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अथर्ववेद > काण्ड 16 > सूक्त 9

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  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 9/ मन्त्र 4
    सूक्त - सूर्य देवता - परोष्णिक् छन्दः - यम सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त

    व॑स्यो॒भूया॑य॒वसु॑मान्य॒ज्ञो वसु॑ वंसिषीय॒ वसु॑मान्भूयासं॒ वसु॒ मयि॑ धेहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व॒स्य॒:ऽभूया॑य । वसु॑ऽमान । य॒ज्ञ: । वसु॑ । वं॒शि॒षी॒य॒ । वसु॑ऽमान् । भू॒या॒स॒म् । वसु॑ । मयि॑ । धे॒हि॒ ॥९.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वस्योभूयायवसुमान्यज्ञो वसु वंसिषीय वसुमान्भूयासं वसु मयि धेहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वस्य:ऽभूयाय । वसुऽमान । यज्ञ: । वसु । वंशिषीय । वसुऽमान् । भूयासम् । वसु । मयि । धेहि ॥९.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 9; मन्त्र » 4

    भाषार्थ -
    (यज्ञः) राष्ट्रयज्ञ (वसुमान्) सम्पत्ति वाला होता है [सम्पत्ति के विना राष्ट्र यज्ञ सफल नहीं हो सकता]। (वस्योभूयाय) अधिक वसुमान् अर्थात् सम्पत्ति वाला होने के लिये, (वसु) सम्पत्ति की (वंशिषीय) कामना वाला मैं राजा होऊं। (वसुनाम् भूयासम्) हे परमेश्वर ! आप की कृपा से मैं सम्पत्ति वाला होऊं (मयि) मुझ में हे परमेश्वर ! (वसु) सम्पत्ति (धेहि) स्थापित कीजिये।

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