Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 16 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 16/ मन्त्र 2
    ऋषिः - शौनक् देवता - चन्द्रमाः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अक्षिरोगभेषज सूक्त
    43

    वि॒हह्लो॒ नाम॑ ते पि॒ता म॒दाव॑ती॒ नाम॑ ते मा॒ता। स हि॑न॒ त्वम॑सि॒ यस्त्वमा॒त्मान॒माव॑यः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒ऽहह्ल॑: । नाम॑ । ते॒ । पि॒ता । म॒दऽव॑ती । नाम॑ । ते॒ । मा॒ता । स: । हि॒न॒ । त्वम् । अ॒सि॒ । य: । त्वम्। आ॒त्मान॑म् । आव॑य: ॥१६.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विहह्लो नाम ते पिता मदावती नाम ते माता। स हिन त्वमसि यस्त्वमात्मानमावयः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विऽहह्ल: । नाम । ते । पिता । मदऽवती । नाम । ते । माता । स: । हिन । त्वम् । असि । य: । त्वम्। आत्मानम् । आवय: ॥१६.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 16; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्म के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे परमेश्वर !] (ते) तेरा (पिता) पालन करनेवाला गुण (विहह्लः) विशेष कँपानेवाला [आश्चर्यजनक] (नाम) प्रसिद्ध है, और (ते) तेरी (माता) निर्माण शक्ति (मदवती) हर्षयुक्त (नाम) प्रसिद्ध है (सः) वह (हिन=हि) ही (त्वम्) तू (असि) है, (यः) जिस (त्वम्) तूने (आत्मानम्) हमारे आत्मा की (आवयः) रक्षा की है ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमेश्वर की आज्ञा में वर्तमान रह कर सदा आत्मरक्षा करें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(विहह्लः) वि+ह्वल चलने−अच्। छान्दसं रूपम्। विशेषकम्पकः (नाम) प्रसिद्धौ (ते) तव (पिता) पालको गुणः (मदावती) सांहितिको दीर्घः। हर्षवती (माता) अ० ५।५।१। निर्माणशक्तिः (सः) प्रसिद्धः (हिन) नकारश्छान्दसः। हि। खलु (त्वम्) (असि) (यः) (आत्मानम्) आत्मबलम् (आवयः) अव रक्षणे−लङ्, चुरादित्वं छान्दसम्। आवः। रक्षितवानसि ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    विहल्ह, मदावती [पिता, माता]

    पदार्थ

    १.हे प्रभो! (ते पिता) = आपका रक्षणात्मक रूप [पा रक्षणे]-आपका पितृत्व (विहल्हः नाम) = निश्चय से सर्वत्र गतिवाला-सर्वव्यापक है। (ते माता) = आपकी प्रकृतिरूप निर्माणशक्ति (मदावती) = मदावली है-आनन्द देनेवाली है। २. हे (हिन) = प्रेरक प्रभो! [हिनोति] (त्वम्) = आप (सः असि) = वे हैं (य:) = जो (त्वम्) = आप (आत्मानम्) =  अपने को (आबय:) = सर्वत्र ओत-प्रोत किये हुए हैं ('स ओतः प्रोतश्च विभुः प्रजासु')|

    भावार्थ

    प्रभु का रक्षक गुण सर्वत्र व्याप्त है। प्रभु की यह प्रकृति मद-आनन्द देनेवाली है। वे प्रेरक प्रभु इस ब्रह्माण्ड में सर्वत्र ओत-प्रोत हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    [हे जीवात्मन् !] (विहह्ल:१) विशेष आह्लाद वाला [परमेश्वर] (ते) तेरा (पिता) पिता है, (मदावती) मदमस्त कर देने वाली [प्रकृति] (ते माता) तेरी माता है। (सः) वह तू (हिन) स्वयम् अपनी वृद्धि कर, (त्वम्, असि) तू तो [प्रकृति से]२ पृथक् है, ( यस्त्वम् ) जो तू ने कि (आत्मानम्) निज आत्म-स्वरूप को (आवयः) भक्षित सा कर लिया है, भुला सा दिया हुआ है।

    टिप्पणी

    [परमेश्वर विशेषेण सुखस्वरूप है, प्रकृति जीवात्मा को मदमस्त कर देती है, तब वह सुखदायक पिता से विमुख हो जाता है। इसलिये उसे कहा है कि तू प्रकृति के मद का त्याग कर और (हिन) वृद्धि को प्राप्त हो। तू तो प्रकृति से पृथक् है, चाहे तेरा शरीर प्रकृतिजन्य है। तूने निज आत्म-स्वरूप को भुला दिया है। आवयः= आवयतिः अतिकर्मा (सायण), आ+ वी (गतिव्याप्तिप्रजनकान्त्यसन 'खादनेषु' (अदादिः) "नाम" पद प्रसिद्धार्थक। हिन=हि गतौ वृद्धो च (स्वादिः)।] [१. विहह्लः= वि +ह्लादी सुखे च (भ्वादिः ) । विहह्ल:= वि + ह्ल] यडङ्लुक्)+ ड: (औणादिक), डित्वात् टि लोपः। २. यथा "सुरिरसि वर्चोधा असि तनूपानो असि [जीवात्मा के लिये ] (अथर्व० २।११।४)।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    प्रजापति की शक्ति का वर्णन।

    भावार्थ

    (ते) तेरा (पिता) पालकस्वरूप (वि-हल्हः नाम) नाना प्रकार से सर्वत्र व्यापक है। और (ते माता) तेरी माता (मदावती) हर्ष से सम्पन्न, वह प्रकृति शक्ति है। हे (हिन) सर्व-प्रेरक आत्मन् ! (सः त्वम् असि) तू वही है (यः त्वम्) जो तू (आत्मानम् आवयः) अपने आत्मा को सर्वत्र तन्तुओं के समान ओत प्रोत किये हुए हैं। ‘आवयः’ यह पद ही ‘आबयु’ इस पद का प्रवृत्ति-निमित्त है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शौनक ऋषिः। मन्त्रोक्ता उत चन्द्रमा देवता, २ हिनो देवता। १. निचृत् त्रिपदा गायत्री, ३ बृहतीगर्भा ककुम्मर्ता अनुष्टुप् ४ त्रिपदा प्रतिष्ठा, अनुष्टुप्। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Herbs and Essences

    Meaning

    Vihalha, the shaker, is your father, the father spirit which sustains and promotes all. Madavati, the pleasure power is your mother, the mother spirit which nourishes all. For sure they all know it. And that sustaining nourishment you are, you who preserve, protect and promote the body and soul.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Vihalha is your father’s name; your mother’s name is Madavat. Surely it is he, and not you, who haye let yourself to be consumed.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Vilha (a plant which grows in the vicinity of the abayas and is of the same species) is the protector of this plant and the Madavali (the other plant of the same species) is the nourisher of this Abaya, as it is the same plant which protects life.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O God, wonderful is Thy well-known characteristic of protection. Joyful is Thy famous power of creation. Thou art He, Who hast well protected our soul!

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(विहह्लः) वि+ह्वल चलने−अच्। छान्दसं रूपम्। विशेषकम्पकः (नाम) प्रसिद्धौ (ते) तव (पिता) पालको गुणः (मदावती) सांहितिको दीर्घः। हर्षवती (माता) अ० ५।५।१। निर्माणशक्तिः (सः) प्रसिद्धः (हिन) नकारश्छान्दसः। हि। खलु (त्वम्) (असि) (यः) (आत्मानम्) आत्मबलम् (आवयः) अव रक्षणे−लङ्, चुरादित्वं छान्दसम्। आवः। रक्षितवानसि ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top