अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 31/ मन्त्र 5
ऋषिः - सविता
देवता - औदुम्बरमणिः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - औदुम्बरमणि सूक्त
75
पु॒ष्टिं प॑शू॒नां परि॑ जग्रभा॒हं चतु॑ष्पदां द्वि॒पदां॒ यच्च॑ धा॒न्यम्। पयः॑ पशू॒नां रस॒मोष॑धीनां॒ बृह॒स्पतिः॑ सवि॒ता मे॒ नि य॑च्छात् ॥
स्वर सहित पद पाठपु॒ष्टिम्। प॒शू॒नाम्। परि॑। ज॒ग्र॒भ॒। अ॒हम्। चतुः॑ऽपदाम्। द्वि॒ऽपदाम्। यत्। च॒। धा॒न्य᳡म्। पयः॑। प॒शू॒नाम्। रस॑म्। ओष॑धीनाम्। बृह॒स्पतिः॑। स॒वि॒ता। मे॒। नि। य॒च्छा॒त् ॥३१.५॥
स्वर रहित मन्त्र
पुष्टिं पशूनां परि जग्रभाहं चतुष्पदां द्विपदां यच्च धान्यम्। पयः पशूनां रसमोषधीनां बृहस्पतिः सविता मे नि यच्छात् ॥
स्वर रहित पद पाठपुष्टिम्। पशूनाम्। परि। जग्रभ। अहम्। चतुःऽपदाम्। द्विऽपदाम्। यत्। च। धान्यम्। पयः। पशूनाम्। रसम्। ओषधीनाम्। बृहस्पतिः। सविता। मे। नि। यच्छात् ॥३१.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
(अहम्) मैंने (चतुष्पदाम्) चौपाये और (द्विपदाम्) दोपाये (पशूनाम्) जीवों की, (च) और (यत्) जो (धान्यम्) धान्य है, [उसकी भी], (पुष्टिम्) बढ़ती को (परि) सब ओर से (जग्रभ) ग्रहण किया है। (पशूनाम्) पशुओं का (पयः) दूध और (औषधीनाम्) ओषधियों [सोमलता अन्न आदि] का (रसम्) रस (बृहस्पतिः) बड़े ज्ञानों का रक्षक (सविता) सर्वप्रेरक [गृहपति वा परमेश्वर] (मे) मुझे (नि) नित्य (यच्छात्) देवे ॥५॥
भावार्थ
मनुष्य परमेश्वर की भक्तिपूर्वक सब आवश्यक पदार्थों का संग्रह करके प्रजा की यथावत् रक्षा करे ॥५॥
टिप्पणी
५−(पुष्टिम्) वृद्धिम् (पशूनाम्) प्राणिनाम् (परि) सर्वतः (जग्रभ) हस्य भः। जग्रह। गृहीतवानस्मि (चतुष्पदाम्) पादचतुष्टययुक्तानाम् (द्विपदाम्) पादद्वयोपेतानाम् (यत्) (च) (धान्यम्) अन्नम्, तस्य पुष्टिं च (पयः) क्षीरम् (पशूनाम्) गवादीनाम् (रसम्) (ओषधीनाम्) सोमलताव्रीहियवादीनाम् (बृहस्पतिः) बृहतां ज्ञानानां पालकः (सविता) सर्वप्रेरकः गृहपतिः परमेश्वरो वा (मे) मह्यम् (नि) नित्यम् (यच्छात्) लेटि रूपम्। दद्यात् ॥
विषय
पयः पशूनां, रसमोषधीनाम्
पदार्थ
१. (अहम्) = मैं वीर्यरक्षण करनेवाला होता हुआ (पशूनां पुष्टिम्) = गवादि पशुओं की पुष्टि को (परिजग्रभ) = सर्वथा प्राप्त होता हूँ। (चतुष्पदाम्) = गवादि चार पाँववाले पशुओं की (द्विपदाम्) = दो पाँववाले मनुष्यों की पुष्टि को प्राप्त करता हूँ, (च) = और (यत्) = जो (धान्यम्) = व्रीहि-यव आदि धान्य हैं, उनकी पुष्टि को प्राप्त करता हूँ। मेरा घर सब प्रकार से फूला-फला होता है। २. वह (बृहस्पति:) = आकाशादि बड़े-बड़े सब लोकों का स्वामी अथवा ज्ञान का स्वामी (सविता) = प्रेरणा देनेवाला प्रभु (मे) = मेरे लिए (पशूनां पयः) = गवादि पशुओं के दूध को तथा (ओषधीनां रसम्) = व्रीहि यवादि ओषधियों के रस को (नियच्छात्) = देते हैं। मेरे लिए वे यही नियम बनाते हैं कि मैं पशुओं से तो दूध को ही भोजन के रूप में तूं तथा ओषधियों के सार को ग्रहण करनेवाला बनें। इसप्रकार शुद्ध वानस्पतिक भोजन में चलूँ।
भावार्थ
वीर्यरक्षण करते हुए हम सब प्रकार से समृद्ध हों। पशुओं से दूध व ओषधियों से रस को लेनेवाले बनें।
भाषार्थ
