अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 31/ मन्त्र 6
ऋषिः - सविता
देवता - औदुम्बरमणिः
छन्दः - विराट्प्रस्तारपङ्क्तिः
सूक्तम् - औदुम्बरमणि सूक्त
56
अ॒हं प॑शू॒नाम॑धि॒पा असा॑नि॒ मयि॑ पु॒ष्टं पु॑ष्ट॒पति॑र्दधातु। मह्य॒मौदु॑म्बरो म॒णिर्द्रवि॑णानि॒ नि य॑च्छतु ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒हम्। प॒शू॒नाम्। अ॒धि॒ऽपाः। अ॒सा॒नि॒। मयि॑। पु॒ष्टम्। पु॒ष्ट॒ऽपतिः॑। द॒धा॒तु॒। मह्य॑म्। औदु॑म्बरः। म॒णिः। द्रवि॑णानि। नि। य॒च्छ॒तु॒ ॥३१.६॥
स्वर रहित मन्त्र
अहं पशूनामधिपा असानि मयि पुष्टं पुष्टपतिर्दधातु। मह्यमौदुम्बरो मणिर्द्रविणानि नि यच्छतु ॥
स्वर रहित पद पाठअहम्। पशूनाम्। अधिऽपाः। असानि। मयि। पुष्टम्। पुष्टऽपतिः। दधातु। मह्यम्। औदुम्बरः। मणिः। द्रविणानि। नि। यच्छतु ॥३१.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
(अहम्) मैं (पशूनाम्) प्राणियों का (अधिपाः) बड़ा राजा (असानि) हो जाऊँ, (मयि) मुझमें (पुष्टपतिः) पोषण का स्वामी (पुष्टम्) पोषण (दधातु) धारण करे। (मह्यम्) मुझको (औदुम्बरः) संघटन चाहनेवाला (मणिः) प्रशंसनीय [परमेश्वर] (द्रविणानि) अनेक धन (नि) नित्य (यच्छतु) देवे ॥६॥
भावार्थ
मनुष्यों को परमेश्वर की शरण लेकर पुरुषार्थ के साथ अनेक धन प्राप्त करने चाहिए ॥६॥
टिप्पणी
६−(अहम्) (पशूनाम्) जीवानाम् (अधिपाः) म०२। महाराजः (असानि) भवानि (मयि) (पुष्टम्) पोषणम् (पुष्टपतिः) पोषणस्वामी (दधातु) धारयतु (मह्यम्) (औदुम्बरः) म०१। संहतिस्वीकर्ता (मणिः) प्रशंसनीयः परमेश्वरः (द्रविणानि) धनानि (नि) नित्यम् (यच्छतु) ददातु ॥
विषय
पशु द्रविण
पदार्थ
१. (अहम्) = मैं (पशूनाम्) = शरीरस्थ इन्द्रियरूप पशुओं का (अधिपा:) = अधिष्ठातरूपेण रक्षक (असानि) = होऊँ, जितेन्द्रिय बनूं। (पुष्टपतिः) = सब पोषणों का स्वामी प्रभु (मयि) = मुझमें (पुष्टं दधातु) = सब शक्तियों का पोषण धारण करे। मैं सब अंगों के दृष्टिकोण से पुष्ट बनूँ। २. यह (औदुम्बरः मणि:) = मुझे सब पापों व रोगों से उभारनेवाली वीर्यमणि (मह्यम्) = मेरे लिए (द्रविणानि) = सब धनों को (नियच्छतु) = दे।
भावार्थ
मैं सब इन्द्रियों को विषय-वासनाओं से बचाता हुआ सब अंगों का पोषण प्राप्त करूँ। वीर्यरक्षण द्वारा सब जीवन-धनों को प्राप्त करूँ।
भाषार्थ
(अहम्) मैं प्रत्येक प्रजाजन (पशूनाम्) पशुओं का (अधिपाः) अधिपति (असानि) होऊँ (पुष्टपतिः) पोषक वस्तुओं का स्वामी (मयि) मुझ प्रत्येक प्रजाजन में (पुष्टम्) पुष्ट वस्तुएँ (दधातु) स्थापित करे। (औदुम्बरः) वनाधिपति (मणिः) राज्यरत्न अधिकारी (मह्यम्) मुझ प्रत्येक प्रजाजन के लिए (द्रविणानि) सम्पत्तियाँ (नि यच्छतु) प्रदान करें।
विषय
औदुम्बर मणि के रूप में अन्नाध्यक्ष, पुष्टपति का वर्णन।
भावार्थ
(अहम्) मैं (पशूनाम्) पशुओं का (अधिपाः) राजा, स्वामी (असानि) होऊं। (पुष्टपतिः) पुष्ट = पोषणकारी अन्न, रस, पशु आदि का पालक पुरुष (मयि) मुझ में (पुष्टम्) पोषणकारी अन्न आदि पदार्थ (दधातु) प्रदान करे। (औदुम्बरः) वही अन्न और बलका बृद्धिकारी (मणि) सर्वश्रेष्ठ अध्यक्ष (मह्यम्) मुझे (द्रविणानि) नाना प्रकार के धन (नियच्छतु) प्रदान करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
पुष्टिकामः सविता ऋषिः। मन्त्रोक्त उदुम्बरमणिर्देवता। ५, १२ त्रिष्टुभौ। ६ विराट् प्रस्तार पंक्तिः। ११, १३ पञ्चपदे शक्वर्य्यौ। १४ विराड् आस्तारपंक्तिः। शेषा अनुष्टुभः। चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Audumbara Mani
Meaning
Let me be the master protector and promoter of animals. May the lord of health and growth bless me with health, growth and all round development. May the divine Audumbara mani bring me wealth, honour and excellence.
Translation
May I be the overlord of cattle, may the Lord of nourishment grant me nourishment. May the udumbara blessing bestow riches on me.
Translation
May I be the master of cattle, may the Lord of Prosperity bestow upon me riches and let the nice Udumbar become the source of giving me various riches.
Translation
May I (the same householder) be the lord of cattle. May the chief nourisher give me enough nourishment and vigour. Let the Audumber-mani invest me with riches of all kinds.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६−(अहम्) (पशूनाम्) जीवानाम् (अधिपाः) म०२। महाराजः (असानि) भवानि (मयि) (पुष्टम्) पोषणम् (पुष्टपतिः) पोषणस्वामी (दधातु) धारयतु (मह्यम्) (औदुम्बरः) म०१। संहतिस्वीकर्ता (मणिः) प्रशंसनीयः परमेश्वरः (द्रविणानि) धनानि (नि) नित्यम् (यच्छतु) ददातु ॥
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