अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 93/ मन्त्र 3
ऋषिः - शन्ताति
देवता - विश्वे देवाः, मरुद्गणः, अग्नीसोमौ, वरुणः, वातपर्जन्यः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - स्वस्त्ययन सूक्त
48
त्राय॑ध्वं नो अ॒घवि॑षाभ्यो व॒धाद्विश्वे॑ देवा मरुतो विश्ववेदसः। अ॒ग्नीषोमा॒ वरु॑णः पू॒तद॑क्षा वातापर्ज॒न्ययोः॑ सुम॒तौ स्या॑म ॥
स्वर सहित पद पाठत्राय॑ध्वम् । न॒: । अ॒घऽवि॑षाभ्य: । व॒धात् । विश्वे॑ । दे॒वा॒: । म॒रु॒त॒: । वि॒श्व॒ऽवे॒द॒स॒: । अ॒ग्नीषोमा॑ । वरु॑ण: । पू॒तऽद॑क्षा: । वा॒ता॒प॒र्ज॒न्ययो॑: । सु॒ऽम॒तौ । स्या॒म॒ ॥९३.३॥
स्वर रहित मन्त्र
त्रायध्वं नो अघविषाभ्यो वधाद्विश्वे देवा मरुतो विश्ववेदसः। अग्नीषोमा वरुणः पूतदक्षा वातापर्जन्ययोः सुमतौ स्याम ॥
स्वर रहित पद पाठत्रायध्वम् । न: । अघऽविषाभ्य: । वधात् । विश्वे । देवा: । मरुत: । विश्वऽवेदस: । अग्नीषोमा । वरुण: । पूतऽदक्षा: । वातापर्जन्ययो: । सुऽमतौ । स्याम ॥९३.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सत्सङ्ग के लाभ का उपदेश।
पदार्थ
(विश्वे) हे सब (देवाः) दिव्यगुणवाले (विश्ववेदसः) संसार के जाननेवाले (मरुतः) दोषनाशक विद्वान् पुरुषो ! (नः) हमें (अघविषाभ्यः) पापरूप विषवाली पीड़ाओं के (वधात्) हनन से (त्रायध्वम्) बचाओ। (अग्नीषोमा) अग्नि और चन्द्रलोक और (वरुणः) सूर्यलोक (पूतदक्षाः) पवित्र बलवाले हैं, [उनको और] (वातापर्जन्ययोः) वायु और मेघ की (सुमतौ) श्रेष्ठ बुद्धि में (स्याम) हम रहें ॥३॥
भावार्थ
मनुष्य आप्त विद्वानों के उपदेश और अग्नि, चन्द्र, सूर्य आदि पदार्थों से यथावत् उपकार करके सुखी होवें ॥३॥
टिप्पणी
३−(त्रायध्वम्) पालयत (नः) अस्मान् धार्मिकान् (अघविषाभ्यः) सुपां सुपो भवन्ति। वा० पा० ७।१।३९। इति षष्ठ्याः पञ्चमी। पापरूपविषयुक्तानां पीडानाम् (वधात्) हननात् (विश्वे) सर्वे (देवाः) दिव्यगुणयुक्ताः (मरुतः) अ० १।२०।१। हे दोषनाशका विद्वांसः (विश्ववेदसः) विश्वस्य जगतो वेत्तारः (अग्नीषोमा) अ० १।८।२। अग्निश्च चन्द्रश्च तौ (वरुणः) वरणीयः सूर्यः (पूतदक्षाः) दक्ष वृद्धौ गतौ च−अच्। दक्षो बलम्−निघ० २।९। पवित्रबलाः (वातापर्जन्ययोः) देवताद्वन्द्वे च। पा० ६।३।२६। इति पूर्वपदस्यानङ्। वायुमेघयोः (सुमतौ) श्रेष्ठायां बुद्धौ (स्याम) ॥
विषय
अनि, सोम, वरुण, मित्र, वात, पर्जन्य
पदार्थ
१. (विश्वेदेवाः) = सब देववृत्तिवाले, (मरुतः) = मितरावी-परिमित बोलनेवाले, (विश्व वेदसः) = सम्पूर्ण ज्ञानवाले पुरुषो! (न:) = हमें (अघविषाभ्यः) = पापरूप विष से युक्त क्रियाओं से होनवाले (बधात्) = बध से (त्राध्वम्) = रक्षित करो। हम आपके शिक्षण-दीक्षण के द्वारा पापों से दूर रहें। २. (अग्निषोमा) = अग्नि व सोम-तेजस्विता व शान्ति तथा (वरुणः पूतदक्षा:) = [मित्रं हुवे पूतदक्षम्०] वरण तथा मित्र-निट्टेषता व स्नेह के भाव हमें पाप से बचाएँ। हम 'तेजस्वी, शान्त, नि₹ष व स्नेही' बनकर पाप से दूर हों। वायु की भाँति हम सबके लिए प्राण [जीवन] देनेवाले हों, पर्जन्य की भांति हम शान्ति का वर्षण करनेवाले हों।
