अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 67/ मन्त्र 8
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - सूर्यः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त
भूय॑सीः श॒रदः॑ श॒तात् ॥
स्वर सहित पद पाठभूय॑सीः। श॒रदः॑। श॒तात् ॥६७.८॥
स्वर रहित मन्त्र
भूयसीः शरदः शतात् ॥
स्वर रहित पद पाठभूयसीः। शरदः। शतात् ॥६७.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 67; मन्त्र » 8
भाषार्थ -
(शतात्) सौ से (भूयसीः) अधिक (शरदः) वर्ष हम देखते, जीवित रहते, बोध प्राप्त करते, समुन्नत, परिपुष्ट रहें, और सत्तावान् हों॥ ८॥
टिप्पणी -
[इन ८ मन्त्रों का देवता सूर्य कहा है। सूर्य से अभिप्राय प्रेरक तथा सूर्यों के सूर्य परमेश्वर का है। सौरमण्डलों के केन्द्र सूर्य होते हैं। इन केन्द्रों में परमेश्वरीय शक्ति कार्य कर रही होती है। इसलिए कहा है कि— “योऽसावादित्ये पुरुषः सोऽसावहम्। ओ३म् खं ब्रह्म” (यजुः० ४०.१७)।]