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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 58

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 58/ मन्त्र 6
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - यज्ञः, मन्त्रोक्ताः छन्दः - जगती सूक्तम् - यज्ञ सूक्त

    ये दे॒वाना॑मृ॒त्विजो॒ ये च॑ य॒ज्ञिया॒ येभ्यो॑ ह॒व्यं क्रि॒यते॑ भाग॒धेय॑म्। इ॒मं य॒ज्ञं स॒ह पत्नी॑भि॒रेत्य॒ याव॑न्तो दे॒वास्त॑वि॒षा मा॑दयन्ताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये। दे॒वाना॑म्। ऋ॒त्विजः॑। ये। च॒। य॒ज्ञियाः॑। येभ्यः॑। ह॒व्यम्। क्रि॒यते॑। भा॒ग॒ऽधेय॑म्। इ॒मम्। य॒ज्ञम्। स॒ह। पत्नी॑भिः। आ॒ऽइत्य॑। याव॑न्तः। दे॒वाः। त॒वि॒षाः। मा॒द॒य॒न्ता॒म् ॥५८.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये देवानामृत्विजो ये च यज्ञिया येभ्यो हव्यं क्रियते भागधेयम्। इमं यज्ञं सह पत्नीभिरेत्य यावन्तो देवास्तविषा मादयन्ताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये। देवानाम्। ऋत्विजः। ये। च। यज्ञियाः। येभ्यः। हव्यम्। क्रियते। भागऽधेयम्। इमम्। यज्ञम्। सह। पत्नीभिः। आऽइत्य। यावन्तः। देवाः। तविषाः। मादयन्ताम् ॥५८.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 58; मन्त्र » 6

    भाषार्थ -
    (देवानाम्) देवकोटि के (ये) जो देव (ऋत्विजः) ऋतु-ऋतु के अनुसार ऋतु-यज्ञ करते हैं, (च) और (ये) जो देव (यज्ञियाः) ऋतुयज्ञ न कर अध्यात्म-यज्ञ करते हैं, (येभ्यः) जिन इन दोनों प्रकार के देवों के लिए (हव्यं भागधेयम्) धारण-पोषणयोग्य हविष्यान्न का निश्चित भाग (क्रियते) दिया जाता है, (यावन्तः देवाः) ये जितने देव हैं, वे (पत्नीभिः सह) अपनी-अपनी पत्नियों के (सह) सहित (इमं यज्ञम्) इस ऋतुयज्ञ और अध्यात्म-यज्ञ में (एत्य) संमिलित होकर (तविषाः) वृद्धि को प्राप्त हों, और (मादयन्ताम्) हम प्रजाजनों को प्रसन्न करें।

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