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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 1

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 1/ मन्त्र 2
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - यज्ञः, चन्द्रमाः छन्दः - पथ्या बृहती सूक्तम् - यज्ञ सूक्त

    इ॒मं हो॑मा य॒ज्ञम॑वते॒मं सं॑स्रावणा उ॒त। य॒ज्ञमि॒मं व॑र्धयता गिरः संस्रा॒व्येण ह॒विषा॑ जुहोमि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒मम्। होमाः॑। य॒ज्ञम्। अ॒व॒त॒। इ॒मम्। स॒म्ऽस्रा॒व॒णाः॒। उ॒त। य॒ज्ञम्। इ॒मम्। व॒र्ध॒य॒त॒। गि॒रः॒। स॒म्ऽस्रा॒व्ये᳡ण। ह॒विषा॑। जु॒हो॒मि॒ ॥१.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमं होमा यज्ञमवतेमं संस्रावणा उत। यज्ञमिमं वर्धयता गिरः संस्राव्येण हविषा जुहोमि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इमम्। होमाः। यज्ञम्। अवत। इमम्। सम्ऽस्रावणाः। उत। यज्ञम्। इमम्। वर्धयत। गिरः। सम्ऽस्राव्येण। हविषा। जुहोमि ॥१.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 1; मन्त्र » 2

    भाषार्थ -
    (होमाः) राज्य-यज्ञ में निज सम्पत्तियों की आहुतियाँ देनेवाले हे प्रजाजनो! (इमं यज्ञम्) इस राज्य-यज्ञ की (अवत) तुम रक्षा करो। (उत संस्रावणाः) तथा संस्रावों द्वारा सम्पत्तियों वाले हे प्रजाजनो! (इमम्) इस राज्य-यज्ञ की रक्षा करो। (यज्ञमिमं वर्धयता...) पूर्ववत् (मन्त्र १९.१.१)। [संस्रावणाः=यथा— इ॒हैव हव॒मा या॑त म इ॒ह सं॑स्रावणा उ॒तेमं व॑र्धयता गिरः। इ॒हैतु॒ सर्वो॒ यः प॒शुर॒स्मिन्ति॑ष्ठतु॒ या र॒यिः॥ अथर्व० १.१५.२॥ राज्यपति कहता है कि संस्रावों द्वारा प्राप्त सम्पत्तियोंवाले हे प्रजाजनो! (इह) इस राज्य में तुम रहो, और (मे) मेरे (हवम्) आह्वान पर (आयात) मेरे समीप आया करो। तथा (गिरः) हे वेदवाणियों के रहस्यार्थों के विज्ञो! तुम भी (इहैव) इसी राज्य में रहते हुए (इमम्) इस राज्य की (वर्धयत) वृद्धि करते रहो। (यः) जो हमारा (पशुः) पशुसंघ है, वह (सर्वः) सब (इह एतु) इस राज्य में रहे। (या रयिः) राज्य की जो सम्पत्ति है, वह भी (अस्मिन्) इस राज्य में (तिष्ठतु) स्थित रहे।

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