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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 67 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 67/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अथर्वा देवता - चन्द्रः, इन्द्रः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
    68

    मू॒ढा अ॒मित्रा॑श्चरताशी॒र्षाण॑ इ॒वाह॑यः। तेषां॑ वो अ॒ग्निमू॑ढाना॒मिन्द्रो॑ हन्तु॒ वरं॑वरम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मू॒ढा: । अ॒मित्रा॑: । च॒र॒त॒ । अ॒शी॒र्षाण॑:ऽइव । अह॑य: । तेषा॑म् । व॒: । अ॒ग्निऽमू॑ढानाम् ।इन्द्र॑: । ह॒न्तु॒ । वर॑म्ऽवरम् ॥६७.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मूढा अमित्राश्चरताशीर्षाण इवाहयः। तेषां वो अग्निमूढानामिन्द्रो हन्तु वरंवरम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मूढा: । अमित्रा: । चरत । अशीर्षाण:ऽइव । अहय: । तेषाम् । व: । अग्निऽमूढानाम् ।इन्द्र: । हन्तु । वरम्ऽवरम् ॥६७.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 67; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (4)

    विषय

    सेनापति के लक्षणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (मूढाः) हे घबड़ाये हुए (अमित्राः) पीड़ा देनेवाले शत्रुओं ! (अशीर्षाणः) बिना शिरवाले [शिर कटे] (अहयः इव) साँपों के समान (चरत) चेष्टा करो। (इन्द्रः) प्रतापी वीर राजा (अग्निमूढानाम्) अग्नि [आग्नेय शस्त्रों] से घबड़ाये हुए (तेषां वः) उन तुम सबों में से (वरंवरम्) अच्छे-अच्छों को चुन कर (हन्तु) मारे ॥२॥

    भावार्थ

    कुशल सेनापति इस प्रकार व्यूहरचना करे कि शत्रु के सेनादल विध्वंस होकर घबड़ा जावें और उनके बड़े-बड़े नायक मारे जावें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(मूढाः) मुह वैचित्ये−क्त। व्याकुलाः (अमित्राः) पीडकाः शत्रवः (चरत) चेष्टां कुरुत (अशीर्षाणः) शीर्षंश्छन्दसि। प० ६।१।६०। इति शिरः शब्दस्य शीर्षन्। अशिरसः। छिन्नशिरस्काः (इव) यथा (अहयः) अ० २।५।५। आहन्तारः सर्पाः (तेषाम्) तादृशानाम् (वः) युष्माकम् (अग्निमूढानाम्) अग्निना आग्नेयास्त्रैर्व्याकुलीकृतानां मध्ये (इन्द्रः) प्रतापी वीरो राजा (हन्तु) नाशयतु (वरंवरम्) श्रेष्ठं श्रेष्ठं नायकम् ॥

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    विषय

    प्रधान-विनाश

    पदार्थ

    १.हे (अमित्रा:) = हे शत्रुओ! (मूढाः चरत) = जय-उपाय-ज्ञानशून्य होकर तुम युद्धभूमि में इसप्रकार विचरो (इव) = जैसे (अशीर्षाण: अहयः) = अशिरस्क-छिन्नशिरस-सर्प केवल चेष्टा करते हैं, परन्तु कार्य कुछ भी नहीं कर सकते, ऐसे ही तुम भी हो जाओ। २. (अग्रिमूढानाम्) = आग्नेय अस्त्रों से मूढ बने हुए-घबराये हुए (तेषां व:) = उन तुममें से (वरं वरम्) = श्रेष्ठ-श्रेष्ठ को-मुख्य व्यक्तियों को (इन्द्रः) = यह शत्रुविद्रावक सेनापति (हन्तु) = मार डाले। मुख्यों के मारे जाने पर युद्ध समाप्त हो जाने से दूसरों को मारने की आवश्यकता ही नहीं रहती।

