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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 8
    ऋषिः - अथर्वा देवता - अरातिसमूहः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अरातिनाशन सूक्त
    34

    उ॒त न॒ग्ना बोभु॑वती स्वप्न॒या स॑चसे॒ जन॑म्। अरा॑ते चि॒त्तं वीर्त्स॒न्त्याकू॑तिं॒ पुरु॑षस्य च ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त । न॒ग्ना । बोभु॑वती । स्व॒प्न॒ऽया । स॒च॒से॒ । जन॑म् । अरा॑ते । चि॒त्तम् । वि॒ऽईर्त्स॑न्ती । आऽकू॑तिम् । पुरु॑षस्य । च॒ ॥७.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत नग्ना बोभुवती स्वप्नया सचसे जनम्। अराते चित्तं वीर्त्सन्त्याकूतिं पुरुषस्य च ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत । नग्ना । बोभुवती । स्वप्नऽया । सचसे । जनम् । अराते । चित्तम् । विऽईर्त्सन्ती । आऽकूतिम् । पुरुषस्य । च ॥७.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 7; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    पुरुषार्थ करने के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (उत) और (अराते) हे अदान शक्ति [निर्धनता] (पुरुषस्य) मनुष्य के (चितम्) चित्त (च) और (आकूतिम्) संकल्प (वीर्त्सन्ती) असिद्ध करती हुई (नग्ना) लज्जित (बोभुवती) बार-बार होती हुई तू (स्वप्नया) नींद [आलस्य] के साथ (जनम्) जनसमूह को (सचसे) प्राप्त होती है ॥८॥

    भावार्थ

    मनुष्य निर्धनता के कारण अपने चित्त और संकल्प को नष्ट करते, लज्जित और आलसी होते हैं ॥८॥

    टिप्पणी

    ८−(उत) अपि च (नग्ना) ओनज व्रीडायाम्−क्त ओदितश्च। पा० ८।२।४५। इति तस्य न। लज्जिता (बोभुवती) भू सत्तायां यङ्लुगन्तात्−शतृ। पुनः पुनर्भवन्ती (स्वप्नया) सुपां सुलुक्०। पा–० ७।१।३९। इति विभक्तेर्याच्। स्वप्नेन। आलस्येन (सचसे) समवैषि (जनम्) मनुष्यसमूहम् (अराते) हे अदानशक्ते (चित्तम्) अन्तःकरणम् (वीर्त्सन्ती) म० १। वि+ऋधु−सन्, शतृ, ङीप्। असाधयन्ती नाशयन्ती (आकूतिम्) संकल्पम् (पुरुषस्य) मनुष्यस्य (च) ॥

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    विषय

    निमीवन्तीम् नितुदन्तीम्

    पदार्थ

    १. हे (असमृद्धे) = ऐश्वर्य के अभाव ! (परः अप) = इह हमसे परे सुदूर प्रदेश में चला जा । हम (ते) = तेरे लिए (हेतिम्) = वज्र को (विनयामसि) = विशेषरूप से प्राप्त कराते हैं, अर्थात् वज्रप्रहार द्वारा तेरा विनाश करते हैं। असमृद्धि को नष्ट करनेवाला वज्र क्रियाशीलता ही है । २. हे (अराते) = अदानशीलते! दान न देने की वृत्ते ! (अहम्) = मैं (त्वा) = तुझे (निमीवन्तीम्) = (निमी Shut the eyes, मी to destroy ) आँखों को बन्द कर देनेवाली, अर्थात् ज्ञान पर पर्दा डाल देनेवाली तथा विनाशकारिणी और (नितुदन्तीम्) = परिणाम में निश्चय से पीड़ित करनेवाली वेद जानता हूँ। अदानशीलता 'अज्ञान, ह्रास व पीड़ा' का कारण बनती है ।

    भावार्थ

    हम श्रम द्वारा असमृद्धि को दूर करें तथा दानशीलता द्वारा ह्रास व कष्टों से बचें।

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    भाषार्थ

    (उत) तथा (नग्ना बोभुवती) नग्न होती हुई, (स्वप्नया=स्वप्नेन) स्वप्न के साथ (जनम् ) जन को ( सचसे ) तू सम्बद्ध कर देती है; (अराते) हे अदानभावना ! तू (पुरुषस्य) पुरुष के (चित्तम् ) चित्त को ( च) और (आकूतिम्) संकल्प को (वीर्त्सन्ती ) वीरतापूर्वक अर्थात् हठात् उपक्षीण करती है।

    टिप्पणी

    [अदानभावना के होते निर्धन, वस्त्रों से रहित होकर नग्न हो जाते हैं, मानो अदानभावना नग्न होकर इनमें प्रकट हुई है। ऐसे व्यक्तियों को स्वप्न भी निज निर्धनता के होते रहते हैं। निर्धनता के कारण इनके चित तथा संकल्प भी क्षीण हो जाते हैं, (तसु उपक्षये, दिवादि:)। अदानभावना की बीरता हठ में प्रकट होती है, वीरता, दहता, हठ।]

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    विषय

    अधीन भृत्यों को वेतन देने की व्यवस्था।

    भावार्थ

    हे अराते ! अदानशीलते ! तू (पुरुषस्य) पुरुष, उद्यमी जन के (चित्तं) चित्त को (आकूतिं च) और बुद्धि को भी (वि-ईर्त्सन्ती) मन्द कर देती है, (उत) और (नग्ना बोभुवती) अपने नग्न रूप में तू (जनम्) मनुष्य के पास (स्वप्नया) आलस्य, बेख़बरी से (सचसे) आ जाती है। अर्थात् कंजूसी प्रथम चित्त और बुद्धि में खोट पैदा करती है और अपने नग्न रूप में भी अज्ञान दशा में मनुष्य पर सवार हो जाती है और उसके साथ मनुष्य भी लोभ में पड़कर बेशर्म हो जाता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। बहवो देवताः। १-३, ६-१० आदित्या देवताः। ४, ५ सरस्वती । २ विराड् गर्भा प्रस्तारपंक्तिः। ४ पथ्या बृहती। ६ प्रस्तारपंक्तिः। २, ३, ५, ७-१० अनुष्टुभः। दशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    No Miserliness, No Misery

    Meaning

    Off you, Arati, indigent of mind and niggard at heart, persistently naked and shameless, you seize people in sloth and, by dreams, shake man’s resolution of mind and disturb his cherished values to the depths of the heart.

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    Translation

    O niggardliness, even becoming stark naked, you haunt people even in their dreams, frustrating the thinking and intending of a man.

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    Translation

    This misery blunting the mind and intention of man and assuming often its extreme naked form haunts him in the sleep.

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    Translation

    O Poverty, baffling the thought, and the firm intention of aman, oft coming in thy nakedness, thou makest people slothful.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(उत) अपि च (नग्ना) ओनज व्रीडायाम्−क्त ओदितश्च। पा० ८।२।४५। इति तस्य न। लज्जिता (बोभुवती) भू सत्तायां यङ्लुगन्तात्−शतृ। पुनः पुनर्भवन्ती (स्वप्नया) सुपां सुलुक्०। पा–० ७।१।३९। इति विभक्तेर्याच्। स्वप्नेन। आलस्येन (सचसे) समवैषि (जनम्) मनुष्यसमूहम् (अराते) हे अदानशक्ते (चित्तम्) अन्तःकरणम् (वीर्त्सन्ती) म० १। वि+ऋधु−सन्, शतृ, ङीप्। असाधयन्ती नाशयन्ती (आकूतिम्) संकल्पम् (पुरुषस्य) मनुष्यस्य (च) ॥

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