अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 31/ मन्त्र 9
सूक्त - सविता
देवता - औदुम्बरमणिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - औदुम्बरमणि सूक्त
यथाग्रे॒ त्वं व॑नस्पते पु॒ष्ठ्या स॒ह ज॑ज्ञि॒षे। ए॒वा धन॑स्य मे स्फा॒तिमा द॑धातु॒ सर॑स्वती ॥
स्वर सहित पद पाठयथा॑। अग्रे॑। त्वम्। व॒न॒स्प॒ते॒। पु॒ष्ट्या। स॒ह। ज॒ज्ञि॒षे। ए॒व। धन॑स्य। मे॒। स्फा॒तिम्। आ। द॒धा॒तु॒। सर॑स्वती ॥३१.९॥
स्वर रहित मन्त्र
यथाग्रे त्वं वनस्पते पुष्ठ्या सह जज्ञिषे। एवा धनस्य मे स्फातिमा दधातु सरस्वती ॥
स्वर रहित पद पाठयथा। अग्रे। त्वम्। वनस्पते। पुष्ट्या। सह। जज्ञिषे। एव। धनस्य। मे। स्फातिम्। आ। दधातु। सरस्वती ॥३१.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 31; मन्त्र » 9
Translation -
As this forest tree Udumbar which contains in it-all the trees in the beginning springs with vigor so Saraswati, the lightning of cloud give for me the plenty of wealth.