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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 102 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 102/ मन्त्र 2
    ऋषिः - जमदग्नि देवता - अश्विनौ छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अभिसांमनस्य सूक्त
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    आहं खि॑दामि ते॒ मनो॑ राजा॒श्वः पृ॒ष्ट्यामि॑व। रे॒ष्मच्छि॑न्नं॒ यथा॒ तृणं॒ मयि॑ ते वेष्टतां॒ मनः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । अ॒हम् । खि॒दा॒मि॒ । ते॒ । मन॑: । रा॒ज॒ऽअ॒श्व: । पृ॒ष्ट्याम्ऽइ॑व। रे॒ष्मऽछि॑न्नम् । यथा॑ । तृण॑म् । मयि॑ । ते॒ । वे॒ष्ट॒ता॒म् । मन॑: ॥१०२.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आहं खिदामि ते मनो राजाश्वः पृष्ट्यामिव। रेष्मच्छिन्नं यथा तृणं मयि ते वेष्टतां मनः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । अहम् । खिदामि । ते । मन: । राजऽअश्व: । पृष्ट्याम्ऽइव। रेष्मऽछिन्नम् । यथा । तृणम् । मयि । ते । वेष्टताम् । मन: ॥१०२.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 102; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    जितेन्द्रिय होने का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे प्राणी !] (अहम्) मैं (ते मनः) तेरे मन को (आखिदामि) ऐसे खीचता हूँ (इव) जैसे (राजाश्वः) बड़ा अश्ववार (पृष्ट्याम्) बागडोर को। (मयि) मुझ में (ते मनः) तेरा मन (वेष्टताम्) लिपटा रहे (यथा) जैसे (रेष्मच्छिन्नम्) व्याकुल करनेवाली आँधी से तोड़ा गया (तृणम्) घास ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य अपने मन को कुविषयों से खींच कर तत्त्व विचार में ऐसा लगावे, जैसा सुसारथी चञ्चल घोड़े को बागडोरी से वश में करता है, अथवा जैसे घास आँधी से टूट कर आँधी के वश में हो जाती है ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(अहम्) जितेन्द्रियः (आखिदामि) आकर्षामि (ते) तव (मनः) अन्तःकरणम् (राजाश्वः) अश्वमारोहतीति अश्वारूढः, स एव अश्वः। विनापि प्रत्ययं पूर्वोत्तरपदयोर्वा लोपो वक्तव्यः। वा० पा० ५।३।८३। इत्यारूढपदलोपः राजाश्वारूढः=राजाश्वः, कुशलोऽश्वारूढः (पृष्ट्याम्) पृषु सेचनहिंसासंक्लेशनेषु−क्तिन्, ततो यत्। पृष्टौ क्लेशसाधनाया रज्ज्वां भवरश्मिप्रग्रहम् (इव) यथा (रेष्मच्छिन्नम्) रिष हिंसायाम्−मनिन्। रेषकेण तीव्रवायुना भग्नम् (यथा) येन प्रकारेण (मयि) मम वशे (ते) तव (वेष्टताम्) आच्छाद्यताम् (मनः) ॥

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    विषय

    मयि ते वेष्टतां मनः

    पदार्थ

    १. (अहम्) = मैं (ते मन:) = तेरे मन को (आखिदामि) = इसप्रकार खींचता है, (इव) = जैसे (राजाश्व:) = श्रेष्ठ घोड़ा पृष्टयाम् शंकुबद्ध सम्बन्धन रज्जु को। २. (यथा रेष्माछिन्नम्) = [रेष्मा वात्या] जैसे वात्यात्मक वायु से छिन्न तृण उसके वश में हुआ-हुआ उसी में घूमता है, उसी प्रकार (ते) = तेरा (मन:) = मन (मयि वेष्टताम्) = मेरे अधीन होकर घूमनेवाला हो। तेरा मन मुझसे कभी दूर न हो।

    भावार्थ

    जैसे श्रेष्ठ घोड़ा सम्बन्धन रजु को और बात्य तृणों को खींचता है, उसी प्रकार मैं [प्रभु] तेरे मन को अपनी ओर खींचता हूँ।

