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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 10
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - आयुः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त
    71

    यत्ते॑ नि॒यानं॑ रज॒सं मृत्यो॑ अनवध॒र्ष्यम्। प॒थ इ॒मं तस्मा॒द्रक्ष॑न्तो॒ ब्रह्मा॑स्मै॒ वर्म॑ कृण्मसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । ते॒ । नि॒ऽयान॑म् । र॒ज॒सम् । मृत्यो॒ इति॑ । अ॒न॒व॒ऽध॒र्ष्य᳡म् । प॒थ: । इ॒मम् । तस्मा॑त् । रक्ष॑न्त: । ब्रह्म॑ । अ॒स्मै॒ । वर्म॑ । कृ॒ण्म॒सि॒ ॥२.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्ते नियानं रजसं मृत्यो अनवधर्ष्यम्। पथ इमं तस्माद्रक्षन्तो ब्रह्मास्मै वर्म कृण्मसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । ते । निऽयानम् । रजसम् । मृत्यो इति । अनवऽधर्ष्यम् । पथ: । इमम् । तस्मात् । रक्षन्त: । ब्रह्म । अस्मै । वर्म । कृण्मसि ॥२.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 2; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    कल्याण की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (मृत्यो) हे मृत्यु ! (यत्) जो (ते) तेरा (रजसम्) संसारसम्बन्धी (नियानम्) मार्ग (अनवधर्ष्यम्) अजेय है, (तस्मात्) उस (पथः) मार्ग से (इमम्) इस [पुरुष] को (रक्षन्तः) बचाते हुए हम (अस्मै) इस [पुरुष] के लिये (ब्रह्म) ब्रह्म [वेदविद्या का परमेश्वर] को (वर्म) कवच (कृण्मसि) बनाते हैं ॥१०॥

    भावार्थ

    जिस कठिनाई को सामान्य पुरुष नहीं रोक सकते, उसको ब्रह्मवादी जन पार करके मोक्षसुख पाते हैं ॥१०॥

    टिप्पणी

    १०−(यत्) (ते) तव (नियानम्) निरन्तरगमनम्। मार्गः (रजसम्) अर्शआद्यच्। लोकसंबद्धम् (मृत्यो) (अनवधर्ष्यम्) ऋहलोर्ण्यत्। पा० ३।१।१२४। ञिधृषा प्रागल्भ्ये-ण्यत्। धर्षितुं जेतुमशक्यम्। अजेयम् (पथः) मार्गात् (इमम्) पुरुषम् (तस्मात्) प्रसिद्धात् (रक्षन्तः) पालयन्तः (ब्रह्म) परिवृढं वेदं परमेश्वरं वा (अस्मै) पुरुषाय (वर्म) कवचम् (कृण्मसि) कृण्मः। कुर्मः ॥

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    विषय

    'ब्रह्म' वर्म

    पदार्थ

    १. हे (मृत्यो) = मृत्यु के देव! (यत्) = जो (ते) = तेरा (नियानम्) = [नियान्ति अत्र] मार्ग है, वह (रजसम्) = राजस्-रजोगुण की वृत्तियों से बना हुआ है। 'ईया-द्वेष-क्रोध'-ये सब रजोगुण को वृत्तियाँ मृत्यु की ओर ले जानेवाली हैं। (अनवधर्ष्यम्) = इस मृत्यु के मार्ग का किसी से भी धर्षण नहीं किया जा सकता। २. (इमम्) = इस व्यक्ति को (तस्मात् पथ:) = उस मार्ग से (रक्षन्त:) = रक्षित करते हुए हम (अस्मै) = इस पुरुष के लिए (ब्रह्म वर्म कृण्मसि) = ज्ञानरूप कवच देते हैं। इस कवच को धारण कर लेने पर यह राजस् वृत्तियों के-ईर्ष्या-द्वेष-क्रोध के आक्रमण से बचा रहता है।

    भावार्थ

    हम ज्ञान के कवच को धारण करके ईर्ष्या-द्वेष व क्रोध के आक्रमण से बचे रहें और दीर्घजीवी बन पाएँ।

