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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 39 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 39/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अथर्वा देवता - बृहस्पतिः, त्विषिः छन्दः - जगती सूक्तम् - वर्चस्य सूक्त
    41

    अच्छा॑ न॒ इन्द्रं॑ य॒शसं॒ यशो॑भिर्यश॒स्विनं॑ नमसा॒ना वि॑धेम। स नो॑ रास्व रा॒ष्ट्रमिन्द्र॑जूतं॒ तस्य॑ ते रा॒तौ य॒शसः॑ स्याम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अच्छ॑। न॒: । इन्द्र॑म् । य॒शस॑म् ।यश॑:ऽभि: ।य॒श॒स्विन॑म् । न॒म॒सा॒ना: । वि॒धे॒म॒ । स: । न॒: । रा॒स्व॒ । रा॒ष्ट्रम् । इन्द्र॑ऽजूतम् । तस्य॑ । ते॒ । रा॒तौ । य॒शस॑: । स्या॒म॒ ॥३९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अच्छा न इन्द्रं यशसं यशोभिर्यशस्विनं नमसाना विधेम। स नो रास्व राष्ट्रमिन्द्रजूतं तस्य ते रातौ यशसः स्याम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अच्छ। न: । इन्द्रम् । यशसम् ।यश:ऽभि: ।यशस्विनम् । नमसाना: । विधेम । स: । न: । रास्व । राष्ट्रम् । इन्द्रऽजूतम् । तस्य । ते । रातौ । यशस: । स्याम ॥३९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 39; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    यश पाने का उपदेश।

    पदार्थ

    (यशसम्) यशस्वी, (यशोभिः) अपनी व्याप्तियों से (यशस्विनम्) बड़े कीर्तिवाले (इन्द्रम्) सम्पूर्ण ऐश्वर्यवाले परमेश्वर को (नमसानाः) नमस्कार करते हुए हम (नः) अपने लिये (अच्छ) अच्छे प्रकार (विधेम) पूजें। (सः) वह तू (इन्द्रजूतम्) तुझ परमेश्वर से भेजा हुआ (राष्ट्रम्) राज्य (नः) हमें (रास्व) दे, (तस्य ते) उस तेरे (रातौ) दान में हम लोग (यशसा) यशस्वी (स्याम) होवें ॥२॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य परमेश्वर की प्रार्थना और उपासना करके पुरुषार्थ करते हैं, वे संसार में कीर्ति पाते हैं ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(अच्छ) सुष्ठु (नः) अस्मभ्यम्। स्वहिताय (इन्द्रम्) परमेश्वरम् (यशसम्) सुप आत्मनः क्यच्। पा० ३।१।८। इति यशः शब्दात्−क्यच्, क्विपि। अलोपयलोपौ। आत्मनो यश इच्छन्तम् (यशोभिः) अशेर्देवने युट् च। उ० ४।१९१। इति अशू व्याप्तौ−असुन्, युट् च धातोः। व्याप्तिभिः (यशस्विनम्) कीर्त्तिमन्तम् (नमसानाः) पूर्ववद् यशस्यतेः क्विपि शानच्। आत्मनेपदं छान्दसम्। नमस्यन्तः (विधेम) परिचरेम (सः) स त्वम् (नः) अस्मभ्यम् (रास्व) रासृ दाने। देहि (राष्ट्रम्) राज्यम् (इन्द्रजूतम्) परमेश्वरेण त्वया प्रेरितम् (तस्य) प्रसिद्धस्य (ते) तव (रातौ) दाने (यशसः) आत्मनो यश इच्छन्तः (स्याम) भवेम ॥

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    विषय

    यशस्वी जीवन

    पदार्थ

    १.(न: अच्छ) = हमारे आभिमुख्येन वर्तमान (इन्द्रम) = परमैश्वर्यशाली, (यशसम्) = यशस्वी, (यशोभिः यशस्विनम्) = यशों के द्वारा हमारे जीवनों को यशस्वी बनानेवाले प्रभु को (नमसाना:) = नमन करते हुए (विधेम) = पूजित करते हैं। २. हे प्रभो! (स:) = वे आप (न:) = हमें (इन्द्रजूतम्) = परमैश्वर्यशाली आपके द्वारा प्रेरित (राष्ट्रं रास्व) = राष्ट्र दीजिए, अर्थात् हमारा राष्ट्र वेदोपदिष्ट आपकी आज्ञाओं के अनुसार सञ्चालित हो। (तस्य ते) = उन आपके (रातौ) = दान में हम (यशसः स्याम) = यशस्वी जीवनवाले हों।

