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अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 5
    ऋषिः - गरुत्मान् देवता - वनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - विषनाशन सूक्त
    64

    परि॒ ग्राम॑मि॒वाचि॑तं॒ वच॑सा स्थापयामसि। तिष्ठा॑ वृ॒क्ष इ॑व॒ स्थाम्न्यभ्रि॑खाते॒ न रू॑रुपः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    परि॑ । ग्राम॑म्ऽइव । आऽचि॑तम् । वच॑सा । स्था॒प॒या॒म॒सि॒ । तिष्ठ॑ । वृ॒क्ष:ऽइ॑व । स्थाम्नि॑ । अभ्रि॑ऽखाते । न । रू॒रु॒प॒:। ७.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परि ग्राममिवाचितं वचसा स्थापयामसि। तिष्ठा वृक्ष इव स्थाम्न्यभ्रिखाते न रूरुपः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परि । ग्रामम्ऽइव । आऽचितम् । वचसा । स्थापयामसि । तिष्ठ । वृक्ष:ऽइव । स्थाम्नि । अभ्रिऽखाते । न । रूरुप:। ७.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 7; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    विष नाश करने का उपदेश।

    पदार्थ

    (आचितम्) एकत्र हुए (ग्रामम् इत्) जनसमूह [शत्रु वृन्द] के समान [तुझको] (वचसा) वचनमात्र से (परिस्थापयामसि=०-मः) हम घेरते हैं। (वृक्षः इव) वृक्ष के समान (स्थाम्नि) अपने स्थान पर (तिष्ठ) ठहर। (अभ्रिखाते) हे कुद्दाल से खोदी हुई ! तूने (न) नहीं (रूरुपः) मूर्छित किया है ॥५॥

    भावार्थ

    विद्वान् वैद्य विचारपूर्वक उपाय के साथ विष को प्रभावरहित करके निकाल देते हैं, जैसे शूर पुरुष शत्रुसेना को घेरकर हरा देते हैं ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−(परि) परितः सर्वतः (ग्रामम्) ग्रसेरा च। उ० १।१४३। इति ग्रस ग्रहणे, भक्षणे-मन्, धातोराकारः। जनसमूहम्। शत्रुवृन्दम् (इव) यथा (आचितम्) आङ्+चि-क्त। आकीर्णम्। व्याप्तम् (वचसा) वचनमात्रेण (स्थापयामसि) दध्मः (तिष्ठ) स्थिता भव (वृक्ष इव) यथा वृक्षो निश्चलो भूत्वा (स्थाम्नि) सर्वधातुभ्यो मनिन् उ० ४।१४५। इति ष्ठा गतिनिवृत्तौ-मनिन् स्वस्थाने। मूले (अभ्रिखाते) सर्वधातुभ्य इन् उ० ४।११८। इति अभ्र गतौ-इन् अपादाने। अभ्रिः काष्ठकुद्दालः। तीक्ष्णाग्रो लोहदण्डः। खन विदारे-क्त। हे खननसाधनेन विदारिते ओषधे (न) नहि (रूरुपः) म० ३। अमूमुहः ॥

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    विषय

    स्थाम्नि तिष्ठ

    पदार्थ

    १. (ग्रामम् इव) = ग्राम के समान-जनसमूह के समान (आचितम्) = उपचित हुए-हुए इस विष को (वचसा) = बच ओषधि के प्रयोग से (परिस्थापयामसि) = अन्यत्र स्थापित करते हैं, अर्थात् दूर करते हैं। २. हे (अभ्रिखाते)  = कुदाल से खोदी गई ओषधे! तू (वृक्षः इव)-वृक्ष की भांति (स्थाम्नि)-स्थिरता में तिष्ठ-स्थित हो, अपने स्थान पर वृक्ष की भाँति निश्चल होकर ठहर । तू शरीर में व्याप्त मत हो। (रुरूमः) = तु शरीर को मूढ़ मत बना। वच के प्रयोग से गतमन्त्र की "मदावती' का प्रभाव सीमित [localised] हो जाता है।

