अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 13/ मन्त्र 3
ऋषिः - अथर्वा
देवता - मृत्युः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - मृत्युञ्जय सूक्त
89
नम॑स्ते यातु॒धाने॑भ्यो॒ नम॑स्ते भेष॒जेभ्यः॑। नम॑स्ते मृत्यो॒ मूले॑भ्यो ब्राह्म॒णेभ्य॑ इ॒दं नमः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठनम॑: । ते॒ । या॒तु॒ऽधाने॑भ्य: । नम॑: । ते॒ । भे॒ष॒जेभ्य॑: । नम॑: । ते॒ । मृ॒त्यो॒ इति॑ । मूले॑भ्य: । ब्रा॒ह्म॒णेभ्य॑: । इ॒दम् । नम॑: ॥१३.३॥
स्वर रहित मन्त्र
नमस्ते यातुधानेभ्यो नमस्ते भेषजेभ्यः। नमस्ते मृत्यो मूलेभ्यो ब्राह्मणेभ्य इदं नमः ॥
स्वर रहित पद पाठनम: । ते । यातुऽधानेभ्य: । नम: । ते । भेषजेभ्य: । नम: । ते । मृत्यो इति । मूलेभ्य: । ब्राह्मणेभ्य: । इदम् । नम: ॥१३.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मृत्यु की प्रबलता का उपदेश।
पदार्थ
(ते) तेरे (यातुधानेभ्यः) पीड़ाप्रद रोगों को (नमः) नमस्कार और (ते) तेरे (भेषजेभ्यः) सुख देनेवाले वैद्यों को (नमः) नमस्कार है। (मृत्यो) हे मृत्यु ! (ते) तेरे (मूलेभ्यः) कारणों को (नमः) नमस्कार और (ब्राह्मणेभ्यः) वेदवेत्ता विद्वानों को (इदम्) यह (नमः) नमस्कार है ॥३॥
भावार्थ
रोगी और वैद्य मृत्यु के वश हैं, तो भी मनुष्य रोगों का निदान जानकर पुरुषार्थ करते रहें ॥३॥
टिप्पणी
३−(नमः) नमस्कारः (ते) तत्र (यातुधानेभ्यः) अ० १।७।१। पीडाप्रदेभ्यो रोगेभ्यः (भेषजेभ्यः) अ० १।४।४। भेषं भयं जयतीति। भेषजं सुखनाम−निघ० ३।६। सुखकरेभ्यो वैद्येभ्यः (मृत्यो) (मूलेभ्यः) मूल प्रतिष्ठायाम्−क। मूलं मोचनाद्वा मोषणाद्वा मोहनाद्वा−निरु० ६।३। कारणेभ्यः। निदानेभ्यः। (ब्राह्मणेभ्यः) वेदविद्भ्यः (इदम्) ॥
विषय
यातुधानों का भेषज
पदार्थ
१. हे (मृत्यो) = मृत्यो! (ते) = तेरे (यातुधानेभ्यः) पीड़ा देनेवाले रोगों के लिए (नमः) = नमस्कार हो ये हमें दूर से ही छोड़ जाएँ। इसी उद्देश्य से (ते) = तेरे दूर करने के लिए साधनभूत (भेषजेभ्य:) = औषधों के लिए हम (नमः) = नमस्कार करते हैं-इन औषधों का उचित प्रयोग करते हुए हम तुझसे अपनी रक्षा करते हैं। २. हे मृत्यो! (ते मूलेभ्यः) = तेरे मूलकारणों के लिए हम (नमः) = नमस्कार करते हैं इन्हें दूर से ही छोड़ते हैं और इन मूलकारणों के ज्ञान के लिए ही (ब्राह्मणेभ्यः इदं नमः) = ब्राह्मणों के लिए हम यह नमस्कार करते हैं। उनका आदर करते हुए तेरे कारणों को जानकर उन्हें दूर करने के लिए यत्नशील होते हैं।
भावार्थ
मृत्यु के कारणभूत रोगों का औषध करके हम मृत्यु को दूर करें। ज्ञानियों से मृत्यु के मूलकारणों का ज्ञान प्राप्त करके उन्हें दूर करते हुए हम दीर्घजीवी बनें।
विशेष
रोगों को दूर करके अपना धारण करनेवाला बभ्रु-तेजस्वी वर्णवाला पिङ्गल पुरुष 'वभूपिङ्गल' अगले सूक्त का ऋषि है।
भाषार्थ
(मृत्यो) हे मृत्यु ! (ते) तेरे (यातुधानेभ्यः) यातुधानों के लिये (नमः) नमस्कार हो, (ते) तेरे (भेषजेभ्यः) भेषजों के लिये (नमः) नमस्कार हो। (ते) तेरे (मूलेभ्यः) मूलों के लिये (नमः ) नमस्कार हो, तथा (ब्राह्मणेभ्यः) ब्रह्मवेत्ताओं के लिये (इदम्, नमः) यह नमस्कार हो।
टिप्पणी
