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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 57

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 57/ मन्त्र 5
    सूक्त - यमः देवता - दुःष्वप्ननाशनम् छन्दः - त्र्यवसाना पञ्चपदा पराशाक्वरातिजगती सूक्तम् - दुःस्वप्नानाशन सूक्त

    अ॑नास्मा॒कस्तद्दे॑वपी॒युः पिया॑रुर्नि॒ष्कमि॑व॒ प्रति॑ मुञ्चताम्। नवा॑र॒त्नीनप॑मया अ॒स्माकं॒ ततः॒ परि॑। दुः॒ष्वप्न्यं॒ सर्वं॑ द्विष॒ते निर्द॑यामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ना॒स्मा॒कः। तत्। दे॒व॒ऽपी॒युः। पिया॑रुः। नि॒ष्कम्ऽइ॑व। प्रति॑। मु॒ञ्च॒ता॒म्। नव॑। अ॒र॒त्नीन्। अप॑ऽमयाः। अ॒स्माक॑म्। ततः॑। परि॑। दुः॒ऽस्वप्न्य॑म्। सर्व॑म्। द्वि॒ष॒ते। निः। द॒या॒म॒सि॒ ॥५७.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अनास्माकस्तद्देवपीयुः पियारुर्निष्कमिव प्रति मुञ्चताम्। नवारत्नीनपमया अस्माकं ततः परि। दुःष्वप्न्यं सर्वं द्विषते निर्दयामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अनास्माकः। तत्। देवऽपीयुः। पियारुः। निष्कम्ऽइव। प्रति। मुञ्चताम्। नव। अरत्नीन्। अपऽमयाः। अस्माकम्। ततः। परि। दुःऽस्वप्न्यम्। सर्वम्। द्विषते। निः। दयामसि ॥५७.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 57; मन्त्र » 5

    भाषार्थ -
    जो दुःस्वप्न (अनास्माकः) हमारा नहीं रहा, (तत्) उस (देवपीयुः) दिव्यगुणनाशक (पियारुः) दुःखदायक दुःस्वप्न को [हम में से प्रत्येक] (प्रतिमुञ्चताम्) त्याग दे। (न) जैसे [कि मृत व्यक्ति] (निष्कम्) सुवर्णनिर्मित हार को त्याग देता है। (ततः परि) तत्पश्चात् (अस्माकम्) हमारे से (नव अरत्नीन्) नौ अरत्नियां दूर (अपमयाः) हे दुःस्वप्न! तू चला जा। (सर्वम्) सब (दुष्वप्न्यम्) दुःस्वप्नों और उनके दुष्परिणामों को (द्विषते) द्वेष्यपक्ष में (निर्दयामसि) हम सब निर्दयतापूर्वक फैंक देते हैं।

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