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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 23 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 23/ मन्त्र 2
    ऋषिः - शन्ताति देवता - आपः छन्दः - त्रिपदा गायत्री सूक्तम् - अपांभैषज्य सूक्त
    52

    ओता॒ आपः॑ कर्म॒ण्या॑ मु॒ञ्चन्त्वि॒तः प्रणी॑तये। स॒द्यः कृ॑ण्व॒न्त्वेत॑वे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आऽउ॑ता: । आप॑: । क॒र्म॒ण्या᳡: । मु॒ञ्चन्तु॑ । इ॒त: । प्रऽनी॑तये । स॒द्य: । कृ॒ण्व॒न्तु॒ । एत॑वे ॥२३.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ओता आपः कर्मण्या मुञ्चन्त्वितः प्रणीतये। सद्यः कृण्वन्त्वेतवे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आऽउता: । आप: । कर्मण्या: । मुञ्चन्तु । इत: । प्रऽनीतये । सद्य: । कृण्वन्तु । एतवे ॥२३.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 23; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    कर्म करने के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (ओताः) अच्छे प्रकार बुनी हुई (कर्मण्या) कामों में कुशल (आपः) [परमेश्वर की] व्यापक शक्तियाँ [हमें] (इतः) इस [कष्ट] से (प्रणीतये) उत्तम नीति के लिये (मुञ्चन्तु) मुक्त करें। और (सद्यः) तुरन्त (एतवे) चलने को (कृण्वन्तु) बनावें ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य ईश्वरीय रचनाओं को देखकर उत्तम नीति पर चलकर सदा आगे बढ़ें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(ओताः) आङ्+वेञ् तन्तुसन्ताने−क्त। सम्यक् स्यूताः (आपः) परमेश्वरस्य व्यापिकाः शक्तयः (कर्मण्याः) तत्र साधुः। पा० ४।४।९८। इति कर्मन्−यत्। ये चाभावकर्मणोः। पा० ६।४।१६८। इति प्रकृतिभावः। कर्मसु साधवः (मुञ्चन्तु) मुक्तान् कुर्वन्तु, अस्मान् (इतः) अस्मात् कष्टात् (प्रणीतये) प्रकृष्टनीतिप्राप्तये (सद्यः) शीघ्रम् (कृण्वन्तु) कुर्वन्तु (एतवे) तुमर्थे सेसेन०। पा० ३।४।९। इति इण् गतौ, तवे। गन्तुम् ॥

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    विषय

    कर्मण्या आपः

    पदार्थ

    १. शरीरस्थ रेतः कण 'आप:' हैं। ये (आपः) = रेत:कण (कर्मण्याः) = हमें सब कर्मों में कुशल बनाते हैं जबकि ये (ओता:) = मेरे शरीर में व्याप्त हों। ये मुझे (प्रणीतये) = प्रकृष्ट मार्ग पर चलने के लिए (इतः मुञ्चन्तु) = इधर से मुक्त करें। मेरे शरीर में किसी प्रकार का रोग न हो। नीरोगता में ही आगे बढ़ना सम्भव है। २. ये रेत:कण (सद्य:) = शीघ्र ही (एतवे कण्वन्तु) = मुझे गति के लिए करें। इनके रक्षण के द्वारा मैं शक्तिशाली बनूँ और क्रियाशील होऊँ।

    भावार्थ

    शरीर में रेत:कणों के रूप में व्याप्त ये जल मुझे नीरोग बनाकर उन्नति-पथ पर ले-चलें और मुझे क्रियामय जीवनवाला बनाएँ।

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    भाषार्थ

    (कर्मण्याः) कर्मों के साधक (आपः) जल (ओताः) कर्मों में ओतप्रोत हैं, [ये जल ] (इतः) यहां से (मुञ्चन्तु) वाञ्छनीय जल को मुक्त करें, त्यागें, (प्रणीतये) शीघ्र ले जाने के लिये। और (सद्य:) शीघ्र (एतवे) गति के लिये (कृण्वन्तु) इन्हें करें ।

    टिप्पणी

    [मन्त्र वर्णन कवितामय है। नदी के मुख्य जलों से कहा है कि तुम निज एक हिस्से को कुल्या अर्थात् छोटो नहर के रूप में मुक्त करो ताकि हम उसे प्रकृष्ट गति के साथ अपने स्थान तक ले जांय, और हमारी सहायता करो कि शीघ्र ही जल हमें प्राप्त हो जाय। एतवे =इष यती, गतेस्त्रयोऽर्थाः, ज्ञानं गतिः प्राप्तिश्च । एतवे=इण् + तवेन्। प्रवाही मुख्य जलों के प्रति आत्मीय अङ्गभूत जलों को मुक्त करने की अभिलाषा प्रकट की है। "दोष्यते, सुषम्णः सूर्यरश्मिः"। [मन्त्र में छोटी या बड़ी कुल्या का वर्णन है। अन्यत्र कुल्या का वर्णन यथा (अथर्व० ११।३।१३; १८।३।७२; ४।५।७; २०।१७।७; ५।१९।३)]।