[सूक्त में यतः युद्ध का वर्णन है, और युद्ध में मूत्युएं अवश्यम्भावी हैं, अतः मृत्यु का सम्बन्ध युद्ध में दर्शाया है। 'यातुधानेभ्यः" का अर्थ मन्त्र में "यातनाओं के निधान" अर्थ नहीं, अपितु युद्ध में सेवा के लिये, जाने आने वाले सेवकों का वर्णन है । यातु =जाने-आने वाले, धान= धारण पोषण करने वाले। इस अर्थ में यातु पद =यातवः के लिये, अथर्ववेद में प्रयुक्त हुआ है (काण्ड १३। अनुवाक ४। मन्त्र ६ (२७)। "भेषजेभ्य:" = रक्षाकरेभ्यः (सायण), अर्थात् युद्ध में घायल हुओं की सेवा ओषधियों द्वारा करने वाले, अर्थात् Redcross society वालों के लिये, मूलेभ्यः१ =पुरुषजाति के मूलभूत बच्चों के लिये "ब्राह्मणेभ्यः" ब्रह्मवेत्ताओं और वेदवेत्ताओं के लिये। इन चार प्रकार के पुरुषों पर वज्प्रहार युद्ध में न होना चाहिये, ये चारों रक्षा के योग्य हैं। इस सिद्धान्त को नमः अर्थात् नमस्कार द्वारा कथित किया है। यही तभी सम्भव है जब कि इन चारों को युद्धकारी सैनिक विभाग में भर्ती न किया जाय। ब्राह्मणेभ्यः= ब्रह्मवेत्ता मनुष्य युद्धकाल में भी नमस्कार के योग्य हैं, चाहे वे शत्रु के राज्य मैं भी रहते हों, उन पर प्रहार न होना चाहिये।] [१. मूलबलभूतेभ्य: पुरुषेभ्यः (सायण)।]
विषय
मृत्यु और उसके उपाय।
भावार्थ
हे मृत्यो ! (यातुधानेभ्यः नमः) तुझ मौत या देहावसान रूप कष्ट के लानेवाले यातुधान = पीड़ादायक रोगों को (नमः) हम वश करने का उद्योग करते हैं। इसलिये (ते) तेरी (भेषजेभ्यः) पीड़ा हरने वाली ओषधियों का (नमः) हम संग्रह करते और उपयोग करते हैं। हे मृत्यो ! (ते मूलेभ्यः नमः) तेरे जो मूलकारण हैं उनका अनुसंधान करते हैं। और उनका अनुसंधान करनेवाले (ब्राह्मणेभ्यः) ब्रह्म = वेद को जाननेवाले विद्वान् पुरुषों का (इदम् नमः) हम इस प्रकार आदर करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
स्वस्त्ययनकामोऽथर्वा ऋषिः। मृत्युर्देवता। १-३ अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Mrtyu
Meaning
Hoamge to you for the pains and sufferings that come in the trail with you. Homage to the medicaments that stall you and may sometimes hasten you. Homage to the root causes that bring you about. O Death, let this be the homage to the learned and the wise men of divinity. (They know what and why it is as it is.)
Translation
Our homage be to your tormenting diseases and to your remedies; Jet our homage be. Our homage be, O death, to your root causes and to the men of knowledge; let this our homage be. ( yatudhana = tormenting disease; bhesaja = remedy or medicine]
Translation
I use the prophylactic measures against the diseases causing this death, I know and utilize the medicines guarding from death, I use my effort to know the causes of this death and I pay my homage to those learned men who have the knowledge to overcome this death.
Translation
O Death, we subdue the diseases painful like thee. We use medicines to keep thee away. We investigate thy causes, and revere the Vedic scholars who know them.
Footnote
Them: the causes of death.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(नमः) नमस्कारः (ते) तत्र (यातुधानेभ्यः) अ० १।७।१। पीडाप्रदेभ्यो रोगेभ्यः (भेषजेभ्यः) अ० १।४।४। भेषं भयं जयतीति। भेषजं सुखनाम−निघ० ३।६। सुखकरेभ्यो वैद्येभ्यः (मृत्यो) (मूलेभ्यः) मूल प्रतिष्ठायाम्−क। मूलं मोचनाद्वा मोषणाद्वा मोहनाद्वा−निरु० ६।३। कारणेभ्यः। निदानेभ्यः। (ब्राह्मणेभ्यः) वेदविद्भ्यः (इदम्) ॥
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