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    भाषार्थ

    हे रुष्ट पत्नी (ते मनः) तेरे मन को (अहम्) मैं पति (आ खिदामि) दैन्यपुक्त करता हूं, (इव) जैसे (राजाश्व:) अश्वों का राजा अर्थात् शक्तिशाली अश्व (पृष्ट्याम्) अश्वों को देन्ययुक्त करता है। तथा (यथा) जैसे (रेष्मछिन्नम्) प्रबल वायु मे कटा (तृणम्) तिनका [वायु में] (वेष्टताम्) लिपट जाता है वैसे (ते मनः) तेरा मन (मयि) मुझ में (वेष्टताम्) लिपट जाए।

    टिप्पणी

    [पृष्ट्याम्= अथर्ववेद की कई प्रतिलिपियों में 'पृष्ठयाम्' पाठ है। इस का अर्थ है अश्व के पृष्ठ के साथ संलग्न होकर रथ में जुती अश्वा घोड़ी। साथ-साथ जुते होने के कारण राजाश्व अश्वा को भोग के लिये दैन्ययुक्त कर देता है। 'आखिदामि' खिद दैन्ये (दिवादिः, रुधादिः), और अश्वा भोगार्थ राजा के अनुकूल हो जाती है। यही अवस्था पति, पत्नी के मन को कर देता है। रेष्मच्छिन्नम्= रिष हिंसायाम् + मन् (औणादिक, १।१४०-१४४)+ छिन्नम्। हिंसा करने वाली, वृक्षों वनस्पतियों, तिनकों को छिन्न-भिन्न कर देने वाली; प्रवल वायु।]

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    विषय

    दाम्पत्य प्रेम का उपदेश।

    भावार्थ

    दोनों स्त्री पुरुष एक दूसरे से यही आशा करें और कहें कि हे प्रियतम ! हे प्रियतमे (अहम्) मैं (ते मनः) तेरे चित्त को (आ खिदामि) ऐसे खींचूँ जैसे (पृष्ट्याम् राजाश्व इव) पीठ पीछे बंधी गाड़ी को घोड़ा खींचता है। और यथा (रेष्मच्छिन्नम्) रेष्मा अर्थात् प्रचण्ड वायु से टूटा हुआ (तृणम्) घास उसी में लिपट कर उसके साथ ही चला जाता है उसी प्रकार हे प्रियतमे ! (ते मनः) तेरा चित्त (मयि) मुझमें (वेष्टताम्) लिपट जाय। मुझ में आसक्त होकर मेरे साथ ही लगा रहे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अभिसम्मनस्कामो जमदग्निर्ऋषिः। अश्विनौ देवते। अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Love of Life

    Meaning

    O man, I draw your mind unto me like the Ashvins conducting the dawn and light of the sun. Let your mind join unto me and the spirit divine in me like a blade of grass tom off by wind and clinging to the earth.

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    Translation

    I draw your mind towards me (O maiden), just as a king-horse draws a riding mare to him. May your mind whirl around me like straw broken by the whirlwind.

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    Translation

    O husband or wife! I as husband or wife draw you’re the husband or wife’s mind towards me, the either of us, like the horse which yoked in cart draws it. Let the mind of either of us be attached to either of us like the straw rent by the stormy wind.

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    Translation

    I draw thee to myself as a good horse draws the conveyance fastened to his back, Like grass that storm hath rent so be thy mind attached to me.

    Footnote

    Just as the blade of grass rent by the storm remains stuck to it, and does not leave it, just as a horse is attached to the conveyance so should husband be attached to his wife and vice versa. I may refer to husband or wife. 'Thy' 'me' also refer to husband or wife.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(अहम्) जितेन्द्रियः (आखिदामि) आकर्षामि (ते) तव (मनः) अन्तःकरणम् (राजाश्वः) अश्वमारोहतीति अश्वारूढः, स एव अश्वः। विनापि प्रत्ययं पूर्वोत्तरपदयोर्वा लोपो वक्तव्यः। वा० पा० ५।३।८३। इत्यारूढपदलोपः राजाश्वारूढः=राजाश्वः, कुशलोऽश्वारूढः (पृष्ट्याम्) पृषु सेचनहिंसासंक्लेशनेषु−क्तिन्, ततो यत्। पृष्टौ क्लेशसाधनाया रज्ज्वां भवरश्मिप्रग्रहम् (इव) यथा (रेष्मच्छिन्नम्) रिष हिंसायाम्−मनिन्। रेषकेण तीव्रवायुना भग्नम् (यथा) येन प्रकारेण (मयि) मम वशे (ते) तव (वेष्टताम्) आच्छाद्यताम् (मनः) ॥

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