अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 31/ मन्त्र 9
ऋषिः - शुक्रः
देवता - कृत्याप्रतिहरणम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - कृत्यापरिहरण सूक्त
62
यां ते॑ च॒क्रुः पु॑रुषा॒स्थे अ॒ग्नौ संक॑सुके च॒ याम्। म्रो॒कं नि॑र्दा॒हं क्र॒व्यादं॒ पुनः॒ प्रति॑ हरामि॒ ताम् ॥
स्वर सहित पद पाठयाम् । ते॒ । च॒क्रु: । पु॒रु॒ष॒ऽअ॒स्ये । अ॒ग्नौ । सम्ऽक॑सुके । च॒ । याम् । भ्रो॒कम् । नि॒:ऽदा॒हम् । क्र॒व्य॒ऽअद॑म् ।पुन॑: । प्रति॑ । ह॒रा॒मि॒ । ताम् ॥३१.९॥
स्वर रहित मन्त्र
यां ते चक्रुः पुरुषास्थे अग्नौ संकसुके च याम्। म्रोकं निर्दाहं क्रव्यादं पुनः प्रति हरामि ताम् ॥
स्वर रहित पद पाठयाम् । ते । चक्रु: । पुरुषऽअस्ये । अग्नौ । सम्ऽकसुके । च । याम् । भ्रोकम् । नि:ऽदाहम् । क्रव्यऽअदम् ।पुन: । प्रति । हरामि । ताम् ॥३१.९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
राजा के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(याम्) जिस [हिंसा] को (ते) तेरे (पुरुषास्थे) पुरुषों की हड्डी में, (च) और (याम्) जिसको (संकसुके) भभकती (अग्नौ) आग में (चक्रुः) उन [शत्रुओं] ने किया है, (ताम्) उसको (म्रोकम्) चोर समान भयानक (क्रव्यादम्) मांस खानेवाले (निर्दाहम् प्रति) जला देनेवाले अग्नि में (पुनः) अवश्य (हरामि) मैं नाश करता हूँ ॥९॥
भावार्थ
मृतक-दाहक्रिया में विघ्नकारी दुष्टों को राजा यथावत् दण्ड देकर नष्ट करे ॥९॥
टिप्पणी
९−(पुरुषास्थे) अच् प्रत्यन्ववपूर्वात्सामलोम्नः। पा० ५।४।७५। इति पुरुष+अस्थि−अच् प्रत्ययः, अजिति योगविभागात्। पुरुषाणामस्थिनि (अग्नौ) पावके (संकसुके) वलेरूकः। उ० ४।४०। इति सम्+कस गतौ शासने च−ऊक, छान्दसो ह्रस्वः। संगच्छमाने। जाज्वल्यमाने (म्रोकम्) अ० २।२४।३। चौरवद् भयानकम् (निर्दाहम्) नितरां दाहकं पावकम् (क्रव्यादम्) शवमांसभक्षकम् (पुनः) अवश्यम् (प्रति) अभिलक्ष्य (हरामि) नाशयामि (ताम्) हिंसाम् ॥
विषय
म्रोकं, निहिं, क्रव्यादम्
पदार्थ
१. (याम्) = जिस हिंसन-क्रिया को (पुरुषास्थे) = पुरुष की हड्डी में (ते) = वे शत्रु (चक्रुः) = करते हैं, (च) = और (याम्) = जिस कृत्या को (संकसुके) = [सं कस् गतौं] सम्यक् गतिवाली जाज्वल्यमान अग्नि में करते हैं, (ताम्) = उस कृत्या को (मोकम्) = चोर के प्रति, (निर्दाहम्) = आग लगानेवाले के प्रति तथा (क्रव्यादम्) = मांसभक्षक के प्रति (पुन:) = फिर (प्रतिहरामि) = वापस प्राप्त कराता हूँ।
भावार्थ
पुरुष-अस्थियों को तोड़नेवाले व आग लगानेवाले दण्डित हों। चोरों व मांसभक्षियों को भी दण्डित किया जाए।
भाषार्थ
[हे राष्ट्रपति !] (ते ) तेरे (पुरुषास्थे) किसी मृतपुरुष की हड्डियों में (याम्) जिस हिंस्रक्रिया को ( चक्रुः) शत्रुओं ने किया है, (च) और (याम्) जिस हिंस्रक्रिया को (संकसुके अग्नौ) विनाशक अग्नि में किया है। (म्रैकम्) वेगवती, (निर्दाहम् ) निःशेषदाह करनेवाली (क्रव्यादम् ) मांसभक्षक अग्नि में किया है। (ताम् ) उस प्रकार की हिंस्रक्रिया को (पुनः) फिर ( प्रति ) प्रति-क्रिया रूप में (हरामि) शत्रु के प्रति मैं सम्राट् ले जाता हूँ [पहुंचाता या वापस करता हूँ।]
