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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 94 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 94/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वाङ्गिरा देवता - सरस्वती छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सांमनस्य सूक्त
    54

    ओते॑ मे॒ द्यावा॑पृथि॒वी ओता॑ दे॒वी सर॑स्वती। ओतौ॑ म॒ इन्द्र॑श्चा॒ग्निश्च॒र्ध्यास्मे॒दं स॑रस्वति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ओते॒ इत्याऽउ॑ते । मे॒ । द्यावा॑पृथि॒वी इति॑ । आऽउ॑ता । दे॒वी । सर॑स्वती। आऽउ॑तौ । मे॒ । इन्द्र॑: । च॒ । अ॒ग्नि: । च॒ । ऋ॒ध्यास्म॑ । इ॒दम् । स॒र॒स्व॒ति॒ ॥९४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ओते मे द्यावापृथिवी ओता देवी सरस्वती। ओतौ म इन्द्रश्चाग्निश्चर्ध्यास्मेदं सरस्वति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ओते इत्याऽउते । मे । द्यावापृथिवी इति । आऽउता । देवी । सरस्वती। आऽउतौ । मे । इन्द्र: । च । अग्नि: । च । ऋध्यास्म । इदम् । सरस्वति ॥९४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 94; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    शान्ति करने के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (मे) मेरे लिये (द्यावापृथिवी) सूर्य और भूलोक (ओते) बुने हुए हैं, (देवी) दिव्य गुणवाली (सरस्वती) विज्ञानवती विद्या (ओता) परस्पर बुनी हुई है। (च) और (मे) मेरे लिये (इन्द्रः) मेघ (च) और (अग्निः) अग्नि (ओतौ) परस्पर बुने हुए हैं। (सरस्वति) हे विज्ञानवती विद्या ! (इदम्) अब (ऋध्यास्म) हम श्रीमान् होवें ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य विज्ञानपूर्वक विद्या प्राप्त करके संसार के सब पदार्थों से उपकार लेकर धनी होवें ॥३॥ यह मन्त्र कुछ भेद से आ चुका है−अ० ५।२३।१ ॥

    टिप्पणी

    ३−(ओते) आ+वेञ् तन्तुसन्ताने−क्त। परस्परं स्यूने। अन्तर्व्याप्ते (सरस्वती) विज्ञानवती विद्या (इन्द्रः) मेघः (ऋध्यास्म) ऋधु वृद्धौ। श्रीमन्तो भूयास्म। अन्यद् गतम्−अ० ५।२३।१ ॥

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    विषय

    समृद्ध जीवन

    पदार्थ

    १. (द्यावापृथिवी) = मस्तिष्करूप ह्युलोक और शरीररूप पृथिवीलोक (मे) = मेरे जीवन के लिए (आ उते) = आभिमुख्येन सम्बद्ध हैं। मस्तिष्क ज्ञान-विज्ञान के नक्षत्रों से दीप्त है तो शरीर पृथिवी के समान दृढ़ है। (देवी) = प्रकाशमयी सरस्वती-ज्ञान की अधिष्ठात्री देवता (ओता) = मेरे जीवन में ओत-प्रोत हैं। इसीप्रकार (इन्द्रः च अग्निः च) = बल की देवता इन्द्र और प्रकाश की देवता अग्नि (मे ओतौ) = मेरे जीवन में परस्पर सम्बद्ध हैं। अथवा 'इन्द्र', अर्थात् जितेन्द्रियता और 'अग्नि', अर्थात् निरन्तर आगे बढ़ने की भावना-ये मेरे जीवन में ओत-प्रोत हैं। २. (हे सरस्वति) = ज्ञान की अधिष्ठात्री देवते! इन सबके अनुग्रह से (इदम्) = इस जीवन को (ऋध्यास्म) = हम समृद्ध कर पाएँ।

    भावार्थ

    हमारे जीवन में मस्तिष्क व शरीर दोनों की समानरूप से उन्नति हो। हम सरस्वती के उपासक हों-जितेन्द्रिय व आगे बढ़ने की वृत्तिवाले हों। इसप्रकार हम जीवन को समृद्ध बनाएँ।

    विशेष

    अगले दो सूक्तों का ऋषि भृग्वगिरा है-ज्ञान की अग्नि में अपना परिपाक करनेवाला व गतिशील, सरस अङ्गोंवाला।

