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अथर्ववेद > काण्ड 15 > सूक्त 9

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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 9/ मन्त्र 3
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - आर्ची पङ्क्ति छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    स॒भाया॑श्च॒ वै ससमि॑तेश्च॒ सेना॑याश्च॒ सुरा॑याश्च प्रि॒यं धाम॑ भवति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒भाया॑: । च॒ । वै । स: । सम्ऽइ॑ते: । च॒ । सेना॑या: । च॒ । सुरा॑या: । च॒ । प्रि॒यम् । धाम॑ । भ॒व॒ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥९.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सभायाश्च वै ससमितेश्च सेनायाश्च सुरायाश्च प्रियं धाम भवति य एवं वेद ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सभाया: । च । वै । स: । सम्ऽइते: । च । सेनाया: । च । सुराया: । च । प्रियम् । धाम । भवति । य: । एवम् । वेद ॥९.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 9; मन्त्र » 3

    भाषार्थ -
    (यः) जो अन्य राजा भी (एवम्) इस प्रकार के तथ्य को (वेद) जानता और तदनुसार आचरण करता है, (सः) वह (वै) निश्चय से, (सभायाः, च) पूर्वोक्त तीन सभाओं का, (समितेः, च) और युद्धसभा का, (सेनायाः, च) और सेनाओं का, (सुरायाः, च) और राज्यैश्वर्य का तथा जल विभाग का (प्रियम्, धाम) प्रेमस्थान (भवति) हो जाता है। अर्थात् ऐसे राजा के सुशासन में सभा आदि सहयोग देने लगते हैंI

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