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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 13

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 13/ मन्त्र 4
    सूक्त - अप्रतिरथः देवता - इन्द्रः छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप् सूक्तम् - एकवीर सूक्त

    स इषु॑हस्तैः॒ स नि॑ष॒ङ्गिभि॑र्व॒शी संस्र॑ष्टा॒ स युध॒ इन्द्रो॑ ग॒णेन॑। सं॑सृष्ट॒जित्सो॑म॒पा बा॑हुश॒र्ध्युग्रध॑न्वा॒ प्रति॑हिताभि॒रस्ता॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः। इषु॑ऽहस्तैः। सः। नि॒ष॒ङ्गिऽभिः॑। व॒शी। सम्ऽस्र॑ष्टा । सः। युधः॑। इन्द्रः॑। ग॒णेन॑। सं॒सृ॒ष्ट॒ऽजित्। सो॒म॒ऽपाः। बा॒हु॒ऽश॒र्धी। उ॒ग्रऽध॑न्वा। प्रति॑ऽहिताभिः। अ॑स्ता ॥१३.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स इषुहस्तैः स निषङ्गिभिर्वशी संस्रष्टा स युध इन्द्रो गणेन। संसृष्टजित्सोमपा बाहुशर्ध्युग्रधन्वा प्रतिहिताभिरस्ता ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः। इषुऽहस्तैः। सः। निषङ्गिऽभिः। वशी। सम्ऽस्रष्टा । सः। युधः। इन्द्रः। गणेन। संसृष्टऽजित्। सोमऽपाः। बाहुऽशर्धी। उग्रऽधन्वा। प्रतिऽहिताभिः। अस्ता ॥१३.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 13; मन्त्र » 4

    भाषार्थ -
    (सः) वह सेनापति (इषुहस्तैः) अस्त्रशस्त्रों से सम्पन्न, तथा (सः) वह सेनापति (निषङ्गिभिः) सदा साथ रहनेवाले, बन्दूक-तोप आदि से सम्पन्न वीर योद्धाओं द्वारा (वशी) सब को अपने वश में रखता है। (सः) वह (इन्द्रः) सेनापति (युधः) योद्धाओं के (गणेन) समूह के द्वारा (संस्रष्टा) शत्रुओं के साथ संसर्ग करता वा भिड़ता है। (संसृष्टजित्) वह भिड़े शत्रुओं पर विजय पाता, (सोमपाः) सोम आदि बलकारी ओषधियों के रसों का पान करता, और वीर्य का रक्षक होता है। वह (बाहुशर्धी) बाहु में बल वाला, और (उग्रधन्वा) भयानक शस्त्रास्त्रों वाला होकर (प्रतिहिताभिः) प्रत्येक का हित करनेवाली निज सेनाओं के साथ (अस्ता) शत्रुओं को परास्त करता है।

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