अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 31/ मन्त्र 2
ऋषिः - शुक्रः
देवता - कृत्याप्रतिहरणम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - कृत्यापरिहरण सूक्त
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यां ते॑ च॒क्रुः कृ॑क॒वाका॑व॒जे वा॒ यां कु॑री॒रिणि॑। अव्यां॑ ते कृ॒त्यां यां च॒क्रुः पुनः॒ प्रति॑ हरामि॒ ताम् ॥
स्वर सहित पद पाठयाम् । ते॒ । च॒क्रु: । कृ॒क॒वाकौ॑ । अ॒जे । वा॒ । याम् । कु॒री॒रिणि॑ । अव्या॑म् । ते॒ । कृ॒त्याम् । याम् । च॒क्रु: । पुन॑: । प्रति॑ । ह॒रा॒मि॒ । ताम् ॥३१.२॥
स्वर रहित मन्त्र
यां ते चक्रुः कृकवाकावजे वा यां कुरीरिणि। अव्यां ते कृत्यां यां चक्रुः पुनः प्रति हरामि ताम् ॥
स्वर रहित पद पाठयाम् । ते । चक्रु: । कृकवाकौ । अजे । वा । याम् । कुरीरिणि । अव्याम् । ते । कृत्याम् । याम् । चक्रु: । पुन: । प्रति । हरामि । ताम् ॥३१.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
राजा के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(याम्) जिस [हिंसा] को (ते) तेरे (कृकवाकौ) गले से बोलनेवाले कुक्कुट वा मोर पर (वा) अथवा (याम्) जिसको (कुरीरिणि) केशवाले (अजे) बकरे पर (चक्रुः) उन्होंने [शत्रुओं ने] किया है वा (याम्) जिस (कृत्याम्) हिंसा को (ते) तेरी (अव्याम्) भेड़ी पर... म० १ ॥२॥
भावार्थ
राजा उपकारी पक्षियों और चौपायों की रक्षा करे ॥२॥
टिप्पणी
२−(कृकवाकौ) कृके वचः कश्च। उ० १।६। इति कृक+वच परिभाषणे−ञुण्। कृकेण गलेन वक्तीति तस्मिन् कुक्कुटे मयूरे वा (अजे) गतिशीले छागे (वा) अथवा (कुरीरिणि) कृञ उच्च। उ० ४।३३। इति कृञ् करणे−ईरन्, तत इनि। कुरीराः केशाः, तद्वति, यथा सायणभाष्ये, अ० ६।१३८।२। (अव्याम्) मेष्याम्। अन्यद् गतम्। म० १ ॥
विषय
न मारने योग्य प्राणी
पदार्थ
१. (याम्) = जिस (कृत्याम्) = घातक प्रयोग को (ते) = वे ककवाको मोर आदि सुन्दर पक्षियों पर (अजे) = बकरे व बकरियों के समूह पर (वा कुरीरिणि) = वा अन्य सौंगवाले पशुओं पर (चक्रुः) = करते हैं, (यां कृत्याम्) = जिस घातक प्रयोग को (ते) = वे (अव्याम्) = हमारी भेड़ों पर (चक्रुः) = करते हैं, (ताम्) = उस घातक प्रयोग को (पुनः प्रतिहरामि) = फिर उन्हें ही वापस प्राप्त कराता है, उस घातक प्रयोग से उन्हें ही दण्डित करता हूँ। २. (याम्) = जिस हिंसा-कार्य को (ते) = वे (एकशफे) = एक खुरवाले पशु पर (वा पशूनाम् उभयादति) = अथवा दोनों जबड़ों में दाँतवाले पशुओं पर (चक्रुः) = करते हैं। (यां कृत्याम्) = जिस हिंसा-कार्य को (गर्दभे) = गधे पर (चा:) = करते हैं, (ताम्) = उस हिंसा को मैं (पुनः प्रतिहरामि) = फिर वापस उन्हें ही प्राप्त कराता हूँ।
भावार्थ
राष्ट्र में 'मोर, अज, कुरीरी [सींगवाले] पशु, भेड़, घोड़े, गाय व गर्दभ आदि का मारना दण्ड योग्य कार्य समझा जाए।
भाषार्थ
[हे राष्ट्रपति !] (ते) तेरे (कृकवाकौ) कण्ठ से बोलनेवाले मयूर में, (अजे) बकरे में, (वा) या (याम् ) जिस (कृत्याम्) छेदन क्रिया को (कुरीरिणि) शिरोभूषण धारण करनेवाली स्त्री में (चक्रुः) शत्रुओं ने किया है, (ते) तेरी (अव्याम्) भेड़ में (याम्, कृत्याम्.) जिस छेदन-क्रिया को (चक्रुः) किया है (ताम् ) उस प्रकार की छेदन क्रिया को ( पुन:) फिर ( प्रति) प्रतिक्रिया रूप में (हरामि) शत्रु के प्रति मैं [सम्राट्] ले -जाता हूँ [पहुँचाता या वापस करता हूँ।]
टिप्पणी
[कृकवाकु=मयूर कण्ठ द्वारा बोलते हैं, वाणी द्वारा नहीं (उणा० १।६; दयानन्द)। कुरोरिणि= अथवा कुररी=पक्षिभेद (आप्टे); कुररः [पुंसि] पक्षिभेदः (उणा० ३।१३३; दयानन्द)। इससे आगे के मन्त्रों में कृत्या का अर्थ 'हिंस्रक्रिया' किया जाएगा।]
विषय
गुप्त हिंसा के प्रयोग करने वालों का दमन।
भावार्थ
(यां) जिस कृत्या = घातक प्रयोग को (ते) वे नीच पुरुष (कृकवाकौ) मोर आदि सुन्दर पालतू पक्षियों पर, (अजे) और बकरे-बकरियों के गिरोह पर, (कुरीरिणि) कुरीर अर्थात् सींग वाले हमारे अन्य पशुओं पर और (या कृत्यां) जिस घातक प्रयोग को वे (अव्यां) हमारी भेड़ों पर करते हैं (तां) उस घातक प्रयोग से (पुनः प्रति हरामि) फिर उनको ही दण्डित करूं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शुक्र ऋषिः। कृत्यादूषणं देवता। १-१० अनुष्टुभः। ११ बुहती गर्भा। १२ पथ्याबृहती। द्वादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Refutation of Evil
Meaning
Whatever mischief they have done to the cock and the peacock or to the goat and the ram or the sheep, that I counter, defuse and return to the doer (by way of punishment).
Translation
What fatal contrivance they have put for you in a peacock, in a goat or in a horned ram, and what they have put in sheep, that I hereby take away and send it back again.
Translation
I return on them their harmful artificial device which they use in the jungle-cock, which they cast, which they apply in the ram having harms; or in the goat and which they fix in the sheep.
Translation
The mischief the enemies commit upon thy forest cock, goat, hornedram, and thy ewe, the same do I remove.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(कृकवाकौ) कृके वचः कश्च। उ० १।६। इति कृक+वच परिभाषणे−ञुण्। कृकेण गलेन वक्तीति तस्मिन् कुक्कुटे मयूरे वा (अजे) गतिशीले छागे (वा) अथवा (कुरीरिणि) कृञ उच्च। उ० ४।३३। इति कृञ् करणे−ईरन्, तत इनि। कुरीराः केशाः, तद्वति, यथा सायणभाष्ये, अ० ६।१३८।२। (अव्याम्) मेष्याम्। अन्यद् गतम्। म० १ ॥
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