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अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 9/ मन्त्र 2
सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - आर्ची गायत्री
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
तं स॒भा च॒समि॑तिश्च॒ सेना॑ च॒ सुरा॑ चानु॒व्यचलन् ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । स॒भा । च॒ । सम्ऽइ॑ति: । च॒ । सेना॑ । च॒ । सुरा॑ । च॒ । अ॒नु॒ऽव्य᳡चलन् ॥९.२॥
स्वर रहित मन्त्र
तं सभा चसमितिश्च सेना च सुरा चानुव्यचलन् ॥
स्वर रहित पद पाठतम् । सभा । च । सम्ऽइति: । च । सेना । च । सुरा । च । अनुऽव्यचलन् ॥९.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 9; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
(तम्) उस व्रात्य-राजन्य की (अनु) अनुकूलता में, (सभा च) राज सभा, धर्मसभा, विद्यासभा, (समितिः च) युद्धसभा, (सेना च) सेना, (सुरा च) और ऐश्वर्य अर्थात् राज्यकोष तथा जल विभाग (व्यचलन्) विशेषतया चले।
टिप्पणी -
[मन्त्र १ के अनुसार राजा प्रजा के अनुकूल चला, अतः परिणाम रूप में प्रजाएं राजा के अनुकूल चलीं। सुरा = षुर = सुर (ऐश्वर्ये)। सुरा उदकनाम (निघं० १।१२)। राज्य में कृषि आदि के लिये जल का विभाग]