    भावार्थ

    सब मार्गों के रुके होने पर शत्रु घबरा जाएँ। आग्नेय-अस्त्रों के प्रक्षेप से मूढ बने हुए इन शत्रुओं में से राजा चुन-चुनकर मुखियों को मारडाले, जिससे व्यर्थ का नर-संहार न करना पड़े।

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    भाषार्थ

    (अमित्राः) हे शदुओ ! (मूढाः चरत) तुम जय के उपाय के ज्ञान से रहित हुए विचरो, (इव) जैसे (अशीर्षाण:) सिस्कटे (अहयः) सांप [इधर-उधर लुढ़कते रहते हैं]। (अग्निमूढानाम्)१ हमारे अग्रणी की सूचना द्वारा शानशून्य हुओं (तेषाम् वः) उन तुम में से (वरं वरम्) मुख्य-मुख्य को (इन्द्रः) सम्राट् (हन्तु) मार डाले।

    टिप्पणी

    [सेनाधिकारी शत्रु के मुख्यों की सूचना अग्रणी अर्थात् प्रधानमन्त्री को दें, और प्रधानमन्त्री सम्राट को सूचना दे। तब सम्राट् मुख्य-मुख्य शत्रुओं को मार देने को आज्ञा दे। शेष सैनिक मारने न चाहिये। अथवा "अग्नि" = आग्नेय-अस्त्र]। [१. "अग्निना सूचितानां मूढानाम्" मध्यपदलोपी समास।]

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    विषय

    शत्रु-विजय।

    भावार्थ

    हे (अमित्राः) शत्रुओ ! तुम लोग (मूढाः) मूढ, किंकर्त्तव्यविमूढ़ होकर, विना मार्ग प्राप्त किये, भटकते हुए (अशीर्षाणः) बिना सिर के (अहयः इव) सर्पों के समान अन्धे होकर (चरत) विचरो, (अग्नि- मूढानाम्) हमारे अग्रणी सेनापति के प्रयाण से मोहित और मार्ग छोड़कर भटकते हुए (तेषां वः) उन तुम्हारे में से (इन्द्रः) वीर सेनापति राजा (वरं वरं हन्तु) अच्छे अच्छे चुने वीर पुरुषों को मार डाले।

    टिप्पणी

    (प्र० द्वि०) ‘अन्धा अमित्रा भवताशीर्षाणोदय इव’ (तृ०) ‘अग्निनुन्नानाम्’ इति साम०। ‘शीर्षीणा अह’ (तृ०) ‘अग्निदग्धानामग्निमूढानां’ इति ऋ०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। चन्द्र उत इन्द्रो देवता। अनुष्टुप्। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Fear and Defence

    Meaning

    Let the enemies be away and move around, stupefied like snakes whose head is crushed, and let Indra pick out the chief ones of them confused by fiery missiles and eliminate them.

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    Translation

    May you, O enemies, move about bewildered like snakes with severed heads. Of you, confounded by the adorable one (the army chief), let the resplendent one (the king) slay each and every prominent chief.

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    Translation

    Ye foes come, hitherward bewildered like the serpent who have not their heads, let King slay each bravest of you whom the commander has made confused.

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    Translation

    Ye foes, wander dismayed, on the battlefield not knowing how to win victory like headless blind serpents. Let the Commander-in-chief slay each bravest one of you whom a fiery missile has confused.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(मूढाः) मुह वैचित्ये−क्त। व्याकुलाः (अमित्राः) पीडकाः शत्रवः (चरत) चेष्टां कुरुत (अशीर्षाणः) शीर्षंश्छन्दसि। प० ६।१।६०। इति शिरः शब्दस्य शीर्षन्। अशिरसः। छिन्नशिरस्काः (इव) यथा (अहयः) अ० २।५।५। आहन्तारः सर्पाः (तेषाम्) तादृशानाम् (वः) युष्माकम् (अग्निमूढानाम्) अग्निना आग्नेयास्त्रैर्व्याकुलीकृतानां मध्ये (इन्द्रः) प्रतापी वीरो राजा (हन्तु) नाशयतु (वरंवरम्) श्रेष्ठं श्रेष्ठं नायकम् ॥

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