता भी सो जाए-यह भौंकता न रहे, क्योंकि बालक की नींद पर उसका हानिकर प्रभाव होगा। (विश्पतिः) = घर का मुखिया-प्रजापति भी (स्वप्तु) = सो जाए। २. (अस्यै ज्ञातयः) = इसके अन्य बन्धु-बान्धव भी (स्वपन्तु) = सो जाएँ। (अयम्) = यह (अभितः जन:) = चारों ओर के लोग भी  स्वप्तु = सो जाएँ। पड़ोस में भी शोर न होता रहे अथवा घर के नौकर-चाकर भी शोर न करते रहें। वे भी सोने की करें।

    भावार्थ

    छोटे बालक के विकास के लिए उसकी नौंद बड़ी आवश्यक है। माता-पिता व अन्य बन्धु-बान्धव रात्रि में सब सो जाएँ, ताकि शान्त, नीरव वातावरण में बच्चा भी सोया रहे।

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    भाषार्थ

    (स्वप्तु) सोई रहे (माता) माता, (स्वप्तु पिता) सोया रहे पिता, (स्वप्तु श्वा) सोयो रहे कुत्ता, (स्वप्तु) सोया रहे (विश्पतिः) निवेशगृह का स्वामी। (अस्यै) इस स्त्री के लिए (ज्ञातय:) ज्ञाति लोग (स्वपन्तु) सोये रहें, (अर्थम्) यह (अभित:) सब ओर (जन:) जो जनवर्ग है, वह भी सोया रहे।

    टिप्पणी

    [जो अभ्यासमार्गी नहीं हैं उन्हें सोये रहने देना चाहिए, परन्तु जो स्त्री अभ्यासमार्ग चाहती है उसे अभ्यासमण्डल में प्रविष्ट कर लेना चाहिए। "अस्यै" का अभिप्राय है, इसकी आध्यात्मिक उन्नति के लिए। मन्त्र ३ में "पुण्यगन्धाः" स्त्रियों का वर्णन हुआ है। पुण्यगन्धा: का अभिप्राय है पुण्य अर्थात् पवित्र कर्मों के सुगन्धवाली अर्थात धर्मपरायणः स्त्रियां "अस्यै" द्वारा कथित स्त्री इनमें से अपवादरूपा है, जोकि अभ्यास चाहनेवाली धर्म-परायणा है। सायणाचार्य ने "अस्य" पद को अस्याः में परिबर्तित कर "अस्याः स्त्रिय ये ज्ञातय" अर्थ किया है।]

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    विषय

    निद्रा विज्ञान।

    भावार्थ

    चिति शक्ति, चेतना या चितिकला की इस देह में क्या दशा होती है सो बतलाते है। जिस प्रकार गृहिणी के चेतन रहने पर भी उसकी माता, पिता, घर का कुत्ता, गृहपति और अन्य सम्बन्धी और अड़ोस पड़ोस के सभी सो जाते हैं और वह अपने पतिकी सेवा में रत रह कर भी जागती है उसी प्रकार यह चेतना भी जागती रहती है इसकी (माता) पार्थिव देह वा ज्ञान इन्द्रियें (स्वप्तु) सो जायँ, (पिता) इसका पालक मस्तिष्क भी (स्वप्तु) सो जाय, (श्वा स्वप्तु) कर्म भी सो जाय, (विश्पतिः) सब इन्द्रिय प्रजाओं का स्वामी मन भी (स्वप्तु) सुषुप्ति दशा में मग्न होजाय (अस्यै ज्ञातयः) इस के ज्ञाति=जानने हारे, भीतरी प्राण भी (स्वपन्तु) निश्चेष्ट होकर सो जाय और (अमितः स्वप्तु) इसके अड़ोस पड़ोस के शेष अंग भी सो जाय तो भी यह मुख्य चेतना=श्वास प्रश्वास करती हुई चेती रहती है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। स्वपनः ऋषभो वा देवता। १, ३-६ अनुष्टुभः। २ भुरिक्। ७ पुरुस्ताज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्। सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Sleep

    Meaning

    Let the mother sleep, let the father sleep, let the watch-dog sleep, let the master of the home sleep. Let the faculties related to the soul sleep. Let the people of this land sleep at peace in security all round (in an ideal state of order).

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    Translation

    May the mother sleep; may the father sleep; may the watch-dog sleep; may the house-holder sleep; may her kinsfolk sleep; and may all these-people around her be bulled to sleep (sleep as well). (Cf. Rg. VII.5.5)

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    Translation

    In the time of sleep, sleeps mother, sleeps father, sleeps and sleeps the soul which is the master of the Organs, sleep all the men of family of the slumbering one and sleeps ever he who is the neighbor.

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    Translation

    Sleep mother, let the father sleep, sleep dog, and master of the house. Let all her kinsmen sleep, steep all the people in the neighborhood.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(स्वप्तु) ञिष्वप् शयने। इडभावश्छान्दसः। स्वपितु। निद्रातु (माता) जननी (पिता) जनकः (श्वा) म० २। गमनशीलः। वृद्धिशीलः। कुक्कुरः (विश्पतिः) विशां प्रजानां पालको गृही। गृहाधिपतिः (स्वपन्तु) निद्रान्तु (अस्यै) दृश्यमानायै प्रजायै सन्तत्यै। कन्यायाः पुत्रस्य वा हिताय (ज्ञातयः) क्तिच्क्तौ च संज्ञायाम्। पा० ३।३।१७४। इति ज्ञा ज्ञाने-क्तिच्। जानाति कुलस्थितिं स ज्ञातिः। एककुलोत्पन्नाः। पितृव्याद्यः। बान्धवाः। सम्बन्धिनः (अमितः) परितः स्थितः (जनः) लोकः। मनुष्यसमूहः ॥

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