भावार्थ
देववृत्ति के मितरावी, ज्ञानी पुरुष हमें पापों से बचाएँ। हम 'तेजस्वी, शान्त, निर्दोष व स्नेही' बनें। वायु की भाँति हमारी क्रियाएँ सबके लिए प्राणप्रद हों, पर्जन्य की भांति हम शान्ति का वर्षण करनेवाले हों।
विशेष
यह 'तेजस्वी, शान्त, निष व स्नेही व्यक्ति 'अथर्वाङ्गिरस्' बनता है-न डॉवाडोल व रसमय अङ्गोंवाला। यही अगले सूक्त का ऋषि है।
भाषार्थ
(विश्वे देवाः) हे राष्ट्र के सब दिव्य अधिकारियों ! तथा (विश्ववेदसः) सब [वेदों] के वेत्ता (मरुतः) ऋत्विजो! (नः) हम प्रजाजनों को, (अघविषाभ्यः) घातक विषवाली प्रजाओं द्वारा किये गए (वधात्) वध से (त्रायध्वम्) सुरक्षित करो। तथा (अग्नीषोमा= अग्नीषोमौ) सर्वाग्रणी प्रधानमन्त्री और सेनाप्रेरक सेनानायक, (वरुणः)१ राष्ट्र द्वारा चुना गया राजा, जो कि (पूतदक्षाः)१ पवित्र और वृद्धिकारक हैं, वे सब हमें सुरक्षित करें, ताकि (वातापर्जन्ययोः) वायुसदृश प्राणप्रद और पर्जन्य सदृश सुखवृष्टिप्रद परमेश्वर की (सुमतौ) सुमति में, अनुकूल मति में (स्याम) हम हों।
टिप्पणी
[अघाविषाभ्यः= घातक विषधारी प्रजाओं से सुरक्षा। मरुतः= ऋत्विनाम (निघं० ३॥१८)। यज्ञों में ऋत्विक सामान्यतया ४ होते हैं। होता = ऋग्वेदवेत्ता, उद्गाता =सामवेदवेत्ता, अध्वर्यु= यजुर्वेदवेत्ता, ब्रह्मा= चतुर्वेदवेत्ता। यथा– ऋचां त्वः पोषमास्ते पुपुष्वान् गायत्रं त्वो गायत्रीशक्वरीषु। ब्रह्मा त्वो वदति जातविद्यां यज्ञस्य मात्रां विमिमोत उत त्वः।।' (ऋ० १०।७१।११; निरुक्त १।३।८) ब्रह्मा= सर्वविद्यः, सर्वं वेदितुमहति (निरुक्त)। इस द्वारा ब्रह्मा= चतुर्वेदवेत्ता। ऋत्विक् यज्ञों द्वारा वायुमण्डल को पवित्र करते, तथा मन्त्रोपदेशों द्वारा प्रजाओं को पवित्र विचार-आचारवान् करते हैं। अग्नि = अग्रणीर्भवति (निरुक्त ७।४।१४)। सोमः= सेनाध्यक्ष (यजु० १७।४०)। वरुणः= राजा (यजु० ८।३७)। पूतदक्षा:= पवित्र तथा वृद्धि कारक; दक्ष वृद्धौ (भ्वादिः)। अथर्ववेद में पूतदक्षाः सकारान्त पाठ है जो कि वरुणः का विशेषण है। पूतदक्षम् अकारान्त पाठ नहीं। ऋग्वेद में सकारान्त तथा अकारान्त द्विविध पाठ हैं। अत: ऋग्वेद में इन दोनों पाठों में अर्थभेद आवश्यक है]। [(१) अथर्व० ५।२२।१ में भी पूतदक्षाः विशेषण है वरुणः का। यथा "वरुणः पूतदक्षाः"।]
विषय
सेनाओं से रक्षा।
भावार्थ
