अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 42/ मन्त्र 2
ऋषिः - भृग्वङ्गिरा
देवता - मन्यु
छन्दः - भुरिगनुष्टुप्
सूक्तम् - परस्परचित्तैदीकरण सूक्त
58
सखा॑याविव सचावहा॒ अव॑ म॒न्युं त॑नोमि ते। अ॒धस्ते॒ अश्म॑नो म॒न्युमुपा॑स्यामसि॒ यो गु॒रुः ॥
स्वर सहित पद पाठसखा॑यौऽइव । स॒चा॒व॒है॒ । अव॑ । म॒न्युम् । त॒नो॒मि॒ । ते॒ । अ॒ध:। ते॒ । अश्म॑न: । म॒न्युम् । उप॑ । अ॒स्या॒म॒सि॒ । य: । गु॒रु: ॥४२.२॥
स्वर रहित मन्त्र
सखायाविव सचावहा अव मन्युं तनोमि ते। अधस्ते अश्मनो मन्युमुपास्यामसि यो गुरुः ॥
स्वर रहित पद पाठसखायौऽइव । सचावहै । अव । मन्युम् । तनोमि । ते । अध:। ते । अश्मन: । मन्युम् । उप । अस्यामसि । य: । गुरु: ॥४२.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
क्रोध की शान्ति के लिये उपदेश।
पदार्थ
(सखायौ इव) दो मित्रों के समान (सचावहै) हम दोनों मिले रहें, (ते) तेरे (मन्युम्) क्रोध को (अव तनोमि) मैं उतारता हूँ। (ते) तेरे (मन्युम्) क्रोध को (अश्मनः) उस पत्थर के (अधः) नीचे (उप अस्यामसि) दबाकर हम गिराते हैं (यः) जो (गुरुः) भारी [पत्थर] है ॥२॥
भावार्थ
मनुष्य क्रोध छोड़कर परस्पर प्रीति से रहें ॥२॥
टिप्पणी
२−पूर्वार्धो यथा म० १। (अधः) अधस्तात् (ते) तव (अश्मनः) पाषाणस्य (मन्युम्) क्रोधम् (उप) उपेत्य (अस्यामसि) क्षिपामः (यः) अश्मा (गुरुः) भारोपेतः ॥
विषय
अधः ते अश्मनः मन्युम्
पदार्थ
१. हम दोनों सखायौ (इव) = समान ख्यानवाले मित्रों की भाँति (सचावहै) = मिलकर समानरूप से कार्य करनेवाले बनें। मैं (ते मन्युम् अवतनोमि) = तेरे क्रोध को उसी प्रकार अवतत [उतारा हुआ] करता हूँ, जैसे धनुष से डोरी को उतारते हैं। २.हे क्रुद्ध मनुष्य! (ते) = तेरे (मन्युम्) = क्रोध को उस (अश्मनः अध:) = पत्थर के नीचे (उपास्यामसि) = फेंकते हैं (यः गरु:) = जो पत्थर भारी होने के कारण हिलाया भी नहीं जा सकता।
भावार्थ
हम क्रोध को एक भारी पत्थर के नीचे दबा दें। यह क्रोध हम तक फिर न आ सके। हम परस्पर प्रेमयुक्त होते हुए एक-दूसरे के कार्य की पूर्ति करनेवाले बनें।
भाषार्थ
(सखायौ इव) दो मित्रों के सदृश (सचावहै) हम दोनों मिल जाय, इसलिये (ते) तेरे (मन्युम्) मन्यु को (अव तनोनि) मैं उतर देती हूं। (ते मन्युम्) तेरे मन्यु को (अश्मनः अधः उपास्यामसि) हम ऐसे फेंक देते हैं, जैसे कि पत्थर के नीचे किसी वस्तु को फेंक दिया जाता है (य:) जो पत्थर कि (गुरुः) भारी है।
टिप्पणी
[उपास्यामसि में बहुवचन है। पत्नी के साथ मिल कर अन्य गृहवासी भी पति को प्रसन्न कर उस के मन्यु को दूर करते हैं। मन्त्र में उपमावाचकपद लुप्त है।]
विषय
क्रोध को दूर करके परस्पर मिलकर रहने का उपदेश।
भावार्थ
क्रोध के विरोध का उपदेश करते हैं। हम दोनों (सखायौ इव) दो मित्रों के समान (सचावहै) मिल कर रहें और यदि इस मित्रतापूर्वक रहते हुए कभी क्रोध भी आ जाय तो प्रत्येक हममें से अपना यही कर्त्तव्य समझे कि (ते मन्युं अव तनोमि) मैं तेरे क्रोध को शान्त करूं। यदि फिर भी क्रोध उमड़ना चाहे तो यह विचार हो कि (अश्मनः अध इव) भारी शिला के समान भारी पदार्थ के नीचे जिस प्रकार उड़ता हुआ पदार्थ दब जाता है फिर नहीं उड़ता उसी प्रकार (ते मन्युम्) तेरे क्रोध को भी (यः गुरुः) जो हमारा गुरु, उपदेशक (उपास्यामसि) उस उपदेष्टा गुरु के अधीन कर दें जिसके गौरव से दब कर पुनः क्रोध न उठे। क्रोध आजाने पर गुरु के समीप जाकर कलह के कारण को मिटा लेना चाहिये जिससे फिर क्रोध न सतावे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
परस्परचित्तैककरणे भृग्वङ्गिरा ऋषिः। मन्युर्देवता १, ३ अनुष्टुभः (१, २ भुरिजौ) तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Freedom from Anger
Meaning
I relax the tension of anger and passion from your mind so that we may live together as happy friends. Your anger is intense and oppressive, we cast and bury it down under a heavy stone.
Translation
May both of us live together like friends; I take away your anger. We bury your anger under a very large stone.
Translation
We walk together as friends I remove your wrath from your within. We bury this beneath the stone the anger of yours which is heavy and strong.
Translation
Together let us walk as friends: thy wrathful feeling I remove. Beneath a heavy stone we cast thy wrath away and bury it.
Footnote
Anything put under a heavy weight cannot move or rise up, so wrath thrown under a heavy stone is symbolic of appeasement.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−पूर्वार्धो यथा म० १। (अधः) अधस्तात् (ते) तव (अश्मनः) पाषाणस्य (मन्युम्) क्रोधम् (उप) उपेत्य (अस्यामसि) क्षिपामः (यः) अश्मा (गुरुः) भारोपेतः ॥
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