अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 18/ मन्त्र 5
सूक्त - चातनः
देवता - अग्निः
छन्दः - द्विपदा साम्नीबृहती
सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
स॑दान्वा॒क्षय॑णमसि सदान्वा॒चात॑नं मे दाः॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठस॒दा॒न्वा॒ऽक्षय॑णम् । अ॒सि॒ । स॒दा॒न्वा॒ऽचात॑नम् । मे॒ । दा॒: । स्वाहा॑ ॥१८.५॥
स्वर रहित मन्त्र
सदान्वाक्षयणमसि सदान्वाचातनं मे दाः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठसदान्वाऽक्षयणम् । असि । सदान्वाऽचातनम् । मे । दा: । स्वाहा ॥१८.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 18; मन्त्र » 5
भाषार्थ -
(सदान्वाक्षयणम् असि) सदा कष्ट की आवाजों का उच्चारण कराने वाली स्त्री जातिक रोग कीटाणुओं का क्षय करनेवाला तू है, (सदान्वाचातनम्) सदान्वाओं के विनाश का सामर्थ्य (मे दा:) मुझे दे, (स्वाहा) सु आह ।