    विशेष

    विष के बढ़ते प्रभाव को हम वच के प्रयोग से सीमित कर देते हैं।

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    भाषार्थ

    (परि ग्रामम्१) प्रति ग्राम के सब ओर (आचितम) पूर्णतया चिने गये [गृहसमूह] को (इव) जैसे (वचसा) राजाज्ञा द्वारा (स्थापयामसि) हम स्थापित करते हैं, स्थिर करते हैं, (इव) इसी प्रकार (अभ्रिखाते) कुदाली द्वारा खोदी गई है औषधि ! (वृक्ष इव) वृक्ष के सदृश तू (स्थाम्नि) नियत स्थान में (तिष्ठ) स्थित हो जा, (न रूरुपः) [अनजाने] खानेवाले को तू मूर्छित न कर, [अर्थात् खानेवाले के उदर में ही तू स्थिर रह, उसके शरीर में न फैल । परिपक्व करम्भ के सेवन से तु खानेवाले के उदर में ही विलीन हो जा। जल तथा करम्भ ये दोनों, इस औषध के विघातक हैं, इसके प्रभाव को नष्ट कर देते हैं।] [१. परिग्रामम्= ग्रामं ग्रामं परि। वीप्सा अभिप्राय है। यथा वृक्षं वृक्षं परिषिचति।]

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    विषय

    विष चिकित्सा का उपदेश।

    भावार्थ

    (ग्रामम् परि) ग्राम भर में (आचितं) फैले हुए अराजकता या दंगे को जिस प्रकार राजा अपने हुकुम से एक ही बार रोक देता है उसी प्रकार हम विषवैद्य तुझ, विष को, (वचसा स्थापयामसि) अपनी प्रभावजनक वाणी द्वारा स्थिर कर दें, शरीर में फैले हुए विष को घातक प्रभाव करने से रोकें। हे पुरुष ! तू (अभ्रि-खाते) कुद्दाले से खोदे हुए (स्थाम्नि) गढ़े में (वृक्ष इव) दरख्त के समान (तिष्ठ) गड़ कर खड़ा हो जा, (न रूरुपः) इससे तू मूर्छित न होगा। शब्द का प्रभाव विष उतारने, उसको रोकने आदि में प्रायः देखा गया है पृथिवी में गढ़ा खोद कर उसमें गले तक गाड़ देने से भी पृथिवी विष चुस जाती है।

    टिप्पणी

    देखो डा० जुस्ट की मिट्टी चिकित्सा।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गरुत्मान् ऋषिः। वनस्पतिर्देवता। १-३, ५-७ अनुष्टुभः, ४ स्वराट्। सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Antidote to Poison

    Meaning

    Like a common village crowd collected together, we stop and disperse you with a word. O patient, stand you upright like a tree in its rooted spot. O herb properly dug out, allow not the patient to fall unconscious.

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    Translation

    With our words of prayer (vacasá), we arrest you, collected like a troop (grama), keep standing at your place like a tree, O herb, dug up with a spade. May you not cause severe pain and collapse.

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    Translation

    I give send off to poison with the speed of word like the gathered crowd of people. O man! stay quiet like a rooted tree in the dug dug out with the mattocks and thus you have not to be unconscious.

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    Translation

    We stop thee through using the medicine vacha, as we do a host of rustic foes gathered together. Stay quiet, O poison, like a rooted tree dug up with mattocks, spread not, gripe not thou.

    Footnote

    ‘Thee' refers to poison.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(परि) परितः सर्वतः (ग्रामम्) ग्रसेरा च। उ० १।१४३। इति ग्रस ग्रहणे, भक्षणे-मन्, धातोराकारः। जनसमूहम्। शत्रुवृन्दम् (इव) यथा (आचितम्) आङ्+चि-क्त। आकीर्णम्। व्याप्तम् (वचसा) वचनमात्रेण (स्थापयामसि) दध्मः (तिष्ठ) स्थिता भव (वृक्ष इव) यथा वृक्षो निश्चलो भूत्वा (स्थाम्नि) सर्वधातुभ्यो मनिन् उ० ४।१४५। इति ष्ठा गतिनिवृत्तौ-मनिन् स्वस्थाने। मूले (अभ्रिखाते) सर्वधातुभ्य इन् उ० ४।११८। इति अभ्र गतौ-इन् अपादाने। अभ्रिः काष्ठकुद्दालः। तीक्ष्णाग्रो लोहदण्डः। खन विदारे-क्त। हे खननसाधनेन विदारिते ओषधे (न) नहि (रूरुपः) म० ३। अमूमुहः ॥

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