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    भाषार्थ

    (कर्मण्याः) कर्मों के साधक (आपः) जल (ओताः) कर्मों में ओतप्रोत हैं, [ये जल ] (इतः) यहां से (मुञ्चन्तु) वाञ्छनीय जल को मुक्त करें, त्यागें, (प्रणीतये) शीघ्र ले जाने के लिये। और (सद्य:) शीघ्र (एतवे) गति के लिये (कृण्वन्तु) इन्हें करें ।

    टिप्पणी

    [मन्त्र वर्णन कवितामय है। नदी के मुख्य जलों से कहा है कि तुम निज एक हिस्से को कुल्या अर्थात् छोटो नहर के रूप में मुक्त करो ताकि हम उसे प्रकृष्ट गति के साथ अपने स्थान तक ले जांय, और हमारी सहायता करो कि शीघ्र ही जल हमें प्राप्त हो जाय। एतवे =इण् गतौ, गतेस्त्रयोऽर्थाः, ज्ञानं गतिः प्राप्तिश्च । एतवे=इण् + तवेन्। प्रवाही मुख्य जलों के प्रति आत्मीय अङ्गभूत जलों को मुक्त करने की अभिलाषा प्रकट की है। "दीप्यते, सुषम्णः सूर्यरश्मिः"। [मन्त्र में छोटी या बड़ी कुल्या का वर्णन है। अन्यत्र कुल्या का वर्णन यथा (अथर्व० ११।३।१३; १८।३।७२; ४।५।७; २०।१७।७; ५।१९।३)]।

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    विषय

    जलधाराओं द्वारा यन्त्र सञ्चालन।

    भावार्थ

    (ओताः) निरन्तर बंधी धारा से बहनेवाली (आपः) जलधाराएं ही (कर्मण्याः) कर्म, क्रियाशक्ति उत्पन्न करने में समर्थ होती हैं। हे पुरुषों (प्रणीतये) अपने यन्त्रों को उत्तम रीति से चलाने के लिए उन जलधाराओं को (इतः) इस रीति या इस निर्दिष्ट मार्ग से (मुञ्चन्तु) छोड़ दो कि (एतवे) गति देने के लिये ये (अपः) जलधाराएं भी (सद्यः) शीघ्र ही (कृण्वन्तु) क्रिया करें। जलधाराओं की शक्ति से यन्त्र चलाने का इसमें उपदेश है कि निरन्तर बहती धारा से शक्ति उत्पन्न करो और शीघ्र चलने वाला यन्त्र चलाओ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शन्तातिर्ऋषिः। आपो देवताः। १ अनुष्टुप्। २ त्रिपदा गायत्री। ३ परोष्णिक्। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Apah, the flow

    Meaning

    May the divine streams of karma interwoven with the karmic flux of existence release me from personal involvement in this situation and help me to move on on the path of rectitude, and always enlighten and enable me to act and reach my divine destination.

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    Translation

    May the waters, seeping through and fit for treatment, release me from this (miserable state) for recoupment. May they quickly make me able to move about.

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    Translation

    Waters blocked in their flow serve the purpose of creating motive force. Let them be left to flow (in some device) to start them mechanically. The currents of water thus create motion in devices.

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    Translation

    May the well-ordered powers of God, useful in actions, release us from this affliction, for adopting a better line of action. May they equip me for advancement.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(ओताः) आङ्+वेञ् तन्तुसन्ताने−क्त। सम्यक् स्यूताः (आपः) परमेश्वरस्य व्यापिकाः शक्तयः (कर्मण्याः) तत्र साधुः। पा० ४।४।९८। इति कर्मन्−यत्। ये चाभावकर्मणोः। पा० ६।४।१६८। इति प्रकृतिभावः। कर्मसु साधवः (मुञ्चन्तु) मुक्तान् कुर्वन्तु, अस्मान् (इतः) अस्मात् कष्टात् (प्रणीतये) प्रकृष्टनीतिप्राप्तये (सद्यः) शीघ्रम् (कृण्वन्तु) कुर्वन्तु (एतवे) तुमर्थे सेसेन०। पा० ३।४।९। इति इण् गतौ, तवे। गन्तुम् ॥

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