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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 140 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 140/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वा देवता - ब्रह्मणस्पतिः छन्दः - आस्तारपङ्क्तिः सूक्तम् - सुमङ्गलदन्त सूक्त
    62

    उप॑हूतौ स॒युजौ॑ स्यो॒नौ दन्तौ॑ सुम॒ङ्गलौ॑। अ॒न्यत्र॑ वां घो॒रं त॒न्वः परै॑तु दन्तौ॒ मा हिं॑सिष्टं पि॒तरं॑ मा॒तरं॑ च ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उप॑ऽहूतौ । स॒ऽयुजौ॑ । स्यो॒नौ । दन्तौ॑ । सु॒ऽम॒ङ्गलौ॑ । अ॒न्यत्र॑ । वा॒म् । घो॒रम् । त॒न्व᳡: । परा॑ । ए॒तु॒ । द॒न्तौ॒ । मा । हिं॒सि॒ष्ट॒म् । पि॒तर॑म् । मा॒तर॑म् । च॒ ॥१४०.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उपहूतौ सयुजौ स्योनौ दन्तौ सुमङ्गलौ। अन्यत्र वां घोरं तन्वः परैतु दन्तौ मा हिंसिष्टं पितरं मातरं च ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उपऽहूतौ । सऽयुजौ । स्योनौ । दन्तौ । सुऽमङ्गलौ । अन्यत्र । वाम् । घोरम् । तन्व: । परा । एतु । दन्तौ । मा । हिंसिष्टम् । पितरम् । मातरम् । च ॥१४०.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 140; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    बालक के अन्नप्राशन का उपदेश।

    पदार्थ

    (उपहूतौ) आपस में स्पर्धावाले, (सयुजौ) एक दूसरे से मिले हुए (दन्तौ) दोनों ओर के दाँत (स्योनौ) सुख देनेवाले और (सुमङ्गलौ) बड़े मङ्गलवाले होवें। (दन्तौ) हे दोनों ओर के दाँतो ! (वाम्) तुम्हारा (घोरम्) दुःखदायी कर्म [बालक के] (तन्वः) शरीर से (अन्यत्र) अलग (परा एतु) चला जावे (पितरम्) इसके पिता (च) और (मातरम्) माता को (मा हिंसिष्टम्) मत काटो ॥३॥

    भावार्थ

    माता-पिता बालक के नवे निकले दाँतों को मुलहटी आदि ओषधि से स्वस्थ करें, जिससे वे सब सुख से निकलें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(उपहूतौ) ह्वेञ् स्पर्धायां शब्दे च−क्त। परस्परस्पर्धायुक्तौ (सयुजौ) समानं युञ्जानौ (स्योनौ) सुखकरौ (दन्तौ) उभयतो दन्तगणौ (सुमङ्गलौ) सुमङ्गलकरौ (अन्यत्र) पृथक् स्थाने (वाम्) युवयोः (घोरम्) क्रूरं कर्म (तन्वः) शिशुशरीरात् (परा) (दूरे) (एतु) गच्छतु। अन्यत्पूर्ववत्−म० २ ॥

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    विषय

    स्योनौ सयुजी' दन्तौ

    पदार्थ

    १. हे (दन्तौ) = दोनों दन्तपंक्तियो! आप (उपहूतौ) = [समीपं आहूती] एक-दूसरे के समीप पुकारे जाओ, (सयुजौ) = [समानं युञ्जानौ] मिलकर कार्य करनेवाले होओ। (स्योनौ) = सुख देनेवाले व सुमंगलौ उत्तम मंगल के हेतु बनो। २. (वाम्) = आपका (घोरम्) = मांसाहाररूप घोरकर्म (तन्वः अन्यत्र) = हमारे शरीर से अन्यत्र ही (परैतु) = सुदूर स्थान में चला जाए। हे (दन्तौ) = दाँतो! तुम (पितरं मातरं च मा हिंसिष्टम्) = पिता व माता को हिंसित मत करो, अर्थात् किसी भी प्राणी का मांस मत खाओं।