(विश्वे देवाः) सब शक्तिशाली विद्वान् लोग और (विश्ववेदसः) सब कुछ जानने वाले, (मरुतः) शीघ्रगामी सेना नायक लोग (नः) हमें (अघ-विषाभ्यः) पाप से पूर्ण हत्याकारी सेनाओं से और (वधात्) हत्याकारी शस्त्रों से (त्रायध्वम्) बचावें। (अग्नी-षोमौ) अग्नि = सेनानायक और सोम = प्रेरक राजा और (वरुणः) सर्वश्रेष्ठ महाराज हमें पूर्वोक्त पापियों और हत्याकारों से बचावें। और हम (वातापर्जन्ययोः) वात = तीव्र वायु के समान शत्रु को उड़ा देनेवाले अथवा राष्ट्र के प्राणस्वरूप और राष्ट्र पर सुखों की वर्षा करने और उनको पराजित करने वाले सेनापति और राजा के (सुमतौ) शुभ संकल्प में हम (स्याम) सदा रहें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शंतातिर्ऋषिः। रुद्रो देवता। १-३ त्रिष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Energy, Action, Achievement
Meaning
O Vishvedevas, divinities of nature and nobilities of humanity, Maruts, vibrant powers of winds that abide with the world of existence, Agni, light and fire and peace, and Varuna, sun of purest light and inspiration, protect us from sin and evil and death. And may we ever enjoy the gifts of the good will of the winds and the clouds of rain.
Translation
All the enlightened ones, brave soldiers knowing all, the Lord adorable and venerable, and the venerable Lord skilled in purifying, may they protect us from poisonous sinners and from murder (vadhad). May we be blessed with favour of the wind and the cloud.
Translation
Let all physical forces nature, vital airs possessing all curative powers fire and water and rainy water which are extremely pure, save us from the murderous stroke caused by the things which have deadly poison. We always enjoy the favor of wind and rain.
Translation
May all learned persons highly intelligent leaders of the army, the general, the king, and the emperor, whose might is pure, save us from the murderous stroke of sinful persons. May air and cloud bless us with their favor.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(त्रायध्वम्) पालयत (नः) अस्मान् धार्मिकान् (अघविषाभ्यः) सुपां सुपो भवन्ति। वा० पा० ७।१।३९। इति षष्ठ्याः पञ्चमी। पापरूपविषयुक्तानां पीडानाम् (वधात्) हननात् (विश्वे) सर्वे (देवाः) दिव्यगुणयुक्ताः (मरुतः) अ० १।२०।१। हे दोषनाशका विद्वांसः (विश्ववेदसः) विश्वस्य जगतो वेत्तारः (अग्नीषोमा) अ० १।८।२। अग्निश्च चन्द्रश्च तौ (वरुणः) वरणीयः सूर्यः (पूतदक्षाः) दक्ष वृद्धौ गतौ च−अच्। दक्षो बलम्−निघ० २।९। पवित्रबलाः (वातापर्जन्ययोः) देवताद्वन्द्वे च। पा० ६।३।२६। इति पूर्वपदस्यानङ्। वायुमेघयोः (सुमतौ) श्रेष्ठायां बुद्धौ (स्याम) ॥
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