(चतुष्पदाम्) चौपायों और (द्विपदाम्) दोपायों (पशूनाम्) पशुओं का (पुष्टिम्) परिपोषण (अहम्) मैंने (परिजग्रभ) पर्याप्त पा लिया है, (च) और (धान्यम्) अनाज भी पर्याप्त पा लिया है। (बृहस्पतिः) महारक्षक (सविता) सर्वप्रेरक सर्वोत्पादक सर्वैश्वर्यों के स्वामी परमेश्वर ने (मे) मुझ प्रत्येक प्रजाजन के लिए (पशूनां पयः) पशुओं का दूध, और (ओषधीनाम्) औषधियों का (रसम्) रस (नि यच्छात्) नियुक्त किया हैं, दिया है।
टिप्पणी
[पयः=पशुओं का दूध लेना चाहिए न कि मांस। रोगनिवृत्ति तथा स्वास्थ्य के लिए ओषधियों का रस अधिक उपयोगी होता है। सविता=इस पद द्वारा मन्त्र (१) में कथित प्रेरक प्रधानमन्त्री का भी ग्रहण किया जा सकता है। वह भी राष्ट्र की महासम्पत्तियों का रक्षक होता है।]
विषय
औदुम्बर मणि के रूप में अन्नाध्यक्ष, पुष्टपति का वर्णन।
भावार्थ
(सविता) सबका प्रेरक और उत्पादक (बृहस्पतिः) बड़ों बड़ों का स्वामी, पालक राजा या परमेश्वर (मे) मुझे (पशूनाम्) पशुओं के (पयः) दूध और (ओषधीनाम्) ओषधियों के (रसम्) रस का (नियच्छात्) प्रदान करे और (अहम्) मैं (पशूनाम्) पशुओं की और (द्विपदाम् चतुष्पदाम्) दो पाये और चौपायों की (पुष्टिम्) पुष्टि और (यत् च धान्यम्) जो उनके खाने योग्य धान्य है वह भी मैं (परि जग्रभ) सब प्रकार से प्राप्त करूं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
पुष्टिकामः सविता ऋषिः। मन्त्रोक्त उदुम्बरमणिर्देवता। ५, १२ त्रिष्टुभौ। ६ विराट् प्रस्तार पंक्तिः। ११, १३ पञ्चपदे शक्वर्य्यौ। १४ विराड् आस्तारपंक्तिः। शेषा अनुष्टुभः। चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Audumbara Mani
Meaning
I have taken up the care, welfare and growth of the biped and quadruped living beings. I have also received their gift of food grains, milk of cows and other milch animals, and the juice of herbs. May Brhaspati Savita, lord omniscient and omnificent, inspire and bless me with abundance of all that wealth.
Translation
I have obtained plenty of animals, both bipeds and quadrupeds, and that of food-grains. May the Lord supreme, the impeller Lord grant me the milk of cattle and the sap of plants..
Translation
May All-creating Supreme-Being vouch safe us the milch cows, sheep etc. Animals and the juice of herbacious plants. I may obtain the abundant wealth of quadrupeds, bipeds and whatever is with in the range of corn.
Translation
I (a householder) have got abundance of cattle, quadrupeds, bipeds and food-grains in plenty. May the master-in-chief and the production-in-charge grant me the milk of cattle and the pleasant juices of herbs in abundance.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५−(पुष्टिम्) वृद्धिम् (पशूनाम्) प्राणिनाम् (परि) सर्वतः (जग्रभ) हस्य भः। जग्रह। गृहीतवानस्मि (चतुष्पदाम्) पादचतुष्टययुक्तानाम् (द्विपदाम्) पादद्वयोपेतानाम् (यत्) (च) (धान्यम्) अन्नम्, तस्य पुष्टिं च (पयः) क्षीरम् (पशूनाम्) गवादीनाम् (रसम्) (ओषधीनाम्) सोमलताव्रीहियवादीनाम् (बृहस्पतिः) बृहतां ज्ञानानां पालकः (सविता) सर्वप्रेरकः गृहपतिः परमेश्वरो वा (मे) मह्यम् (नि) नित्यम् (यच्छात्) लेटि रूपम्। दद्यात् ॥
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