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अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 37/ मन्त्र 3
सूक्त - अथर्वा
देवता - अग्निः
छन्दः - त्रिपदा महाबृहती
सूक्तम् - बलप्राप्ति सूक्त
ऊ॒र्जे त्वा॒ बला॑य॒ त्वौज॑से॒ सह॑से त्वा। अ॑भि॒भूया॑य त्वा राष्ट्र॒भृत्या॑य॒ पर्यू॑हामि श॒तशा॑रदाय ॥
स्वर सहित पद पाठऊ॒र्जे। त्वा॒। बला॑य। त्वा॒। ओज॑से। सह॑से। त्वा॒। अ॒भि॒ऽभूया॑य। त्वा॒। रा॒ष्ट्रऽभृ॑त्याय। परि॑। ऊ॒हा॒मि॒। श॒तऽशा॑रदाय ॥३७.३॥
स्वर रहित मन्त्र
ऊर्जे त्वा बलाय त्वौजसे सहसे त्वा। अभिभूयाय त्वा राष्ट्रभृत्याय पर्यूहामि शतशारदाय ॥
स्वर रहित पद पाठऊर्जे। त्वा। बलाय। त्वा। ओजसे। सहसे। त्वा। अभिऽभूयाय। त्वा। राष्ट्रऽभृत्याय। परि। ऊहामि। शतऽशारदाय ॥३७.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 37; मन्त्र » 3
भाषार्थ -
हे अग्निनामक परमेश्वर (शतशारदाय) सौ वर्षों की आयु के लिये (त्वा) आप को, (ऊर्जे) प्राणशक्ति प्राप्त करने के लिये (त्वा) आप को, (बलाय) शारीरिक बल प्राप्त करने के लिये (त्वा) आप को, (ओजसे) पराक्रम के लिये (सहसे) तथा सहन शक्ति प्राप्त करने के लिये (त्वा) आप को, (अभिभूयाय) शत्रुओं के पराभव के लिये, (राष्ट्रभृत्याय) राष्ट्रसेवा तथा राष्ट्र के भरण-पोषण के लिये (पर्यूहामि) मैं आपको निज जीवन में सदा वहन करता रहूं।
टिप्पणी -
[पर्यूहामि=परि+वह। छान्दस प्रयोग। यथा—“पर्यूढा” (अथर्व० ११.३.१५; तथा १२.५.३)। अभिप्राय यह है कि प्रार्थी परमेश्वर के प्रति कहता है कि ऊर्ज् आदि की प्राप्ति के लिये, मैं अपनी सौ वर्षों की आयु पर्यन्त सदा अपने जीवन में आप को धारण करता हुआ विचरूंगा, ताकि मैं ऊर्ज् आदि की प्राप्ति के लिये कुपथगामी न हो जाऊं। ऊर्ज्= ऊर्ज बलप्राणनयोः।]