अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 84/ मन्त्र 2
ऋषिः - भृगुः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - क्षत्रभृदग्नि सूक्त
53
इन्द्र॑ क्ष॒त्रम॒भि वा॒ममोजोऽजा॑यथा वृषभ चर्षणी॒नाम्। अपा॑नुदो॒ जन॑ममित्रा॒यन्त॑मु॒रुं दे॒वेभ्यो॑ अकृणोरु लो॒कम् ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑ । क्ष॒त्रम् । अ॒भि । वा॒मम् । ओज॑: । अजा॑यथा: । वृ॒ष॒भ॒: । च॒र्ष॒णी॒नाम् । अप॑ । अ॒नु॒द॒: । जन॑म् । अ॒मि॒त्र॒ऽयन्त॑म् । उ॒रुम् । दे॒वेभ्य॑: । अ॒कृ॒णो॒: । ऊं॒ इति॑ । लो॒कम् ॥८९.२॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्र क्षत्रमभि वाममोजोऽजायथा वृषभ चर्षणीनाम्। अपानुदो जनममित्रायन्तमुरुं देवेभ्यो अकृणोरु लोकम् ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्र । क्षत्रम् । अभि । वामम् । ओज: । अजायथा: । वृषभ: । चर्षणीनाम् । अप । अनुद: । जनम् । अमित्रऽयन्तम् । उरुम् । देवेभ्य: । अकृणो: । ऊं इति । लोकम् ॥८९.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
राजा के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(इन्द्र) हे परम ऐश्वर्यवाले राजन् ! (चर्षणीनाम् वृषभ) हे मनुष्यों में श्रेष्ठ ! (वामम्) उत्तम (क्षत्रम्) राज्य और (ओजः अभि) पराक्रम के लिये (अजायथाः) तू उत्पन्न हुआ है। तूने (अमित्रयन्तम्) अमित्र समान आचरणवाले (जनम्) लोगों को (अप अनुदः) हटा दिया है (उ) और (देवेभ्यः) विजय चाहनेवालों के लिये (उरुम्) विस्तीर्ण (लोकम्) स्थान (अकृणोः) किया है ॥२॥
भावार्थ
राजा के पराक्रमी होने से सेनापति लोग और प्रजागण भी ओजस्वी होते हैं ॥२॥ यह मन्त्र ऋग्वेद में है−१०।१८०।३ ॥
टिप्पणी
२−(इन्द्र) परमैश्वर्यवन् राजन् (क्षत्रम्) क्षतात् त्रायकं राज्यम् (अभि) अभिलक्ष्य (वामम्) प्रशस्यम्-निघ० ३।८। (ओजः) पराक्रमम् (अजायथाः) उत्पन्नोऽभवः (चर्षणीनाम्) मनुष्याणाम्-निघ० २।३। (अप अनुदः) अपागमयः (जनम्) लोकम् (अमित्रयन्तम्) उपमानादाचारे। पा० ३।१।१०। अमित्र-क्यच्, शतृ। नच्छन्दस्य पुत्रस्य। पा० ७।४।३५। इति ईत्वस्य आत्वस्य च निषेधः। सांहितिको दीर्घः। अमित्रः शत्रुः स इवाचरन्तम् (उरुम्) विस्तीर्णम् (देवेभ्यः) विजिगीषुभ्यः (अकृणोः) अकार्षीः (उ) समुच्चये (लोकम्) स्थानम् ॥
विषय
क्षत्रम् ओजः
पदार्थ
१. हे (इन्द्र) = शत्रु-विद्रावक प्रभो! आप (क्षत्रम्) = बल तथा (वामम् ओजः) = सेवनीय ओज को (अभि) = लक्ष्य करके (अजायथा:) = प्रादुर्भूत होते हैं। आपके प्रादुर्भाव से उपासक के जीवन में क्षत्र और ओज की स्थापना होती हैं। २. हे (चर्षणीनां वृषभ) = श्रमशील मनुष्यों पर सुखों का वर्षण करनेवाले प्रभो! आज (अमित्रायन्तम्) = अमित्र [शत्रु] की भाँति आचरण करते हुए जनम् मनुष्य को (अपानुदः) = हमसे दूर कीजिए (उ) = और (देवेभ्यः) = देववृत्ति के पुरुषों के लिए उस लोक (अकृणो:) = विस्तीर्ण स्वर्ग-प्रकाशमयलोक को कीजिए।
भावार्थ
हृदय में प्रभु के प्रादुर्भाव से 'क्षत्र और ओज' की प्राप्ति होती है। प्रभु हमारे शत्रुओं को दूर करके हमारे लिए उत्तम प्रकाशमय लोक को प्राप्त करानेवाले होते हैं।
भाषार्थ
