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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 25 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 25/ मन्त्र 3
    ऋषिः - शुनः शेप देवता - मन्याविनाशनम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - मन्याविनाशन सूक्त
    52

    नव॑ च॒ या न॑व॒तिश्च॑ सं॒यन्ति॒ स्कन्ध्या॑ अ॒भि। इ॒तस्ताः सर्वा॑ नश्यन्तु वा॒का अ॑प॒चिता॑मिव ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नव॑ । च॒ । या: । न॒व॒ति: । च॒ । स॒म्ऽयन्ति॑ । स्कन्ध्या॑: । अ॒भि । इ॒त: । ता: । सर्वा॑: । न॒श्य॒न्तु॒ । वा॒का: । अ॒प॒चिता॑म्ऽइव ॥२५.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नव च या नवतिश्च संयन्ति स्कन्ध्या अभि। इतस्ताः सर्वा नश्यन्तु वाका अपचितामिव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नव । च । या: । नवति: । च । सम्ऽयन्ति । स्कन्ध्या: । अभि । इत: । ता: । सर्वा: । नश्यन्तु । वाका: । अपचिताम्ऽइव ॥२५.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 25; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    रोग के नाश के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (नव) नव (च च) और (नवतिः) नब्बे (याः) जो पीड़ायें (स्कन्ध्याः अभि) कन्धे की नाड़ियों में (संयन्ति) व्यापती हैं। (ताः सर्वाः) वे सब... म० १ ॥३॥

    भावार्थ

    मन्त्र १ के समान ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(नव च नवतिश्च) नवोत्तरनवतिसंख्याकाः (स्कन्ध्याः) स्कन्ध−यत्, स्कन्धे भवा धमनीः। अन्यद्गतम् ॥

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    विषय

    नाड़ियों के विकार का निराकरण

    पदार्थ

    १. (या:) = जो (पञ्च च पञ्चाशत् च) = पाँच और पचास पीड़ाएँ (मन्याः अभि) = गले के पृष्ठ भाग की नाड़ियों में (संयन्ति) = व्याप्त होती हैं, (ताः सर्वाः) = वे सब (इत:) = यहाँ से इसप्रकार (नश्यन्त) = नष्ट हो जाएँ, (इव) = जैसे विद्वानों के सामने (अपचितां वाका:) = मूखों के वचन। २. (या:) = जो (सप्त च समतिः च) = सात और सत्तर पीड़ाएँ (ग्रैव्या: अभि) = गले की नाड़ियों में (संयन्ति) = व्याप्त हो जाती हैं, वे सब यहाँ से उसी प्रकार नष्ट हो जाएँ (इव) = जैसेकि ज्ञानियों के सामने (अपचिताम् वाका:) = मूखों के वचन नष्ट हो जाते हैं। (या:) = जो (नव च नवतिश्च) = नौ और नव्वे पीडाएँ (स्कन्ध्या: अभि) = कन्धों की नाडियों में (संयन्ति) = व्याप्त हो जाती हैं, वे सब यहाँ से इसप्रकार नष्ट हो जाएँ जैसेकि ज्ञानियों के सामने मूखों के वचन नष्ट हो जाते हैं।

    भावार्थ

    'मन्या, ग्रैव्य व स्कन्ध्य' नाड़ियों में विकार के कारण गण्डमाला का रोग प्रकट होता है। नाना प्रकार की फुसियों या गिलटियों से बना यह रोग जल के ठीक प्रयोग से दूर किया जाए, तभी जीवन सुखी होगा।

    विशेष

    शरीर के रोगों की भाँति मानस रोगों को दूर करनेवाला यह व्यक्ति 'ब्रह्मा' बनता है-बड़ा-एकदम निष्पाप । यही अगले सूक्त का ऋषि है।

     

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    भाषार्थ

    (नव च) नौ और (नवतिः च) नब्बे (याः) जो (स्कन्ध्याः ) कन्धे की ग्रन्थियां (अभि) कन्धे के चारों ओर (संयन्ति) परस्पर साथ-साथ लगी हुई हैं, (ताः सर्वाः) वे सब (इतः) इस प्रयोग से ( नश्यन्तु) नष्ट हो जांय (वाका अपचितामिव) पूर्ववत्।

    टिप्पणी

    [नश्यन्तु = नश = णश अदर्शने (दिवादिः), अदृष्ट हो जायं, सूखकर पूर्ववत् सूक्ष्मरूप हो जांय]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Manya-Vinashanam

    Meaning

    Let all the nine and ninety outgrowths and ailments of the shoulders which together afflict the patient be cured and disappear from here as words and wishes of ignorant fools disappear in the air.

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    Translation

    The nine and the ninety (pains), that go towards the region of neck, may all of them vanish from here like noises of noxious flying insects.

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    Translation

    Let all the nine and ninety excrescences which develop into the shoulder etc. etc.

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    Translation

    May all the ninety-nine ills that attack the shoulder, depart and vanish hence away, like the words of the weak.

    Footnote

    Ninety-nine: Innumerable.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(नव च नवतिश्च) नवोत्तरनवतिसंख्याकाः (स्कन्ध्याः) स्कन्ध−यत्, स्कन्धे भवा धमनीः। अन्यद्गतम् ॥

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