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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 31 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 31/ मन्त्र 9
    ऋषिः - सविता देवता - औदुम्बरमणिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - औदुम्बरमणि सूक्त
    54

    यथाग्रे॒ त्वं व॑नस्पते पु॒ष्ठ्या स॒ह ज॑ज्ञि॒षे। ए॒वा धन॑स्य मे स्फा॒तिमा द॑धातु॒ सर॑स्वती ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यथा॑। अग्रे॑। त्वम्। व॒न॒स्प॒ते॒। पु॒ष्ट्या। स॒ह। ज॒ज्ञि॒षे। ए॒व। धन॑स्य। मे॒। स्फा॒तिम्। आ। द॒धा॒तु॒। सर॑स्वती ॥३१.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यथाग्रे त्वं वनस्पते पुष्ठ्या सह जज्ञिषे। एवा धनस्य मे स्फातिमा दधातु सरस्वती ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यथा। अग्रे। त्वम्। वनस्पते। पुष्ट्या। सह। जज्ञिषे। एव। धनस्य। मे। स्फातिम्। आ। दधातु। सरस्वती ॥३१.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 31; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (वनस्पते) हे सेवकों के रक्षक ! [परमेश्वर] (यथा) जिस प्रकार से (त्वम्) तू (अग्रे) पहिले (पुष्ट्या सह) पोषण के साथ (जज्ञिषे) प्रकट हुआ है। (एव) वैसे ही (मे) मुझको (सरस्वती) सरस्वती [विज्ञानवती विद्या] (धनस्य) धन की (स्फातिम्) बढ़ती (आ) सब ओर से (दधातु) देवे ॥९॥

    भावार्थ

    परमात्मा ने पहिले से ही सब पोषण पदार्थ उत्पन्न कर दिये हैं, मनुष्य वेद आदि सत्य विद्याएँ ग्रहण करके धन को प्राप्त करें ॥९॥

    टिप्पणी

    ९−(यथा) येन प्रकारेण (अग्रे) आदौ (त्वम्) (वनस्पते) वनानां सेवकानां पालक परमेश्वर (पुष्ट्या) समृद्ध्या (सह) (जज्ञिषे) प्रादुर्भूतोऽसि (एव) एवम् (धनस्य) (मे) मह्यम् (स्फातिम्) वृद्धिम् (आ) समन्तात् (दधातु) ददातु (सरस्वती) विज्ञानवती विद्या ॥

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    विषय

    वीर्यरक्षण व सरस्वती आराधन

    पदार्थ

    १. हे (वनस्पते) = वनस्पतियों के सेवन से उत्पन्न औदुम्बरमणे! [वीर्यमणे!] (यथा) = जैसे (त्वम्) = तू (अग्रे) = सर्वप्रथम (पुष्ट्या सह) = सब शक्तियों के पोषण के साथ (जज्ञि) = प्रादुर्भूत होती है, (एवा) = इसीप्रकार यह (सरस्वती) = ज्ञान की अधिष्ठात्री (देवता मे) = मेरे लिए (धनस्य स्फातिम्) = ज्ञान धन की वृद्धि को (आदधातु) = धारण करे। २. वीर्यरक्षण के अनुपात में ही ज्ञानाग्नि की दीप्ति होती है और ज्ञानधन प्राप्त होता है।

    भावार्थ

    हम वीर्यरक्षण करते हुए सरस्वती के प्रिय बनें।

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    भाषार्थ

    (वनस्पते) हे वनाधिपति! (यथा) जैसे (त्वम्) तू (अग्रे) प्रारम्भ से ही (पुष्ट्या सह) पुष्टि के साथ (जज्ञिषे) प्रसिद्ध हुआ है, (एवा=एवम्) ऐसे ही (सरस्वती) ज्ञान या विद्या की अधिष्ठात्री अर्थात् अधिकारिणी (मे) मुझ प्रजाजन के लिए (धनस्य) ज्ञानधन की (स्फातिम्) वृद्धि (आ दधातु) स्थापित कर।

    टिप्पणी

    [वनस्पतिः= वनस्पति का लोकप्रसिद्ध अर्थ है—वृक्ष आदि। काथक्य आचार्य कहते हैं कि वनस्पति है यूप, अर्थात् पशु को बांधने का खम्भा। शाकपूणि आचार्य कहते हैं कि वनस्पति है अग्नि (निरु० ८.३.१८)। परन्तु यास्काचार्य वनस्पति का अर्थ करते है—“वनानां पाता वा पालयिता वा” (निरु० ८.१.३), अर्थात् “वनों का रक्षक या पालक”। यह अर्थ मन्त्र (९) के अर्थ के अनुकूल है। मैत्रायणी संहिता ४.१३.७ में “वनस्पते....वयुनानि विद्वान्” द्वारा वनस्पति को प्रज्ञानों का विद्वान् अर्थात् ज्ञाता कहा है (निरु० ८.३.२०)। प्रज्ञानों का ज्ञाता वनस्पति मनुष्य ही हो सकता है। पुष्ट्या सह= वनाधिपति आदि अधिकारी नियुक्त होते ही, यदि निज कर्त्तव्यों की परिपुष्टि करें, निज कर्तव्यों को सफल करें, तो वे प्रसिद्धि को प्राप्त हो जाते हैं, कीर्तिमान् हो जाते हैं। सरस्वती= सरः विज्ञानं तद्वती (उणा० ४.१९०)।]

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    विषय

    औदुम्बर मणि के रूप में अन्नाध्यक्ष, पुष्टपति का वर्णन।

    भावार्थ

    हे (वनस्पते) वनों के पालक (यथा) जिस प्रकार (त्वं) तू (अग्रे) सबसे प्रथम स्वयं (पुष्ट्या) पोषणकारी शक्ति के साथ (जज्ञिषे) प्रकट होता है उसी प्रकार (सरस्वती) समस्त रसों का प्रदान करने वाली, पुष्टि की स्वामिनी स्त्री भी (मे) मेरे (धनस्य स्फातिम्) धन की वृद्धि (आ दधातु) करे।

    टिप्पणी

    सरस्वती पुष्टिः पुष्टि पत्नी। तै०२। ५। ७। ४। (च०) ‘आददानि’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    पुष्टिकामः सविता ऋषिः। मन्त्रोक्त उदुम्बरमणिर्देवता। ५, १२ त्रिष्टुभौ। ६ विराट् प्रस्तार पंक्तिः। ११, १३ पञ्चपदे शक्वर्य्यौ। १४ विराड् आस्तारपंक्तिः। शेषा अनुष्टुभः। चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Audumbara Mani

    Meaning

    O Vanaspati, master protector and developer of forests and the green revolution from early times, just as you have come up with health, growth and development of humanity and the environment, so may Sarasvati, mother knowledge, bear and bring us abundant growth of wealth for us.

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    Translation

    O Lord of forest, just as in the beginning, you were born with nourishment, so may the divine learning confer on me abundance of wealth.

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    Translation

    As this forest tree Udumbar which contains in it-all the trees in the beginning springs with vigor so Saraswati, the lightning of cloud give for me the plenty of wealth.

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    Translation

    O Audumber-mani, the lord of heat and energy, just as thou revealest thyself with plenty and prosperity before so does this stream of sweet water provide me with abundance of riches from all sides.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−(यथा) येन प्रकारेण (अग्रे) आदौ (त्वम्) (वनस्पते) वनानां सेवकानां पालक परमेश्वर (पुष्ट्या) समृद्ध्या (सह) (जज्ञिषे) प्रादुर्भूतोऽसि (एव) एवम् (धनस्य) (मे) मह्यम् (स्फातिम्) वृद्धिम् (आ) समन्तात् (दधातु) ददातु (सरस्वती) विज्ञानवती विद्या ॥

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