अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 3/ मन्त्र 5
सूक्त - आदित्य
देवता - साम्नी उष्णिक्
छन्दः - ब्रह्मा
सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
बृह॒स्पति॑र्मआ॒त्मा नृ॒मणा॒ नाम॒ हृद्यः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठबृह॒स्पति॑: । मे॒ । आ॒त्मा । नृ॒ऽमना॑: । नाम॑ । हृद्य॑: ॥३.५॥
स्वर रहित मन्त्र
बृहस्पतिर्मआत्मा नृमणा नाम हृद्यः ॥
स्वर रहित पद पाठबृहस्पति: । मे । आत्मा । नृऽमना: । नाम । हृद्य: ॥३.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 3; मन्त्र » 5
भाषार्थ -
(बृहस्पतिः) महाब्रह्माण्ड का पति परमेश्वर (मे) मेरा (आत्मा) आत्मा अर्थात् प्रेरक हुआ है,(नृमणा) नरनारियों की अभ्युन्नति में उस परमेश्वर का मन है, (नाम) वह सर्व प्रसिद्ध है, (हृद्यः) हृदय प्रिय या हृदय निवासी है।
टिप्पणी -
[आत्मा=शरीरस्थ जीवात्मा शरीर का प्रेरक होता है। ईश्वर प्रणिधानी योगी के जीवन में, जीवन्मुक्तावस्था में, परमेश्वर उस का प्रेरक होता है, वह उस की आत्मा के सदृश प्रेरक होता है।]