अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 44/ मन्त्र 2
ऋषिः - विश्वामित्र
देवता - वनस्पतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - रोगनाशन सूक्त
107
श॒तं या भे॑ष॒जानि॑ ते स॒हस्रं॒ संग॑तानि च। श्रेष्ठ॑मास्रावभेष॒जं वसि॑ष्ठं रोग॒नाश॑नम् ॥
स्वर सहित पद पाठश॒तम् । या । भे॒ष॒जानि॑ । ते॒ । स॒हस्र॑म् । समऽग॑तानि । च॒ । श्रेष्ठ॑म् । आ॒स्रा॒व॒ऽभे॒ष॒जम् । वसि॑ष्ठम् । रो॒ग॒ऽनाश॑नम् ॥४४.२॥
स्वर रहित मन्त्र
शतं या भेषजानि ते सहस्रं संगतानि च। श्रेष्ठमास्रावभेषजं वसिष्ठं रोगनाशनम् ॥
स्वर रहित पद पाठशतम् । या । भेषजानि । ते । सहस्रम् । समऽगतानि । च । श्रेष्ठम् । आस्रावऽभेषजम् । वसिष्ठम् । रोगऽनाशनम् ॥४४.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
रोग के नाश के लिये उपदेश।
पदार्थ
[हे मनुष्य !] (ते) तेरे लिये (या) जो (शतम्) सौ (च) और (सहस्रम्) सहस्र (भेषजानि) ओषधियाँ (संगतानि) परस्पर मेलवाली हैं, [उनमें से] (वसिष्ठम्) अतिशय धनी वा निवास करनेवाला ब्रह्म (श्रेष्ठम्) अति श्रेष्ठ (आस्रावभेषजम्) रुधिर के बहाव वा घाव की औषध और (रोगनाशनम्) रोगों का नाश करनेवाला है ॥२॥
भावार्थ
योगीजन सब पदार्थों से गुण ग्रहण करके उस परब्रह्म की आज्ञापालन से सदा स्वस्थ और सुखी रहते हैं ॥२॥
टिप्पणी
२−(शतम्) (या) यानि (भेषजानि) भयनिवर्त्तकानि। औषधानि (ते) तुभ्यम् (सहस्रम्) बहूनि (संगतानि) परस्परमिलितानि (च) (श्रेष्ठम्) सर्वेषां प्रशस्ततमम् (आस्रावभेषजम्) आस्रावः−अ० १।२।४। आङ्+स्रु स्रवणे−ण। आस्रावस्य रुधिरादिस्रवणस्य आघातस्य वौषधम् (वसिष्ठम्) अ० ४।२९।३। अतिशयेन धनयुक्तम्। वस्तृतमं ब्रह्म (रोगनाशनम्) सर्वव्याधिनाशकम् ॥
विषय
श्रेष्ठम् आस्त्रावभेषजम्
पदार्थ
१. हे व्याधित ! (ते) = तेरी (या) = जो (शतम्) = सैकड़ों (च) = और (सहस्त्रम्) = हज़ारों भेषजानि रोगशामक ओषधियाँ (संगतानि) = प्राप्त हुई हैं, उनमें 'विषाणका' [अगले मन्त्र में वर्णित] ओषधि (श्रेष्ठम्) = श्रेष्ठ है, प्रशस्ततम है। यह (आस्त्रावभेषजम्) = रक्तस्त्राव की निवर्तक है (वसिष्ठम्) = वासयितृतम है रुधिर के आस्त्राव को रोककर तुझे उत्तमता से बसानेवाली है, और (रोगनाशनम्) = रोग को नष्ट करनेवाली है।
भाषार्थ
(या=यानि) जो (शतम्) सौ (भेषजानि) चिकित्सा योग्य औषधें, (च) और (सहस्रम्) हजार औषधें (संगतानि) एकत्रित की हैं, उन में से (आस्रावभेषजम्) आस्राव की औषध जो (ते ) तेरे (रोगनाशनम्) रोग की नाशक है, वह (श्रेष्ठम्) सर्वोत्तम (वसिष्ठम्) है।
टिप्पणी
[वसिष्ठम्= जल । यथा “वसिष्ठोऽप्याच्छादित१ उदकसंघातः" स्कन्धस्वामी का भाष्य, मन्त्र "उतासि मैत्रावरुणो वसिष्ठ" (ऋ० ७॥३३॥१) (निरुक्त ५।३।१४)। इसे ही मन्त्र ३ में "रुद्रस्य मूलमसि" [मन्त्र ३] द्वारा रुद्र का मूत्र कहा है। जल "वसिष्ठ" है "वस्तृतम" है, शरीर में ३/४ भाग रूप में बसा हुआ है, शेष भाग में 1/4 अन्य तत्त्व हैं। अथवा वसिष्ठः वासयितृतमः (सायण)। शरीर में जीवात्मा को बसाने का यह सर्वातिशय साधन है। शरीर में उदकमात्रा के कम हो जाने पर मृत्यु की सम्भावना हो जाता है। उदकमात्रा के कम हो जाने को "DEHYDRATION" कहते हैं]। [१. वसिष्ठ शब्द में वस आच्छादने मान कर आच्छादित अर्थ किया है, उदक संघ मेघ में आच्छादित रहता है।]
विषय
रोग की चिकित्सा में विषाणका नाम ओषधि।
भावार्थ
(यानि से शतम्) जो तेरी सैकड़ों और (सहस्रम्) हज़ारों (भेषजानि) ओषधियां (संगतानि च) प्राप्त भी हो गई हैं और। निदान के अनुकूल भी हैं तो भी उनमें से जो (श्रेष्ठम्) सब से अधिक गुणकारी और (वसिष्ठम्) मुख्य रूप से देह में वास करनेवाली उसके भीतर प्रवेश करके असर कर जाने वाली (आस्त्राव-भेषजम्) रक्तस्राव को अच्छा करनेवाली औषध है वह (रोग-नाशनम्) रोग का अवश्य नाश करती है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः। मन्त्रोक्ता उत वनस्पतिर्देवता। १,२ अनुष्टुभौ। ३ त्रिपदा महाबृहती। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Herbal Cure
Meaning
Hundred are your medicines, a thousand their supplements and substitutes. The best of them is Brahma which stops bleeding, and that is the cure of the malady.
Translation
Whatever a hundred remedies are for you and a thousand are their combinations; among them this is the best cure for haemonhage (asrava); it controls as well as roots out the disease.
Translation
Of all your hundred remedies and a thousand remedies combined together this is the surest cure for flux and excellent to heal disease.
Translation
O patient, of all thy hundred remedies, a thousand remedies combined, this is surest cure for flux, most excellent to heal disease!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(शतम्) (या) यानि (भेषजानि) भयनिवर्त्तकानि। औषधानि (ते) तुभ्यम् (सहस्रम्) बहूनि (संगतानि) परस्परमिलितानि (च) (श्रेष्ठम्) सर्वेषां प्रशस्ततमम् (आस्रावभेषजम्) आस्रावः−अ० १।२।४। आङ्+स्रु स्रवणे−ण। आस्रावस्य रुधिरादिस्रवणस्य आघातस्य वौषधम् (वसिष्ठम्) अ० ४।२९।३। अतिशयेन धनयुक्तम्। वस्तृतमं ब्रह्म (रोगनाशनम्) सर्वव्याधिनाशकम् ॥
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