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अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 9/ मन्त्र 3
अग॑न्म॒ स्वःस्वरगन्म॒ सं सूर्य॑स्य॒ ज्योति॑षागन्म ॥
स्वर सहित पद पाठअग॑न्म । स्व᳡: । स्व᳡: । अ॒ग॒न्म॒ । सम् । सूर्य॑स्य । ज्योति॑षा । अ॒ग॒न्म॒ ॥९.३॥
स्वर रहित मन्त्र
अगन्म स्वःस्वरगन्म सं सूर्यस्य ज्योतिषागन्म ॥
स्वर रहित पद पाठअगन्म । स्व: । स्व: । अगन्म । सम् । सूर्यस्य । ज्योतिषा । अगन्म ॥९.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 9; मन्त्र » 3
भाषार्थ -
(अगन्म) प्राप्त हुए हैं हम (स्वः) सांसारिक सुख को, (स्वः) सांसारिक सुख को (अगन्म) हम प्राप्त हुए हैं, (सूर्यस्य) सूर्य की (ज्योतिषा) ज्योति के साथ (सम्, अगन्म) हम संगत हुए हैं।
टिप्पणी -
[लोभी राष्ट्र ने, शान्ति की भावना वाले राष्ट्र पर जब आक्रमण किया तब शान्ति रखने वाले राष्ट्र की प्रजा दुःखग्रस्त हो गई और उन पर निराशा का अन्धकार छा गया। परन्तु आत्मरक्षा से प्रेरित हो कर तथा दान रहित वाले कंजूस राष्ट्र पर जब शान्तिप्रिय राजा की सेना ने युद्ध लड़ कर आक्रमणकर्ता को पराजित कर दिया तब शान्तिप्रिय प्रजाओ में सुख का संचार हुआ और आशारूपी सूर्यज्योति पुनः चमकने लगी। खुशी में "अगन्म और स्वः" का दो बार कथन हुआ है, "अभ्यासे भुयांसमर्थ मन्यन्ते" (निरुक्त)]