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    भाषार्थ

    (मृत्यो) हे मृत्यु! (यत् ते) जो तेरा (अनवधर्ष्यम्) न धर्षण करने योग्य अर्थात् अप्रसह्य (रजसम्) रजोगुणी (नियानम्) नीचे की ओर ले जाने वाला मार्ग है, (तस्मात् पथः) उस पथ अर्थात् मार्ग से (इमम्) इस माणवक की (रक्षन्तः) रक्षा करते हुए, (अस्मै) इसके लिये (ब्रह्म) ब्रह्म को (वर्म कृष्मसि) कवच हम करते हैं।

    टिप्पणी

    [रजोमार्ग मृत्युकारक है। माणवक की रजोगुण से रक्षा करनी चाहिये। रजोगुण नीचे की ओर ले जाता, अर्थात् पतन करता है। नियान तथा रजोगुण के प्रहारों से बचने के लिये ब्रह्मरूपी कवच को धारण करना चाहिये]।

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    विषय

    दीर्घ जीवन का उपदेश।

    भावार्थ

    हे (मृत्यो) मृत्यो ! आत्मा को शरीर से पृथक् करने हारे तमःस्वरूप मृत्यो ! (यत्) जो (ते) तेरा (अनवधर्ष्यम्) असह्य और अजेय (रजसं=राजसम्) रजो गुण का बना हुआ (नियानम्) नीचे जाने का मार्ग है, (तस्मात्) उस (पथः) मार्ग से (रक्षन्तः) इस जीव की रक्षा करते हुए हम (ब्रह्म) ब्रह्मज्ञान या वेदोपदिष्ट ज्ञान को (अस्मै) इस जीव की रक्षा के लिये (वर्म) आवरणकारी कवच (कृण्मसि) करें। राजस कार्य और विचार मनुष्य को नीचे गिराते हैं। वे मौत की तरफ ले जाते हैं, उनसे बचने के लिये साविक मार्ग, वेदोपदिष्ट ब्रह्मज्ञान एक भारी कवच है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। आयुर्देवता। १, २, ७ भुरिजः। ३, २६ आस्तार पंक्तिः, ४ प्रस्तार पंक्तिः, ६,१५ पथ्या पंक्तिः। ८ पुरस्ताज्ज्योतिष्मती जगती। ९ पञ्चपदा जगती। ११ विष्टारपंक्तिः। १२, २२, २८ पुरस्ताद् बृहत्यः। १४ त्र्यवसाना षट्पदा जगती। १९ उपरिष्टाद् बृहती। २१ सतः पंक्तिः। ५,१०,१६-१८, २०, २३-२५,२७ अनुष्टुभः। १७ त्रिपाद्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Long Life

    Meaning

    O Death, your path of change across the world of mutability is unconquerable, still, to protect this man against the accidents on that path onward to maturity, we armour him with Brahma, the knowledge of life and death to maintain good health with freedom from disease.

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    Translation

    O death, protecting this man from your misty descending path, which can never be defied, we make prayer an armour for this man.

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    Translation

    I make the Vedic Knowledge or the Vedic speech a shield for him rescuing him from the misty worldly path of this death which is undeniable and the cause of descent.

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    Translation

    O Death, invincible is thy misty path. Saving him from that path, we make Vedic knowledge an armor for him!

    Footnote

    We' refers to learned persons.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १०−(यत्) (ते) तव (नियानम्) निरन्तरगमनम्। मार्गः (रजसम्) अर्शआद्यच्। लोकसंबद्धम् (मृत्यो) (अनवधर्ष्यम्) ऋहलोर्ण्यत्। पा० ३।१।१२४। ञिधृषा प्रागल्भ्ये-ण्यत्। धर्षितुं जेतुमशक्यम्। अजेयम् (पथः) मार्गात् (इमम्) पुरुषम् (तस्मात्) प्रसिद्धात् (रक्षन्तः) पालयन्तः (ब्रह्म) परिवृढं वेदं परमेश्वरं वा (अस्मै) पुरुषाय (वर्म) कवचम् (कृण्मसि) कृण्मः। कुर्मः ॥

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