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    भाषार्थ

    जैसे (द्यावापृथिवी) द्यौः और पृथिवी (ओते) पट में ताने-बाने के सदृश परस्पर ओतप्रोत हैं, परस्पर सम्बद्ध हैं, और उनमें (देवी सरस्वती) जलदात्री मेघोया वाणी (ओता) ओत-प्रोत है, सम्बद्ध है। और उन्हीं में (इन्द्रः) अन्तरिक्षीय विद्युत् (च) तथा (अग्निः) पार्थिवाग्नि (ओतो) ओत-प्रोत हैं, वैसे (सरस्वति) ज्ञान-विज्ञान वाली हे वेदवाणी ! (इदम्) इस राष्ट्र को प्राप्त कर (मे) मेरी (द्यावापृथिवी) नर-नारी प्रजा१, (इन्द्रः) सम्राट् (च) और (अग्निः) अग्रणी प्रधानमन्त्री (ऋध्यास्म) हम सब ऋद्धि को प्राप्त हों, बढ़े।२

    टिप्पणी

    [मन्त्र में वेद विद्या के प्रचार का फल दर्शाया है, सर्वतो वृद्धिः। सरस्वती = सरो विज्ञानमुदकं वा विद्यते ऽस्यां सा सरस्वती वाक् नदी वा (उणा० ४।१९०, दयानन्द)]। [१. यथा द्यौरहं पृथिवी त्वम्। ताविह संभवाव प्रजामाजनयावहै।" (ऋ० १४।२।७१)। २. सूक्त ९४ में कथन, राष्ट्र के राजा द्वारा हुआ है, जिसे कि वरुण कहते हैं। (यजु० ८॥३७)।]

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    विषय

    एकचित्त रहने का उपदेश।

    भावार्थ

    (मे) मेरी दृष्टि में (द्यावापृथिवी) द्युलोक और पृथिवीलोक (ओते) जैसे परस्पर ओत-प्रोत हैं वैसे हम भी परस्पर ओत-प्रोत से रहें, (देवी सरस्वती) दिव्य गुणों वाली वेदवाणी जैसे परमात्मा के साथ ओत-प्रोत रहती हैं वैसे हम भी परस्पर ओत-प्रोत से रहें, (मे) मेरी दृष्टि में (इन्द्रः च अग्निः च) आत्मा और आत्मिक ज्ञान से (ओतौ) जैसे परस्पर ओतप्रोत से रहें, हे (सरस्वति) वेदवाणी ! तू हमें मार्ग दिखा ताकि (इदम्) इस ओत-प्रोत होने के भाव को हम प्राप्त होकर (ऋध्यास्म) ऋद्धि-सिद्धि को प्राप्त कर सकें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वाङ्गिरा ऋषिः। सरस्वती देवता। १,३ अनुष्टुभौ। २ विराड् जगती। तृचं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Union at Heart

    Meaning

    To me and for me, the heaven and earth are joined together as warp and woof, divine Sarasvati is joined, so are Indra and Agni, power and enlightenment, joined. O mother Sarasvati, enlighten us that we may realise this absolute unity.

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    Translation

    Heaven and earth have worked in (otau) for me. The divine Sarasvati has worked in for me. Both Indra and Agni pervade through and through in me. O goddess of enlightenment may we attain all success here. (Also cf.Av. 23.1)

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    Translation

    Let the earth and heaven operate their activities for us in unity, let the Vedic speech unite with us, let the electricity and fire function in co-ordination for our Good. Sarasvati,(the All-knowing Divinity) please show me the path whereby we attain this virtue of unity all over.

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    Translation

    Just as Heaven and Earth are in my view, interunited, so should we be united together. Just as Vedic speech is inextricably united with God, so should we be united together. Just as soul and spiritual knowledge, are in my estimation inalienably mingled together, so should we be united together. O Vedic speech show us the path, so that observing the principle of unification, We may thrive.

    Footnote

    See Atharva, 5-23-1.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(ओते) आ+वेञ् तन्तुसन्ताने−क्त। परस्परं स्यूने। अन्तर्व्याप्ते (सरस्वती) विज्ञानवती विद्या (इन्द्रः) मेघः (ऋध्यास्म) ऋधु वृद्धौ। श्रीमन्तो भूयास्म। अन्यद् गतम्−अ० ५।२३।१ ॥

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