अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 54/ मन्त्र 2
का॒लेन॒ वातः॑ पवते का॒लेन॑ पृथि॒वी म॒ही। द्यौर्म॒ही का॒ल आहि॑ता ॥
स्वर सहित पद पाठका॒लेन॑। वातः॑। प॒व॒ते॒। का॒लेन॑। पृ॒थि॒वी। म॒ही। द्यौः। म॒ही। का॒ले। आऽहि॑ता ॥५४.२॥
स्वर रहित मन्त्र
कालेन वातः पवते कालेन पृथिवी मही। द्यौर्मही काल आहिता ॥
स्वर रहित पद पाठकालेन। वातः। पवते। कालेन। पृथिवी। मही। द्यौः। मही। काले। आऽहिता ॥५४.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 54; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
(कालेन) समय पर (वातः) वायुः (पवते) बहती है। (कालेन) समय पर (पृथिवी) पृथिवी (मही) महापरिमाण वाली हुई है। (मही) महापरिमाण वाला (द्यौः) द्युलोक (काले) समय पर (आहिता) स्थापित हुआ है। [आकाश में]।
टिप्पणी -
[वातः पवते=कभी पूर्वी वायु बहती है, कभी मानसून वायु, कभी ग्रीष्म ऋतु की झंझावात आदि। मही=पृथिवी कभी आग्नेयरूप थी, फिर द्रवरूप हुई, अब “दृढा” होकर महापरिमाणवाली हुई दीखती है। “येन द्यौरुग्रा पृथिवी च दृढा” (यजुः० ३२.६)। द्युलोक अभी तक उग्र अर्थात् आग्नेयरूप है।]