अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 24/ मन्त्र 1
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - आयुः
छन्दः - वैराजपरा पञ्चपदा पथ्यापङ्क्तिः, भुरिक्पुरउष्णिक्
सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
शेर॑भक॒ शेर॑भ॒ पुन॑र्वो यन्तु या॒तवः॒ पुन॑र्हे॒तिः कि॑मीदिनः। यस्य॒ स्थ तम॑त्त॒ यो वः॒ प्राहै॒त्तम॑त्त॒ स्वा मां॒सान्य॑त्त ॥
स्वर सहित पद पाठशेर॑भक । शेर॑भ । पुन॑: । व॒: । य॒न्तु॒ । या॒तव॑: । पुन॑: । हे॒ति: । कि॒मी॒दि॒न॒: । यस्य॑ । स्थ । तम् । अ॒त्त॒ । य: । व॒: । प्र॒ऽअहै॑त् । तम् । अ॒त्त॒ । स्वा । मां॒सानि॑ । अ॒त्त॒ ॥२४.१॥
स्वर रहित मन्त्र
शेरभक शेरभ पुनर्वो यन्तु यातवः पुनर्हेतिः किमीदिनः। यस्य स्थ तमत्त यो वः प्राहैत्तमत्त स्वा मांसान्यत्त ॥
स्वर रहित पद पाठशेरभक । शेरभ । पुन: । व: । यन्तु । यातव: । पुन: । हेति: । किमीदिन: । यस्य । स्थ । तम् । अत्त । य: । व: । प्रऽअहैत् । तम् । अत्त । स्वा । मांसानि । अत्त ॥२४.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 24; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(शेरभक) शक्तिशाली अतः सुखपूर्वक शयन करनेवाले राष्ट्र पर बलात्कार या आक्रमण करनेवाले ! (शेरभ) सुखपूर्वक शयन करनेवाले पर बलात्काररूप हे राजवर्ग ! (वः) तुम्हारे ( यातवः ) यातना देनेवाले सैनिक (पुनः) फिर लौटकर (वः) तुम्हें (यन्तु) प्राप्त हों। (हेतिः) तुम्हारे अस्त्र, (किमोदिनः) अब क्या हो रहा है, ऐसे प्रश्नपूर्वक भेद लेनेवाले तुम्हारे गुप्तचर (पुनः) फिर लौटकर तुम्हें प्राप्त हों। "यस्य स्थ तम् अत्त यो वः प्राहैत् तम् अत्त स्वा मांसान्यत्त" इसकी व्याख्या (मन्त्र २) की व्याख्या में कर दी गई है, उसे देखो।
टिप्पणी -
[शेरभक= शे+रभ् (राभस्ये, भ्वादिः) + क: (करोतीति), सुख-पूर्वक शयन करनेवाले राष्ट्र पर बलात्कार करनेवाले, आक्रमण करनेवाले, शेरभ अर्थात् सुखपूर्वक शयन करनेवाले राष्ट्र पर उग्ररूप हे परराष्ट्र के राजवर्ग ! [शेष व्याख्या मन्त्र २ में देखो। प्राहैत =प्राहैषीत्, हि गतौ, लुङि रूपम् (सायण)]