अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 13/ मन्त्र 4
सूक्त - अथर्वा
देवता - आयुः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - दीर्घायु प्राप्ति सूक्त
एह्यश्मा॑न॒मा ति॒ष्ठाश्मा॑ भवतु ते त॒नूः। कृ॒ण्वन्तु॒ विश्वे॑ दे॒वा आयु॑ष्टे श॒रदः॑ श॒तम् ॥
स्वर सहित पद पाठआ । इ॒हि॒ । अश्मा॑नम् । आ । ति॒ष्ठ॒ । अश्मा॑ । भ॒व॒तु॒ । ते॒ । त॒नू: । कृ॒ण्वन्तु॑ । विश्वे॑ । दे॒वा: । आयु॑: । ते॒ । श॒रद॑: । श॒तम् ॥१३.४॥
स्वर रहित मन्त्र
एह्यश्मानमा तिष्ठाश्मा भवतु ते तनूः। कृण्वन्तु विश्वे देवा आयुष्टे शरदः शतम् ॥
स्वर रहित पद पाठआ । इहि । अश्मानम् । आ । तिष्ठ । अश्मा । भवतु । ते । तनू: । कृण्वन्तु । विश्वे । देवा: । आयु: । ते । शरद: । शतम् ॥१३.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 13; मन्त्र » 4
भाषार्थ -
हे ब्रह्मचारिन् (एहि) आ (अश्मानम्, आतिष्ठ) अश्मा पर आ खड़ा हो, (अश्मा भवतु ते तनूः) पत्थरसदृश दृढ़ हो तेरी तनू। (विश्वे देवा:) सब गुरुदेव (ते आयुः) तेरी आयुः (शतम्, शरदः) सौ वर्षों की (कुण्वन्तु) करें।
टिप्पणी -
[ब्रह्मचारी को क्रियात्मक शिक्षा दी है। उसे दर्शाया है कि यह पत्थर जैसे दृढ़ाङ्ग है, वैसे तुझे कठोराङ्ग होना चाहिए, तदर्थ तू नियमपूर्वक व्यायाम किया कर, और वीर्य की रक्षा किया कर। आश्रम के सब गुरुदेव ब्रह्मचारी के खान-पान का विशेष ख्याल करें, जिससे कि ब्रह्मचारी की आयुः सौ वर्षों की हो सके। वर्ष शब्द के लिए शरदः शब्द पठित हुआ है, शरत् काल में जीवन स्वस्थ रहता है।]