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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 31 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 31/ मन्त्र 6
    ऋषिः - शुक्रः देवता - कृत्याप्रतिहरणम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कृत्यापरिहरण सूक्त
    65

    यां ते॑ च॒क्रुः स॒भायां॒ यां च॒क्रुर॑धि॒देव॑ने। अ॒क्षेषु॑ कृ॒त्यां यां च॒क्रुः पुनः॒ प्रति॑ हरामि॒ ताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    याम् । ते॒ । च॒क्रु: । स॒भाया॑म् । याम् । च॒क्रु: । अ॒धि॒ऽदेव॑ने । अ॒क्षेषु॑ । कृ॒त्याम् । याम् । च॒क्रु: । पुन॑: । प्रति॑ । ह॒रा॒मि॒ । ताम् ॥३१.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यां ते चक्रुः सभायां यां चक्रुरधिदेवने। अक्षेषु कृत्यां यां चक्रुः पुनः प्रति हरामि ताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    याम् । ते । चक्रु: । सभायाम् । याम् । चक्रु: । अधिऽदेवने । अक्षेषु । कृत्याम् । याम् । चक्रु: । पुन: । प्रति । हरामि । ताम् ॥३१.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 31; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (याम्) जिस (हिंसा) को (ते) तेरी (सभायाम्) सभा में (चक्रुः) उन्होंने (शत्रुओं ने) किया है, और (याम्) जिसको तेरे (अधिदेवने) क्रीड़ास्थान उपवन आदि में (चक्रुः) उन्होंने किया है। (याम्) जिस (कृत्याम्) हिंसा को (अक्षेषु) व्यवहारों में... म० १ ॥६॥

    भावार्थ

    राजा सभाओं, उपवन आदिकों और व्यवहारों में विघ्नकारी पुरुषों को दण्ड देता रहे ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(सभायाम्) सह भान्ति यत्र। समाजे (अधिदेवने) दिवु क्रीडादिषु−ल्युट्। उपवनादौ क्रीडास्थाने (अक्षेषु) अ० ४।३८।५। व्यवहारेषु। अन्यद् गतम् ॥

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    विषय

    सभा, अधिदेवन, अक्ष, सेना, इष्यायुध, दुन्दुभि

    पदार्थ

    १.(याम्) = जिस हिंसा के कार्य को (ते) = वे शत्रु (सभायां चक्रुः) = सभा में करते हैं, संसद् के विषय में जिस घातपात की क्रिया को करते हैं [संसद् भवन को ही बारूद आदि से उड़ाने की सोचते हैं], (याम्) = जिस कृत्या को (अधिदेवने) = तेरी क्रीड़ा के स्थल उपवन आदि में (चक्रुः) = करते हैं, (या कृत्याम्) = जिस छेदन-भेदन के कार्य को (अक्षेषु) = व्यवहारों में करते हैं, (ताम्) = उस सब हिंसन-क्रिया को (पुनः) = फिर (प्रतिहरामि) = वापस उन्हीं को प्राप्त कराता हूँ। २. (याम्) = जिस हिंसन-क्रिया को (ते) = वे शत्रु (सेनायां चक्रुः) = सेना के विषय में करते हैं-सेना में असन्तोष आदि फैलाने का प्रयत्न करते है, (याम्) = जिस कृत्या को (इषु आयुधे) = बाण आदि अस्त्रों के विषय में (चक्रुः) = करते हैं, (याम्) = जिस कृत्या को (दुन्दुभौ) = युद्धवाद्यों के विषय में (चक्रुः) = करते हैं, (ताम्) = उस सब कृत्या को (पुन:) = फिर (प्रतिहरामि) = वापस उन शत्रुओं को ही प्राप्त कराता हूँ।

    भावार्थ

    'सभा को, क्रीड़ास्थल को तथा सब व्यवहारों को शत्रुओं के हिंसा-प्रयोगों से बचाया जाए। इसीप्रकार सेना को, शस्त्रास्त्रों को, युद्धवाद्यों को शत्रुकृत कृत्याओं से सुरक्षित करना चाहिए।

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    भाषार्थ

    [हे राष्ट्रपति !] (ते) तेरी (सभायाम्) लोकसभा में (याम् ) जिस (कृत्याम्) हिंस्रकिया को (चक्रुः) शत्रुओं ने किया है, (अधिदेवने) क्रीड़ा भूमि में (याम्) जिस हिंस्रक्रिया को (चक्रुः) किया है। (अक्षेषु) न्यायालयों में (याम् कृत्याम्) जिस हिंस्रक्रिया को ( चक्रु:) किया है, ( ताम् ) उस प्रकार की हिंस्रक्रिया को (पुनः) फिर ( प्रति) प्रतिक्रिया रूप में (हरामि) शत्रु के प्रति मैं [सम्राट ] ले जाता हूँ [पहुँचाता या, वापस करता हूँ]।

    टिप्पणी

    [सभायाम् ; देखो (अथर्व० ७।१३।१८।१०८, आदि) अधिदेवने=अधि+ दिवु क्रीडायाम् (दिवादिः)। अक्षेषु= अक्षम् "Leagal Procedure, a law-suit." अक्षपटलम् A court of law. a depositores of legal documents. अक्षपाठकः one who is well-vesed in law, a judge (आप्टे)।]

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    विषय

    गुप्त हिंसा के प्रयोग करने वालों का दमन।

    भावार्थ

    (ते) वे दुष्ट पुरुष (यां) जिस दुष्टाचार को (सभायां चक्रुः) सभा में करते हैं और (यां) जिस नीच कर्म को (अधि-देवने) जुआखोरी में और (अक्षेषु यां कृत्यां चक्रुः ०) अक्ष= जूए के पासों में करते हैं उस सब करतूत के बदले में वही अनर्थकारी दण्ड उनको भी हूं ! सभा में दलबन्दी करके परद्रोह करते हैं, जूए में पर द्रव्य हरण और नाना दुराचार करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शुक्र ऋषिः। कृत्यादूषणं देवता। १-१० अनुष्टुभः। ११ बुहती गर्भा। १२ पथ्याबृहती। द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Refutation of Evil

    Meaning

    Whatever damage they do in the assembly or in gardens and play grounds, or whatever mischief they do in gambling dens, all that I counter and render back to the doer.

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    Translation

    What fatal contrivance they have put for you in the assembly hall (sabhà), what they have put in the gambling board (adhidevane) and what they have put in the dice (aksesu), that I hereby take away and send it back again.

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    Translation

    I strike back on them their harmful artificial device which they use in assembly, which they use in play and which they use upon dice.

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    Translation

    The mischief that evil-minded persons have committed upon the Assembly, the gambling-board, and upon the dice, the same do I remove.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(सभायाम्) सह भान्ति यत्र। समाजे (अधिदेवने) दिवु क्रीडादिषु−ल्युट्। उपवनादौ क्रीडास्थाने (अक्षेषु) अ० ४।३८।५। व्यवहारेषु। अन्यद् गतम् ॥

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