टिप्पणी
[पुरुषास्थे= अन्त्येष्टि के पश्चात् संचित की गई अस्थियों में हिंस्र वस्तु को अर्थात् विस्फोटक को रख देना, इस विचार से कि जब अस्थियों को गाड़ा जायगा तो विस्फोटक कटकर गाड़नेवालों को यह हिंसित कर देगा। संकसुके = सम् + कस् To destroy (आप्टे), अन्त्येष्टिकर्म के लिए सामग्री में विस्फोटकों को मिश्रित कर देना।]
विषय
गुप्त हिंसा के प्रयोग करने वालों का दमन।
भावार्थ
(ते) वे दुष्ट पुरुष (याम्) जिस कुकृत्य को (पुरुषास्थे) पुरुष की हड्डियों में और (यां च) जिस कुकृत्य को (सं-कसुके) नरद्रोही चिता दाहक (अग्नौ) आग में (चक्रुः) करते हैं, तथा जो (निर्दाहं) अग्नि से लोगों के घर भस्म करते हैं और (क्रव्यादं) हिंसा कर मांस खाते हैं उन घोर पापियों को भी फिर वैसा ही दण्ड प्राप्त कराऊं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शुक्र ऋषिः। कृत्यादूषणं देवता। १-१० अनुष्टुभः। ११ बुहती गर्भा। १२ पथ्याबृहती। द्वादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Refutation of Evil
Meaning
Whatever damage they cause in human bones or in the form of destructive blazing fire, I counter and pay the saboteur, arsonist and the carnivore back in the same coin.
Translation
What fatal contrivance they have put for you in human bone (purusasthe) and what they have put in the destructive (samkasuke) fire, this destroying, causing violent burning and flesh-eating (kravyadam) one, that I hereby take away and send it back again.
Translation
I strike back on them their harmful artificial device which they use in the human bone, which they use in flickering fire and which they use in stealthily blazed flesh-consuming fire.
Translation
I remove the mischief they committed in human bones and blazing fire of the pyre. I punish the sinners who are dreadful like a thief, burn the houses of the people, and eat raw flesh through violence.
Footnote
‘I’ refers to the king.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
९−(पुरुषास्थे) अच् प्रत्यन्ववपूर्वात्सामलोम्नः। पा० ५।४।७५। इति पुरुष+अस्थि−अच् प्रत्ययः, अजिति योगविभागात्। पुरुषाणामस्थिनि (अग्नौ) पावके (संकसुके) वलेरूकः। उ० ४।४०। इति सम्+कस गतौ शासने च−ऊक, छान्दसो ह्रस्वः। संगच्छमाने। जाज्वल्यमाने (म्रोकम्) अ० २।२४।३। चौरवद् भयानकम् (निर्दाहम्) नितरां दाहकं पावकम् (क्रव्यादम्) शवमांसभक्षकम् (पुनः) अवश्यम् (प्रति) अभिलक्ष्य (हरामि) नाशयामि (ताम्) हिंसाम् ॥
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