    भावार्थ

    हमारे दाँत मिलकर मङ्गल कार्य करनेवाले हों। ये मांसाहार से दूर ही रहें। मांसाहाररूप घोर कर्म हमारे शरीर से दूर ही रहे।

     

    विशेष

    मांसाहार से दूर रहता हुआ, सबके प्रति प्रेमवाला यह व्यक्ति 'विश्वामित्र' कहलाता है। यही अगले दो सूक्तों का ऋषि है। इस विश्वामित्र का भोजन 'गोदुग्ध' व 'यव' हैं। इन्हीं का अगले सूक्तों में उल्लेख है।

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    भाषार्थ

    (सयुजौ) साथ साथ लगे हुए, (स्योनौ) सुखकर, (सुमङ्गलौ) उत्तम मङ्गलकारी (दन्तौ) दो दान्त (उपहूतौ) मानो उत्सुकता पूर्वक बुलाए गए हैं। (दन्तौ) हे दो दान्तो! (वाम्) तुम दो का (घोरम्) क्रूर कर्म अर्थात् काटना (तन्वः) शरीर से (अन्यत्र) व्रीहि आदि को (परैतु) प्राप्त हो, अर्थात् (पितरम्, मातरम् च) पितृशक्ति सम्पन्न और मातृशक्ति संपन्न प्राणियों की (मा हिंसिष्टम्) हिंसा न करो।

    टिप्पणी

    [उत्पन्न हुए शिशु के दान्त कब निकलते हैं, इसकी प्रतीक्षा माता पिता उत्सुकता पूर्वक करते रहते हैं, इसलिये मानो माता-पिता ने इन दो दान्तों का स्वयं आह्वान किया है।]

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    विषय

    दांतों को उत्तम रखने, मांस न खाने और सात्विक भोजन करने का उपदेश।

    भावार्थ

    (स-युजौ) साथ जुड़े हुए (स्योनौ) सुखकर (दन्तौ) हे दो दाँतो ! (सुमङ्गलौ) शुभ, मंगलजनक (उप-हूतौ) कहते हैं। (वां) तुम दोनों की (घोरम्) घोर कर्म की अर्थात् मांस खाने की तीक्ष्ण प्रवृत्ति (तन्वः) नर-मादा के शरीर भक्षण से (अन्यत्र परैतु) दूर हो जाय। हे (दन्तौ) दांतो ! (पितरम्) नर और (मातरम्) मादा दोनों की (मा हिंसिष्ठम्) हिंसा मत करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। ब्रह्मणस्पतिर्देवता। मन्त्रोक्ता दन्तौ च देवते। १ उरो वृहती अनुष्टुप उपरिष्टाज्ज्योतिष्मती त्रिष्टुप्। ३ आस्तारपंक्तिः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Teething Trouble

    Meaning

    Both grown by the process of nature, together, beautiful and auspicious, let that which is deformed be off from here, elsewhere. O teeth, do not hurt father and mother. Let the growth be comfortable and well- formed.

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    Translation

    Praise be to the two teeth, friendly, bringing happiness and very propitious. May the ferocity of your selves go away else where. May you not, O teeth, injure the father and the mother.

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    Translation

    These two teeth united together and being of the same source of growth are described gentle and source of happiness, Let the fierceness of their nature flee away and let them not harm father and mother.

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    Translation

    Praiseworthy are both fellow teeth, gentle and bringers of happiness. Else whither let the fierceness of your nature turn away. O Teeth! harm not your mother or your sire.

    Footnote

    Fierceness: the habit of biting the mother's teats.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(उपहूतौ) ह्वेञ् स्पर्धायां शब्दे च−क्त। परस्परस्पर्धायुक्तौ (सयुजौ) समानं युञ्जानौ (स्योनौ) सुखकरौ (दन्तौ) उभयतो दन्तगणौ (सुमङ्गलौ) सुमङ्गलकरौ (अन्यत्र) पृथक् स्थाने (वाम्) युवयोः (घोरम्) क्रूरं कर्म (तन्वः) शिशुशरीरात् (परा) (दूरे) (एतु) गच्छतु। अन्यत्पूर्ववत्−म० २ ॥

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