Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 123 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 123/ मन्त्र 4
    ऋषिः - भृगु देवता - विश्वे देवाः छन्दः - एकावसाना द्विपदा प्राजापत्या भुरिगनुष्टुप् सूक्तम् - सौमनस्य सूक्त
    44

    स प॑चामि॒ स द॑दामि। स य॑जे॒ स द॒त्तान्मा यू॑षम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । प॒चा॒मि॒ । स: । द॒दा॒मि॒ । स: । य॒जे॒ । स: । द॒त्तात् । मा । यू॒ष॒म् ॥१२३.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स पचामि स ददामि। स यजे स दत्तान्मा यूषम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । पचामि । स: । ददामि । स: । यजे । स: । दत्तात् । मा । यूषम् ॥१२३.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 123; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    विद्वानों से सत्सङ्ग का उपदेश।

    पदार्थ

    (सः) क्लेशनाशक मैं [अन्न] को (पचामि) परिपक्व करता हूँ, (सः) वही मैं (ददामि) दान करता हूँ, (सः) वही मैं (यजे) विद्वानों को पूजता हूँ (सः) वह मैं (दत्तात्) दान से [सुपात्रों के लिये] (मा यूषम्) पृथक् न होऊँ ॥४॥

    भावार्थ

    मनुष्य पुरुषार्थ के साथ सुपात्रों का सत्कार करके कीर्तिमान् होवें ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(सः)−म० ३। क्लेशनाशकः (पचामि) पाकेन संस्करोमि (सः) प्रसिद्धः (ददामि) दानानि करोमि (यजे) देवान् पूजयामि (दत्तात्) सुपात्रेभ्यो दानात् (मा यूषम्) यु मिश्रणामिश्रणयोः−माङि लुङि च्लेः सिच्, छान्दसो दीर्घः। पृथक्कृतो मा भूवम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    भुरिगनुष्टुप् [एकावसाना]

    पदार्थ

    १. (देवा:) = दिव्यवृत्तिवाले पुरुष (पितर:) = रक्षणात्मक कर्मों में प्रवृत्त होते हैं। (पितर:) = ये रक्षणात्मक कार्यों में प्रवृत्त लोग ही (देवा:) = देव हैं। यहाँ साहित्य की शैली का सौन्दर्य द्रष्टव्य है। देव 'पितर हैं, 'पितर' ही तो देव है। देवों का काम रक्षण है, दैत्यों का विध्वंस । मैं भी (यो) [या+उ] (अस्मि) = गतिशील बनता हूँ और (सः अस्मि) = [षोऽन्तकर्मेणि] दुःखों का अन्त करनेवाला होता हूँ। २. (स:) = वह मैं (पचामि) = घर में भोजन का परिपाक करता हूँ तो पहले (सः ददामि) = वह में पितरों व अतिथियों के लिए देता हूँ और इसप्रकार (सः यजे) = वह मैं देकर देवपूजन करके बचे हुए को ही [यज्ञशेष को ही खाता है]। (स:) = वह मैं (दत्तात्) = इस देने की प्रक्रिया से (मा यूषम्) = कभी पृथक् न होऊँ। सदा यज्ञशील बना रहूँ। यहाँ मन्त्र में 'स पचामि' में पचामि परस्मैपद है-दूसरों के लिए ही पकाता हूँ, इसीप्रकार दूसरों के लिए देता हैं, परन्तु 'स यजे' में यजे 'आत्मनेपद' है। यज्ञ अपने लिए करता हूँ। मैं बड़ों को खिलाता हूँ तो मेरे सन्तान भी इस पितृयज्ञ का अनुकरण क्यों न करेंगे?

    भावार्थ

    देव सदा रक्षणात्मक कर्मों में प्रवृत्त होते हैं। मैं भी गतिशील बनकर पर-दुखों का हरण करनेवाला बनूं। पकाऊँ, यज्ञ करूँ और यज्ञशेष ही खाऊँ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (सः) वह (पचामि) में पकाता हूं. (सः) वह (ददामि) में दान करता हूं, (सः) वह (यजे) में यज्ञ करता हूं, (सः) वह मैं (दत्तात्) दान से (मा)(यूषम्) पृथक होऊं।

    टिप्पणी

    [पकाना, और पक्व अन्न का बलिवैश्वदेव में, तथा अतिथियज्ञ में प्रदान करने का कथन मन्त्र में हुआ है। यदि गृह में पत्नी नहीं, तो भी गृहस्थी स्वयं पका कर अन्न द्वारा यज्ञ सम्पादन करें। यूषम्= यु + च्लेः सिच् ह्रस्व, उकारस्य दीर्घ ऊकारः।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    मुक्ति की साधना

    भावार्थ

    (सः) वही मैं आत्मचेतन्य ज्ञानी (पचामि) कर्मफलों का परिपाक करता हूँ. (स) वही मैं (ददामि) दान करता हूँ (सः यजे) वही मैं ईश्वर की आराधना करता हूं। (सः) वही मैं (दत्तात्) अपने दानभाव, त्याग-भाव या आहुतिरूप उत्तम कर्म से (मा यूषम्) पृथक् न होऊं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृगुर्ऋषिः। विश्वेदेवा देवताः। १-२ त्रिष्टुभौ, ३ द्विपदा साम्नी अनुष्टुप्, ४ एकावसाना द्विपदा प्राजापत्या भुरिगनुष्टुप्। पञ्चर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    HeavenlyJoy

    Meaning

    That same I am, I mature and perfect, the same I give, I join the divine, offer myself in yajna. I must never be severed or alienated from what I have given by yajna and self-sacrifice.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    The same I cook; the same I give; the same I perform the sacrifice (worship): may the same I never be parted from the fruit of what I have given.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    I cook, I give, and I offer oblations in the yajnas. Let me not be disported from what I have given.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    I cook the fruit of my actions, I give in charity, I worship God. May I be never separated from my acts of charity.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(सः)−म० ३। क्लेशनाशकः (पचामि) पाकेन संस्करोमि (सः) प्रसिद्धः (ददामि) दानानि करोमि (यजे) देवान् पूजयामि (दत्तात्) सुपात्रेभ्यो दानात् (मा यूषम्) यु मिश्रणामिश्रणयोः−माङि लुङि च्लेः सिच्, छान्दसो दीर्घः। पृथक्कृतो मा भूवम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top