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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 131 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 131/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वा देवता - स्मरः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - स्मर सूक्त
    52

    यद्धाव॑सि त्रियोज॒नं प॑ञ्चयोज॒नमाश्वि॑नम्। तत॒स्त्वं पुन॒राय॑सि पु॒त्राणां॑ नो असः पि॒ता ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । धाव॑सि । त्रि॒ऽयो॒ज॒नम् । प॒ञ्च॒ऽयो॒ज॒नम् । आश्वि॑नम् । तत॑: । त्वम् । पुन॑: । आऽअ॑यसि । पु॒त्राणा॑म् । न॒: । अ॒स॒: । पि॒ता ॥१३१.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यद्धावसि त्रियोजनं पञ्चयोजनमाश्विनम्। ततस्त्वं पुनरायसि पुत्राणां नो असः पिता ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । धावसि । त्रिऽयोजनम् । पञ्चऽयोजनम् । आश्विनम् । तत: । त्वम् । पुन: । आऽअयसि । पुत्राणाम् । न: । अस: । पिता ॥१३१.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 131; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परस्पर पालन का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे विद्वान् !] (यत्) जो तू (त्रियोजनम्) तीन योजन, (पञ्चयोजनम्) पाँच योजन, अथवा (आश्विनम्) अश्ववार से चलने योग्य देश को (धावसि) दौड़ कर जाता है। (तत) उससे (त्वत्) तू (पुनः) फिर (आयसि) आ। और (नः) हमारे (पुत्राणाम्) पुत्र आदिकों का (पिता) पिता [पालनेवाला] (असः) हो ॥३॥

    भावार्थ

    विद्वान् मनुष्य दूर देशों से विद्या और धन प्राप्त करके कुटुम्ब आदि का पालन करे ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(यत्) यदि (धावसि) शीघ्रं गच्छसि (त्रियोजनम्) योजनत्रयपरिमितं देशम् (पञ्चयोजनम्) पञ्चयोजनपरिमितं देशम् (आश्विनम्) अश्विन्−अण्। अश्विना अश्ववारेण गन्तव्यं देशम् (ततः) तस्माद्देशात् (पुनः) निवृत्य (आयसि) आगच्छ (पुत्राणाम्) पुत्रादीनाम् (नः) अस्माकम् (असः) भवेः (पिता) पालकः ॥

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    विषय

    काम-विनाश व शक्ति-सम्पादन

    पदार्थ

    १. (यत्) = यदि (त्रियोजनं धावसि) = तू तीन योजनपर्यन्त गतिवाला होता है, अथवा (आश्विनम्) = [अश्वेन प्रापणीयम्] घोड़े द्वारा प्राप्त करने योग्य (पञ्चयोजनम्) = पाँच योजन तक [धावसि] गतिवाला होता है, अर्थात् अश्वारूढ़ होकर पाँच योजन जाता है और (ततः) = उस त्रियोजन व पञ्चयोजन दूर स्थित देश से (त्वम्) = तु (पुनः आयसि) = फिर लौट भी आता है, तो (नः पुत्राणां पिता अस:) = हम पुत्रों का पिता बन।

    भावार्थ

    यहाँ स्पष्ट संकेत है कि वासना को जीतकर हम इतने शक्तिशाली हों कि तीन योजन व घोड़े द्वारा पाँच योजन तक आ-जा सकें, तभी हमें गृहस्थ बनकर पिता बनने का अधिकार है।

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    भाषार्थ

    (यत्) जो (त्रियोजनम्) तीन योजनों में परिमित दूर देश में (धावसि) तू चला गया है, (पञ्च योजनम्) या पांच योजनों में परिमित दूर देश में, अथवा (आश्विनम्) अश्व द्वारा प्रापणीय दूर देश में तू चला गया है, तो भी (ततः) वहां से (त्वम्) हे पति ! तू (पुनः आ अयसि) फिर वापस आ जा, और (नः) हमारे अपने (पुत्राणाम्) पुत्रों का (पिता असः) पिता हो जा, रक्षक हो जा।

    टिप्पणी

    [योजन=८ या ९ मील (आप्टे)। त्रियोजन= २४ या २७ मील। पञ्च योजन= ४० या ४५ मील। धावसि= चला गया है, या दौड़ गया है।]

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    विषय

    प्रेमियों का परस्पर स्मरण और चिन्तन।

    भावार्थ

    स्थिर दाम्पत्य प्रेम का फल बताते हैं। पत्नी कहती है—हे प्रियतम ! (यद् धावसि त्रियो जनं) यदि तु तीन योजन या १२ कोश या (पञ्च योजनम्) पाँच योजन या २० कोश या (आश्विनं) घोड़े जैसी शीघ्रगामी सवारी से जाने योग्य दूरी पर भी (धावसि) चला जाय तो भी (ततः) उस दूर देश से (त्वं पुनः आ अयसि) फिर लौट आ, क्योंकि तू ही (नः) हमारे (पुत्राणां) पुत्रों का (पिता असः) पिता, पालक और उत्पादक है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वाङ्गिरा ऋषिः। स्मरो देवता। अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Divine Love and Memory

    Meaning

    O divine love and cosmic memory, though you may elude me by three yojanas, i.e., be beyond the earth, the sky and the solar regions, beyond five yojanas, i.e., beyond the five senses and five pranas, or even beyond the possibility of attainment by mind, intelligence, memory and the imagination, still you would come back and bless because you are our ultimate sustainer, your children on earth.

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    Translation

    Even if you run away three leagues, or even five leagues, one day’s journey of a horse, from there (tatah) you shall come back and shall be the father of our sons. (putranam pita).

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    Translation

    Says wife to her husband—O husband! if you run three leagues, if you run five leagues and if you run the distance covered by the light of sun (Ashirnam) you will come again therefrom as you are to be the father of our sons.

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    Translation

    If thou goest to a place twelve or twenty miles distant or if thou goest to a far-off place on horseback, thence thou shouldst come back, and be the father of us sons.

    Footnote

    A man should go to distant to acquire I learning and amass wealth, but he should not permanently remain absent from home. He should return home to look after his children.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(यत्) यदि (धावसि) शीघ्रं गच्छसि (त्रियोजनम्) योजनत्रयपरिमितं देशम् (पञ्चयोजनम्) पञ्चयोजनपरिमितं देशम् (आश्विनम्) अश्विन्−अण्। अश्विना अश्ववारेण गन्तव्यं देशम् (ततः) तस्माद्देशात् (पुनः) निवृत्य (आयसि) आगच्छ (पुत्राणाम्) पुत्रादीनाम् (नः) अस्माकम् (असः) भवेः (पिता) पालकः ॥

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