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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 17 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 17/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वा देवता - गर्भदृंहणम्, पृथिवी छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - गर्भदृंहण सूक्त
    59

    यथे॒यं पृ॑थि॒वी म॒ही दा॒धार॒ पर्व॑तान्गि॒रीन्। ए॒वा ते॑ ध्रियतां॒ गर्भो॒ अनु॒ सूतुं॒ सवि॑तवे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यथा॑ । इ॒यम् । पृ॒थि॒वी । म॒ही । दा॒धार॑ । पर्व॑तान् । गि॒रीन् । ए॒व । ते॒ । ध्रि॒य॒ता॒म् । गर्भ॑: । अनु॑ । सूतु॑म्। सवि॑तवे ॥१७.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यथेयं पृथिवी मही दाधार पर्वतान्गिरीन्। एवा ते ध्रियतां गर्भो अनु सूतुं सवितवे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यथा । इयम् । पृथिवी । मही । दाधार । पर्वतान् । गिरीन् । एव । ते । ध्रियताम् । गर्भ: । अनु । सूतुम्। सवितवे ॥१७.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 17; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    गर्भाधान का उपदेश।

    पदार्थ

    (यथा) जैसे (इयम्) इस (मही) विशाल (पृथिवी) पृथिवी ने (पर्वतान्) पहाड़ों और (गिरीन्) पहाड़ियों को (दाधार) धारण किया है (एव) वैसे ही (ते) तेरा... म० १ ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(पर्वतान्) महाशैलान् (गिरीन्) क्षुद्रशिलोच्चयान्। अन्यद् गतम् ॥

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    विषय

    अनुसूतं सवितवे

    पदार्थ

    १. (यथा) = जैसे (इयम्) = यह (मही पृथिवी) = विशाल पृथिवी (भूतानाम्) = सब प्राणियों के (गर्भम्) = मूलभूत बीज को (आदधे) = धारण करती है (एव) = इसीप्रकार हे प्रियतमे! (ते) = तेरा (गर्भ:) = गर्भ घियताम् धारण किया जाए। यह गर्भ (अनु सूतं सवितवे) = पुत्र को अनुकूल समय पर जन्म देने के लिए हो। २.( यथा इयं मही पृथिबी) = जिस प्रकार यह विशाल पृथिवी इमान् वनस्पतीन् दाधार-इन वनस्पतियों को धारण करती है, (एव) = इसीप्रकार ते (गर्भ ध्रियताम्) = तेरा यह गर्भ धारण किया जाए और (अनु सूतुं सवितवे) = पुत्र को अनुकूल समय पर जन्म देनेवाला हो। ३. (यथा इयं मही पृथिवी) = जैसे यह विशाल पृथिवी (पर्वतान् गिरीन्) = इन बड़े पर्वतों और छोटी पहाड़ियों को दाधार-धारण करती है। इसीप्रकार तेरा गर्भ धारण किया जाए और वह अनुकूल समय पर सन्तान को जन्म देनेवाला हो। ४. (यथा इयं मही पृथिवी) = जैसे यह विशाल पृथिवी (विष्ठितं जगत् दाधार) = नाना प्रकार से विभक्त-व्यवस्थित चराचर जगत् को धारण करती है उसी प्रकार तेरा यह गर्भ धारण किया जाए और वह अनुकूल समय पर सन्तान को जन्म देनेवाला हो।

    भावार्थ

    माता पृथिवी के समान है। पृथिवी की भाँति ही सब भूतों के गर्भ को धारण करती है और अनुकूल समय पर सन्तान को जन्म देती है। इस

    विशेष

    अथर्वा ही अगले सूक्त का ऋषि है। इसमें यह 'ईर्ष्या' को एक महान् दोष के रूप में देखता है। माता में ईर्ष्या की वृत्ति गर्भस्थ बालक की मृत्यु का भी कारण बन जाती है, अत: ईर्ष्या के त्याग का उपदेश करते हैं

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    भाषार्थ

    (यथा) जैसे (इयम, मही, पृथिवी) इस महती पृथिवी ने (पर्वतान्, गिरीन्) पर्वतों और पर्वतीय प्रान्तों को [गर्भरूप में] (दाधार) धारण किया, (एवा ते, इत्यादि) इसी प्रकार [हे पत्नी !] तेरा गर्भ इत्यादि, पूर्ववत्।

    टिप्पणी

    [पर्वतों और गिरियों का पूर्वरूप पृथिवी के गर्भ में पिघला हुआ तरल पदार्थ होता है जिसे मैग्मा [magma] कहते हैं। यह पर्वतों और गिरियों का पूर्वरूप है, जो कि पर्वतों और गिरियों के रूप में पृथिवी को फाड कर बाहर आता है। "मैग्मा" कीचड़, धुआं, उष्णवाष्प, गैसें, लावा, तथा चट्टानी पदार्थों का समूह होता है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Garbhadrnhanam

    Meaning

    Just as this great mother earth bears hills and mountains firmly, so may your womb firmly bear the seed of life to mature and deliver the child.

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    Translation

    As this vast earth bears the hills and the mountains, so may your embryo form and develop for birth under favourable conditions.

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    Translation

    Even as this mighty earth bears those mountains and hills so may the germs of life be borne in you, O wife! deliver a child in due course.

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    Translation

    Even as this mighty Earth bears the mountains and the hills, so may the germ of life be borne in thee that thou mayst bear a son.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(पर्वतान्) महाशैलान् (गिरीन्) क्षुद्रशिलोच्चयान्। अन्यद् गतम् ॥

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