Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 55

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 55/ मन्त्र 5
    सूक्त - भृगुः देवता - अग्निः छन्दः - त्र्यवसाना पञ्चपदा पुरस्ताज्ज्योतिष्मती सूक्तम् - रायस्पोष प्राप्ति सूक्त

    अप॑श्चा द॒ग्धान्न॑स्य भूयासम्। अ॑न्ना॒दाया॑न्नपतये रु॒द्राय॒ नमो॑ अ॒ग्नये॑। स॒भ्यः स॒भां मे॑ पाहि॒ ये च॑ स॒भ्याः स॑भा॒सदः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अप॑श्चा। द॒ग्धऽअ॑न्नस्य। भू॒या॒स॒म्। अ॒न्न॒ऽअ॒दाय॑। अन्न॑ऽपतये। रु॒द्राय॑। नमः॑। अ॒ग्नये॑। स॒भ्यः। स॒भाम्। मे॒। पा॒हि॒। ये। च॒। स॒भ्याः। स॒भा॒ऽसदः॑ ॥५५.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपश्चा दग्धान्नस्य भूयासम्। अन्नादायान्नपतये रुद्राय नमो अग्नये। सभ्यः सभां मे पाहि ये च सभ्याः सभासदः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अपश्चा। दग्धऽअन्नस्य। भूयासम्। अन्नऽअदाय। अन्नऽपतये। रुद्राय। नमः। अग्नये। सभ्यः। सभाम्। मे। पाहि। ये। च। सभ्याः। सभाऽसदः ॥५५.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 55; मन्त्र » 5

    भाषार्थ -
    (सभ्यः) मैं सभाध्यक्ष (दग्धान्नस्य) खेत-पके अन्न से (अपश्चा) पिछड़ा हुआ न (भूयासम्) होऊँ। ताकि (अन्नादाय) अन्नभाग का आदान करनेवाले, (अन्नपतये) अन्नों के स्वामी, (रुद्रास) शत्रुओं को रुलानेवाले, (अग्नये) अग्रनेता राजा के लिए (नमः) अन्न मैं भेंट कर सकूं। हे सभाध्यक्ष! तू (मे) मेरी (सभाम्) सभा की (पाहि) रक्षा कर। (च) और (ये) जो (सभ्याः) सभा के योग्य (सभासदः) सभा में बैठे हैं, वे भी मेरी सभा की रक्षा करें।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top