(चर्षणीनाम् वृषभ) हे मनुष्यों पर सुखों की वर्षा करने वाले (इन्द्र) सम्राट् ! (क्षत्रम्) क्षतों से त्राण करने वाले, (वामम्) याचनीय या संभजनीय (ओजः अभि) ओज को अभिलक्ष्य कर के (अजायथाः) तू उत्पन्न हुआ है। (अमित्रायन्तम्) शत्रुवत् आचरण करने वाले (जनम्) जन समूह को (अपानुदः) दूर धकेल, और (देवेभ्यः) साम्राज्य के देवों के लिये (उरुम्, लोकम्) विस्तृत लोक (अकृणोः उ) कर।
टिप्पणी
[अजायथाः द्वारा मन्त्र राजसूय पद्धति का निर्देश करता है। (अथर्व० ४।८।१; ११।९।७)। वामम्= वनु याच्ञायाम् (तनादिः), तथा वन संभक्तौ (भ्वादिः)। देवेभ्यः= विद्वानों, विजिगीषुओं, व्यापारियों आदि के लिये। चर्षणयः मनुष्यनाम (निघं० २।३)]।
विषय
राजा के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे (इन्द्र) ऐश्वर्यशील राजन् ! और (चर्षणीनाम्) समस्त प्रजा के मनुष्यों में से (वृषभ) सर्वश्रेष्ठ ! नरर्षभ ! तू (क्षत्रम्) समस्त क्षत्रियबल और (वामम्) सुन्दर, दर्शनीय (ओजः अभि) तेज पराक्रम को स्वयं प्राप्त करके (अजायथाः) राजारूप में प्रकट हुआ है। इसलिए अपने पराक्रम और क्षत्रबल से (अमित्रायन्तं) शत्रु के समान आचरण करने वाले (जनम्) लोगों को (अप आनुदः) दूर मार भगा। और (उरु) इस विस्तृत (लोकम्) लोक को (देवेभ्यः) विद्वान् श्रेष्ठ पुरुषों के लिये (उ) ही (अकृणोः) रहने योग्य बना।
टिप्पणी
‘जनममित्रयन्तम्’ इति ऋ०। तत्रास्या ऋषिर्जयः।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृगुर्ऋषिः। १ जातवेदा अग्निर्देवता। २, ३ इन्द्रो देवता। त्रिष्टुप। जगती। तृचं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
To the Ruler
Meaning
Mighty ruler and leader of the people, Indra, you are born for great deeds and glory of the great dominion. Having removed the negative and hostile people, raise the dominion to a high state of excellence worthy of divinities.
Translation
O resplendent army-chief, you ar benign vigour, ready to protect all of us from harm; you are born a bull among men. Kick away those people who are unfriendly; make wide room for godly persons. (Also Rg. X.180.3)
Comments / Notes
MANTRA NO 7.89.2AS PER THE BOOK
Translation
O Mighty king! you are the mightiest among people and are born for lovely strength and high dominion, O king! Drive off the man who behaves like foe and favorably accommodate the virtuous men.
Translation
Thou, O King, lord and leader of the people, hast been born for lovely strength, and high dominion. Drive off the unfriendly folk, and make for the virtuous, wide room and freedom.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(इन्द्र) परमैश्वर्यवन् राजन् (क्षत्रम्) क्षतात् त्रायकं राज्यम् (अभि) अभिलक्ष्य (वामम्) प्रशस्यम्-निघ० ३।८। (ओजः) पराक्रमम् (अजायथाः) उत्पन्नोऽभवः (चर्षणीनाम्) मनुष्याणाम्-निघ० २।३। (अप अनुदः) अपागमयः (जनम्) लोकम् (अमित्रयन्तम्) उपमानादाचारे। पा० ३।१।१०। अमित्र-क्यच्, शतृ। नच्छन्दस्य पुत्रस्य। पा० ७।४।३५। इति ईत्वस्य आत्वस्य च निषेधः। सांहितिको दीर्घः। अमित्रः शत्रुः स इवाचरन्तम् (उरुम्) विस्तीर्णम् (देवेभ्यः) विजिगीषुभ्यः (अकृणोः) अकार्षीः (उ) समुच्चये (लोकम्) स्थानम् ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal