अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 31/ मन्त्र 4
ऋषिः - सविता
देवता - औदुम्बरमणिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - औदुम्बरमणि सूक्त
57
यद्द्वि॒पाच्च॒ चतु॑ष्पाच्च॒ यान्यन्ना॑नि॒ ये रसाः॑। गृ॒ह्णे॒हं त्वे॑षां भू॒मानं॒ बिभ्र॒दौदु॑म्बरं म॒णिम् ॥
स्वर सहित पद पाठयत्। द्वि॒ऽपात्। च॒। चतुः॑पात्। च॒। यानि॑। अन्ना॑नि। ये। रसाः॑। गृ॒ह्णे। अ॒हम्। तु । ए॒षा॒म्। भू॒मान॑म्। बिभ्र॑त्। औदु॑म्बरम्। म॒णिम् ॥३१.४॥
स्वर रहित मन्त्र
यद्द्विपाच्च चतुष्पाच्च यान्यन्नानि ये रसाः। गृह्णेहं त्वेषां भूमानं बिभ्रदौदुम्बरं मणिम् ॥
स्वर रहित पद पाठयत्। द्विऽपात्। च। चतुःपात्। च। यानि। अन्नानि। ये। रसाः। गृह्णे। अहम्। तु । एषाम्। भूमानम्। बिभ्रत्। औदुम्बरम्। मणिम् ॥३१.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
(यत्) जो कुछ (द्विपात्) दोपाया (च) और (चतुष्पात्) चौपाया है, (च) और (यानि) जो-जो (अन्नानि) अन्न और (ये) जो-जो (रसाः) रस हैं। (औदुम्बरम्) संघटन चाहनेवाले (मणिम्) श्रेष्ठ [परमेश्वर] को (बिभ्रत्) धारण करता हुआ (तु) ही (अहम्) मैं (एषाम्) इनकी (भूमानम्) बहुतायत को (गृह्णे) ग्रहण करूँ ॥४॥
भावार्थ
मनुष्य सर्वशक्तिमान् परमेश्वर की उपासना करके प्रयत्न के साथ उत्तम मनुष्यों, उत्तम अन्नों, और उत्तम दूध-घी शर्करा गुड़ादि रसों को बहुतायत से रक्खें ॥४॥
टिप्पणी
इस मन्त्र का मिलान करो-अ०५।२८।३॥४−(यत्) (द्विपात्) पादद्वयोपेतं मनुष्यादिकम् (च) (चतुष्पात्) पादचतुष्टयोपेतं गवादिकं पशुजातम् (च) (यानि) (अन्नानि) व्रीहियवादीनि (ये) (रसाः) दधिक्षीरमधुशर्करागुडादिरूपाः (गृह्णे) स्वीकरोमि (अहम्) (तु) ही (एषाम्) पूर्वोक्तानाम् (भूमानम्) बहुभावम् (बिभ्रत्) धारयन् सन् (औदुम्बरम्) संहतिस्वीकर्तारम् (मणिम्) प्रशस्तं परमात्मानम् ॥
विषय
वीर्यरक्षण व ऐश्वर्य [भूमा]
पदार्थ
१. (यत्) = जो (द्विपात्) = दो पाँववाले मनुष्य आदि हैं (च) = और (चतुष्पात) = गौ आदि पश हैं (च) = और (यानि अनानि) = जो जौ-चावल आदि अन्न हैं तथा (ये रसाः) = दूध-दही, इक्षु आदि रसवाले पदार्थ हैं, (अहम्) = मैं (तु) = तो (औदुम्बरं मणिं बिभत्) = सब पापों व रोगों से ऊपर उठानेवाली इस वीर्यमणि को धारण करता हुआ (एषाम्) = इन सबके (भूमानम्) = बाहुल्य को (गृह्वे) = ग्रहण करता हूँ।
भावार्थ
वीर्यरक्षणवाला पुरुष सब प्रकार से समृद्ध बनाता है-अभ्युदयशाली होता है।
भाषार्थ
(यद्) जो (द्विपात्= द्विपाद्) दो पैरोंवाली सन्तानें, (च) और (चतुष्पात्= चतुष्पाद्) चार पैरोंवाले अश्व गौ आदि पशु हैं, (च) और (यानि अन्नानि) जो विविध अन्न हैं (ये) जो (रसाः) दूध तथा इक्षुरस आदि हैं, (औदुम्बरं मणिम्) राज्यरत्नरूपी वनाधिपति का (बिभ्रत्) धारण-पोषण करता हुआ (अहम्) मैं प्रत्येक प्रजाजन (तु) तो (एषाम्) इन उपर्युक्त वस्तुओं की (भूमानम्) बहुतायत को (गृह्णे) ग्रहण करता हूँ।
टिप्पणी
[बिभ्रत्= प्रत्येक प्रजाजन का यह कर्त्तव्य है कि जो-जो राज्याधिकारी निज व्यवस्था के निरीक्षणार्थ जब-जब प्रजाजनों के पास जाए, तब-तब प्रजाजन अन्नादि द्वारा उसका भरण-पोषण करें। बिभ्रत कर्मविशेषण है। “गृह्णे” का।]
विषय
औदुम्बर मणि के रूप में अन्नाध्यक्ष, पुष्टपति का वर्णन।
भावार्थ
(अहम्) मैं (औदुम्बरम् मणिम्) ‘औदुम्बर’ नामक श्रेष्ठ पुरुष को अपने राष्ट्र में भृति या वेतन पर नियुक्त करता हुआ ही (यत् द्विपात् च) जो दो पाये और (चतुष्पात् च) चौपाये जन्तु हैं और (यानि अन्नानि) जितने अन्न और (ये रसाः) जितने रस हैं (एषाम्) उन सबकी (भूमानम्) बहुत भारी संख्या को (गृह्णे) प्राप्त करने में समर्थ हूं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
पुष्टिकामः सविता ऋषिः। मन्त्रोक्त उदुम्बरमणिर्देवता। ५, १२ त्रिष्टुभौ। ६ विराट् प्रस्तार पंक्तिः। ११, १३ पञ्चपदे शक्वर्य्यौ। १४ विराड् आस्तारपंक्तिः। शेषा अनुष्टुभः। चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Audumbara Mani
Meaning
Whatever bipeds and quadrupeds there be around, whatever foods and delicious drinks there be in the world, I pray, bearing the divine Audumbara mani and performing the sacred home fire yajna, I may have the best in abundance of them.
Translation
Whatever is biped and quadruped, whatever the foods and whatever the delicious drinks are there, may I obtain plenty of them, putting on the udumbara blessing.
Translation
Let me having in Possession the nice Udumbar, win the plenty of bipeds, quadrupeds, all the grains and whatever are the juicy drinks.
Translation
Whatever there are bipeds, quadrupeds and whatever there are foodgrains and whatever juices, I (a householder) get plenty of these, as I possess the Audumber-mani (the nourisher of all these).
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
इस मन्त्र का मिलान करो-अ०५।२८।३॥४−(यत्) (द्विपात्) पादद्वयोपेतं मनुष्यादिकम् (च) (चतुष्पात्) पादचतुष्टयोपेतं गवादिकं पशुजातम् (च) (यानि) (अन्नानि) व्रीहियवादीनि (ये) (रसाः) दधिक्षीरमधुशर्करागुडादिरूपाः (गृह्णे) स्वीकरोमि (अहम्) (तु) ही (एषाम्) पूर्वोक्तानाम् (भूमानम्) बहुभावम् (बिभ्रत्) धारयन् सन् (औदुम्बरम्) संहतिस्वीकर्तारम् (मणिम्) प्रशस्तं परमात्मानम् ॥
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