    भावार्थ

    हम यशस्वी प्रभु का स्मरण करें। हमारा राष्ट्र प्रभु से दिये गये निर्देशों के अनुसार सञ्चालित हो। प्रभु-प्रदत्त इस राष्ट्र में हम यशस्वी जीवनवाले हों।

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    भाषार्थ

    (न: अच्छ) हमारे अभिमुख वर्तमान. (यशसम् ) यशोरूप, (यशोभिः यशस्विनम्) यशोमय कर्मों द्वारा यशस्वी (इन्द्रम् ) सम्राट् को ( नमसाना: ) नमस्कार करते हुए (विधेम) हम उसकी परिचर्या करें। (सः) वह तू हे सम्राट् ! (इन्द्रजूतम्) तुझ सम्राट् द्वारा प्रेरित ( राष्ट्रम् ) राज्य (नः) हमें (रास्व) प्रदान कर, (ते) तेरे ( तस्य रातौ) उस राष्ट्र के प्रदान पर (यशसः स्याम) हम यशस्वी हों ।

    टिप्पणी

    [विधेम =परिषरणकर्मा (निघं. ३।५ ) । सम्राट् है संयुक्त-माण्डलिक राजाओं का अधिपति। संयुक्त माण्डलिक राजा नाना है, इसलिये "न:, स्याम, विधेम" में बहुवचन है। माण्डलिक राजा और सम्राट् जब कार्यवश एक दूसरे के अभिमुख होते हैं, तब माण्डलिक राजा, सम्राट् को नमस्कार करते हैं।

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    विषय

    यश और बल की प्रार्थना।

    भावार्थ

    हम लोग (अच्छा) साक्षात् (इन्द्रम्) ऐश्वर्यवान् (यशसम्) यशो रूप या सर्वव्यापक (यशोभिः) अपनी व्यापक शक्तियों से (यशस्विनं) यशस्वी प्रभु को (नमसानाः) नमस्कारपूर्वक पूजा करते हुए (विधेम) उसके गुणों को अपने भीतर धारण करें। (सः) वह (नः) हमें (इन्द्र-जूतं) एक बड़े राजा से संचालित (राष्ट्रं रास्व) राष्ट्र को प्रदान करे। हे परमात्मन् ! (तस्य) उस (ते) महेश्वर जगदीश्वर के (रातौ) दिये राष्ट्र में हम (यशसः) यशस्वी होकर (स्याम) रहें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वर्चस्कामोऽथर्वा ऋषिः। बृहस्पतिर्देवता। १ जगती, २ त्रिष्टुप्, ३ अनुष्टुप्। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Honour and Excellence

    Meaning

    Well and holily, bearing havi in homage for our good, we worship Indra, lord of glory, sublime by his divine grandeur and majesty. May he give us a great Indra-inspired Rashtra, a dominion of freedom and prosperity. 0 Lord, may we too rise to fame and excellence by your grace and generosity.

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    Translation

    With glories we worship the resplendent Lord, who is before us and is glorious with glories, in all our humility. As such may you grant away (kingdom) promoted by the resplendent Lord; in your that grant, may we become glorious.

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    Translation

    We Consecrating our services pray well Indra, the Almighty God who is glorious for His virtues and glories. May He give us Kingdom ruled and guarded by a mighty King. O Lord! may we attain glory in Thy boon.

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    Translation

    May we, bowing, nicely worship our glorious God, famous for His glories, May He grant us a kingdom well-administered by a king. May we be prosperous in this boon of Thine.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(अच्छ) सुष्ठु (नः) अस्मभ्यम्। स्वहिताय (इन्द्रम्) परमेश्वरम् (यशसम्) सुप आत्मनः क्यच्। पा० ३।१।८। इति यशः शब्दात्−क्यच्, क्विपि। अलोपयलोपौ। आत्मनो यश इच्छन्तम् (यशोभिः) अशेर्देवने युट् च। उ० ४।१९१। इति अशू व्याप्तौ−असुन्, युट् च धातोः। व्याप्तिभिः (यशस्विनम्) कीर्त्तिमन्तम् (नमसानाः) पूर्ववद् यशस्यतेः क्विपि शानच्। आत्मनेपदं छान्दसम्। नमस्यन्तः (विधेम) परिचरेम (सः) स त्वम् (नः) अस्मभ्यम् (रास्व) रासृ दाने। देहि (राष्ट्रम्) राज्यम् (इन्द्रजूतम्) परमेश्वरेण त्वया प्रेरितम् (तस्य) प्रसिद्धस्य (ते) तव (रातौ) दाने (यशसः) आत्मनो यश इच्छन्तः (स्याम) भवेम ॥

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